रंग हरे पीले, मेंढक ऊपर से रहते गीले।
लंबी सी टांगों से मेंढक, ख़ूब छलांग लगाते।
गला फुलाते टर टर करते, ढेरों अंडे हैं देते।
मुंह से श्वास नहीं लेते, श्वास त्वचा से लेते।
मेंढक आधा जल में रहते, आधा थल में रहते।
लोग मेंढकों को प्रायः उभयचर ही हैं कहते।
साधारण बेडौल शरीर, लगें त्वचा से रूखे-सूखे।
छोटी टांगें छोटी छलांग, जैसे लगते हों भूखे।
पत्थरों के नीचे छिपते, अंडे लाइन में देते।
आंखें गोल मटोल ये, जलचर जल में रहते।
टोडों को भी लोग प्रायः, उभयचर ही कहते।
– हरि कृष्ण मायर
रिकॉर्ड वही बनाएगा
सब चूहों की सभा जुड़ी थी, ले रहे थे सपने।
या फिर साझे कर रहे थे, दुःख सुख अपने-अपने।
एक चूहा बोला दूजे से, सोचूं सुबह शाम।
‘गिनीज बुक’ में शामिल होगा, कैसे मेरा नाम?
सुनकर दूजा चूहा बोला- सुन रे मित्र बंटी!
सम्भव होगा जब बिल्ली के, गले बांधोगे घंटी।
– दर्शन सिंह ’आशट’
वही सफलता पाए
चुनिया, मुनिया, रानी तीनों, मिलकर दौड़ लगाती।
जब भी दौड़ लगाती तीनों, रानी अव्वल आती।
लगी सोचने चुनिया मुनिया, परिणाम रहे क्यों ऐसा।
खाना-पीना हम दोनों का, है उसके ही जैसा।
भेद तब खुला जब रानी ने, इसका राज बताया।
रेसर ही बनना है मुझको, जीवन का लक्ष्य बनाया।
अटल सत्य, जो इस जीवन में, अपना लक्ष्य बनाते।
आगे बढ़ते जाते हर दम, वही सफलता पाते।
– इंद्रजीत कौशिक