पूरन सरमा
हमारे देश को विकास की रट आज़ादी के बाद ही लग गई थी। जो भी सत्ता में आया उसने विकास का नारा दिया। आप विकास चाहें या न चाहें परन्तु सरकार ने कहा कि विकास तो कराना ही होगा। विकास नहीं होगा तो सरकार के कार्यक्रम और योजनाओं का क्या होगा? सो विकास की मारामारी ऐसी चली कि विकास चल निकला। हम विकासशील हो गये। कोई क्षेत्र इस छूत से अछूता नहीं रहा।
यही विकास एक दिन मेरे गांव भी आ गया। नये चंद सिरफिरों को पसन्द भी आ गया। उन्हें लगा कि विकास की यह प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, इसलिए वे भी विकासशील हो गये। इसे अपनाने वाले वे लोग थे जो बेकार थे, जिनके हाथ खाली थे। उन्होंने विकास को आजीविका के रूप में अपना लिया। वह विकास ही किस काम का जिसे अपनाने से सर्वप्रथम स्वयं का कल्याण न हो। बस दनादन पुख्ता मकानों की नींव धरी जाने लगी। अकाल अलग हो गया-इसलिए नेताजी ने जो राहत भेजी उसका खून गांव के विकासशीलों के मुंह लग गया। इस तरह वे आबाद हो गये। गांव के विकास के लिये ‘नवयुवक मण्डल’ नाम से एक संस्था का गठन किया गया। जो चंद लोग शहर में विकास की चकाचौंध देख आये थे-वे तमाम उसके सदस्य थे।
मण्डल की पहली बैठक हुई तो उसके एजेंडा में—मेरा नाम स्थानान्तरित कराये जाने वाले लोगों में शामिल था। मैं घबरा गया कि यह नवयुवक मण्डल का गठन क्या मेरे लिए ही किया गया है। दौड़ कर मैं विकासशीलों के अध्यक्ष से मिला और बोला, ‘अमां यार तुम हमारे गांव के हो और हमारा ही तबादला करवा रहे हो। गांव में पड़े हैं। अपने बच्चों का लालन-पालन कर रहे हैं, यदि तबादला हो गया तो सारा घर अव्यवस्थित हो जायेगा।’
अध्यक्ष जी तो विकास की लहर के शिकार थे सो बोले, ‘गांव के विकास के लिए आपका इस गांव से स्थानान्तरण अत्यावश्यक है। मण्डल की बैठक में भी यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया है, इसलिए अब कुछ नहीं किया जा सकता।’
‘लेकिन मैं विकास में आड़े कहां आ रहा हूं और मैंने बिगाड़ा क्या है?’ मैंने पूछा।
वे बोले, ‘विकास में तुम ही तो सबसे बड़ी बाधा हो। दरअसल आपने ईमानदारी का प्रमाण-पत्र ले रखा है और हमें ईमानदारों से डर लगता है। स्कूल में जो निर्माण कार्य चल रहा है, उसका सारा हिसाब-किताब आपके पास है। आप पूरी ईमानदारी से उसे निपटाते हैं। तीन वर्ष से कोई घपले के चांसेज नहीं मिल रहे हैं।’
‘लेकिन इसमें मैं बाधा कहां उत्पन्न कर रहा हूं। यदि मैं हिसाब-किताब सही रखता हूं तो इसमें विकास को बल ही मिलेगा। पूरा पैसा विकास में लगेगा।’ मैंने कहा।
‘इसका मतलब आप विकास का अर्थ ही नहीं जानते।’
‘मैं तो विकास का अर्थ यही जानता हूं कि जन-कल्याण अधिक-से-अधिक हो तथा लोगों को सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं मिलें।’ मैंने कहा।
इस पर वे दांत पीस कर बोले, ‘तो फिर आप अपने इस गांव से बोरिया-बिस्तर बांध लीजिये।’