फीचर डेस्क
कोरोना काल में ही दूसरा शिक्षक दिवस आ गया है। स्कूल बंद-बंद से खुले हैं। खौफ बरकरार है। शिक्षक दिवस का कार्यक्रम भी ज्यादातर जगह ऑनलाइन चल रहा है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में मनाया जाने वाले इस कार्यक्रम में हम अपने शिक्षकों को नमन करते हैं, उनसे मिली सीख को साझा करने की कोशिश करते हैं।
असल में शिक्षा लेना या किसी से कुछ सीखना एक सतत प्रक्रिया है। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। हम किसी से भी किसी तरह की सीख ले सकते हैं। कभी-कभी हमारा मन ही हमारा शिक्षक होता है। इस शिक्षक दिवस हम खुद का शिक्षक बनकर देखें। अपनी आदतों के बारे में सोचें। अपने व्यवहार के बारे में सोचें और खुद से ही जानें कि हमारे मन ने कब हमें किसी काम के लिए रोका और हमने मन की मानी या नहीं मानी। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। हम विचार करें कि हमने क्या कभी जरूरतमंद की मदद की। क्या हमने अपने ज्ञान का प्रकाश अन्यत्र भी जलाया। अगर हम खुद का शिक्षक बन जाएं तो शायद इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। यह बात अमूमन करिअर पथ पर बढ़ चले लोगों से शुरू होती है। खुद के शिक्षक बन हम अपने से कम उम्र के लोगों को अनुभव बताएं। हम उम्र लोगों से राय मशविरा करें और बड़ों से प्रेरणा लें। बच्चे तो शिक्षक दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करेंगे ही, बड़े भी अपने बारे में मंथन कर इस शिक्षक दिवस अपना शिक्षक स्वयं बन सकते हैं। हम अपने ज्ञान, दान आदि का विश्लेषण स्वयं करें। कहा भी तो गया है-
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥
अपने बारे में ही मंथन करने से बेहतर क्या हो सकता है। हमारी वजह से अगर किसी को कष्ट हुआ तो उसके कारण क्या हो सकते हैं। हमारे व्यवहार से हम खुद ही दुखी हुए तो आखिर क्यों। क्या हमने सबक लिया? क्या हमारा सबक काम आया। असल में मनुष्य खुद ही अपना मित्र और शत्रु है।
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानम वसादयेत। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।
अर्थात अपने द्वारा अपना उद्धार करें। अपना पतन न करें क्योंकि आप ही अपने मित्र और शत्रु हैं।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को नमन
शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाया जाता है। गुरु-शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ. राधाकृष्णन ने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य किया। जब वह भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों ने उनके जन्मदिन का जश्न मनाना चाहा, लेकिन उन्होंने कहा, ‘मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय अगर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाए तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।’ बताया जाता है कि भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद भी डॉ राधाकृष्णन अपनी सैलरी से मात्र ढाई हजार रुपये लेते थे, जबकि बाकी सैलरी प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष में दान कर देते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन को आम लोगों के लिए भी खोल दिया था। वह अमेरिका के व्हाइट हाउस में हेलीकॉप्टर से अतिथि के रूप में पहुंचे थे।