मदन गुप्ता सपाटू
दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति के लिए श्रद्धापूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का पक्ष श्राद्ध के लिए तय है। ज्योतिषीय दृष्टि से इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है, इसलिए इसे कनागत भी कहते हैं।
प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गयी वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं? इस शंका का स्कंद पुराण में समाधान मिलता है। इसमें कथा है कि एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, ‘मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जब तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है, फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?’ भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निश्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं, इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं। जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सार तत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निश्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें अमृत होकर प्राप्त होता है। यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है। नाग योनि में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में, दानव योनि में मांस रूप में, प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।
जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहे सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्राद्ध में भी खरीदारी के मुहूर्त
श्राद्ध पक्ष में कपड़ों, गहनों की खरीदारी जैसे कार्य वर्जित माने जाते हैं, लेकिन इस मध्य कई ऐसे मुहूर्त हैं जब आप खरीदारी कर सकते हैं। ऐसा ही मुहूर्त 29 सितंबर को आएगा। इस दिन अष्टमी तिथि के श्राद्ध के अलावा महालक्ष्मी व्रत है। इस दिन सोना, वाहन, गृह संबंधी सामान की खरीदारी की जा सकती है। यह व्रत संतान की दीर्घायु के लिए माताएं रखती हैं। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। सप्तमी तिथि मंगलवार 28 सितंबर की शाम 6:17 बजे समाप्त हो जाएगी और अष्टमी आरंभ हो जाएगी। बुधवार का पूरा दिन, रात 8:30 बजे तक अष्टमी रहेगी। इसके अलावा 26 सितंबर को रवि योग है, जिसमें खरीदारी कर सकते हैं। वहीं, 27 सितंबर को रवि योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। इसके बाद 30 सितंबर और 6 अक्तूबर को भी सर्वार्थ सिद्धि, जबकि 1 अक्तूबर को गुरु पुष्य योग है।
आज पितृपक्ष की तिथि नहीं
20 सितंबर से शुरू हुए श्राद्ध 6 अक्तूबर तक चलेंगे, परंतु 26 सितंबर को पितृपक्ष की तिथि नहीं है।