एक महात्मा ने निर्धन लोगों के लिए भण्डारे का आयोजन किया। सभी लोग एक पंक्ति में बैठ कर भोजन खा रहे थे तभी तीन बेरोज़गार युवक वहां से गुजरे। दिन भर इधर उधर की ख़ाक छान कर भी उन्हें कोई काम न मिला था, लेकिन भोजन की सुगन्ध से उनकी भूख चमक गई और वे भी भोजन करने बैठ गए। पेट भर भोजन करने के उपरान्त वे महात्मा जी के पास पहुंचे और कहने लगे कि यदि उनके पास पैसे होते तो वे भी भण्डारा करते। महात्मा जी मुस्कुरा कर बोले यदि आप एक चुटकी आटा भूमि पर बिखेर देते जिसे खा कर कीड़े-मकोड़े तृप्त हो जाते, यदि एक रोटी गाय या कुत्ते को खिला देते या फिर एक मुट्ठी गेहूं या चावल पक्षियों के लिए बिखरा देते तो भण्डारा हो जाता। नवयुवकों को भण्डारे का तात्पर्य समझ आ चुका था।
प्रस्तुति : नीरोत्तमा शर्मा