आपसी सहमति हो
हिंदू-मुस्लिम समुदायों में लाउडस्पीकर संबंधी विवादों से उत्पन्न वैचारिक वैमनस्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना के मद्देनजर आपसी सौहार्द-शांतिपूर्ण माहौल में सुलझा लेना चाहिए। प्रबुद्ध नागरिकों को दोनों संप्रदायों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले भाषणों को अनसुना करते हुए आपसी सहमति की एक नयी मिसाल कायम करनी चाहिए। वहीं ध्वनि प्रदूषण से विद्यार्थी वर्ग के शिक्षण-प्रशिक्षण में आते व्यवधान, बीमार बुजुर्गों की तकलीफों आदि के समाधान हेतु सजगता जरूरी है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
कानून से समाधान
देश में वर्षों से मंदिर में आरती, मस्जिद में अजान, गुरुद्वारा में गुरबाणी और गिरजाघर में प्रार्थना सभा के दौरान ध्वनि यंत्रों का उपयोग हो रहा है। अतीत में किसी वर्ग को इस पर आपत्ति नहीं थी। हालांकि ध्वनि यंत्रों का प्रयोग विद्यार्थियों, बीमारों और बुजुर्गों के लिए असुविधाजनक अवश्य था। कालांतर में संकीर्ण हितों की प्रतिपूर्ति के लिये राजनीतिक दलों के उकसावे पर ध्वनि यंत्रों का प्रयोग एक-दूसरे वर्ग को नीचा दिखाने के लिए करने लगे। राष्ट्र में ध्वनि नियंत्रण के कठोर कानून और सभी वर्गों द्वारा कानून की कठोरता से अनुपालना ही विवाद का समाधान है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम
धीमी हो ध्वनि
हाल ही के दिनों में देश में लाउडस्पीकर विवाद ने जोर पकड़ा है। आज के समय में कोई भी व्यक्ति किसी की अच्छी सलाह मानने को तैयार नहीं है। इसी तरह का विवाद झगड़े का रूप धारण कर लेता है। अब हमारे देश के धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर सुबह 4 बजे से चला दिया जाता है, जिससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसे चलाया जाए परंतु धीमी ध्वनि में। क्योंकि तेज ध्वनि से सुबह पढ़ने वाले बच्चों का समय बर्बाद और घर में बूढ़े बीमार बुजुर्गों को परेशानी होती है। अतः लाउडस्पीकर विवाद का कानूनी समाधान आवश्यक है।
सतपाल सिंह, करनाल
सख्ती से पालन हो
आजकल देश में लाउडस्पीकर युद्ध चला हुआ है, जिससे दोनों संप्रदायों में उत्तेजक भाषणों का आदान-प्रदान हो रहा है। वैसे लाउडस्पीकर प्रयोग से विद्यार्थियों के अध्ययन कार्य में व्यवधान पड़ता है, वहीं वृद्ध बीमार लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक सीमा तक आवाज सीमित रखने की अनुमति दी है। संबंधित सरकारों को इस नियम को कड़ाई से लागू करना चाहिए। सभी को अपने अपने धर्म पर चलने की अनुमति तो है लेकिन धर्म के नाम पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जिससे विवाद खड़ा हो।
शामलाल कौशल, रोहतक
राजनीतिक दांवपेच
लाउडस्पीकर विवाद के जरिए यह साफ महसूस होने लगा है कि सामाजिक हित के लिए उठाये जाने वाले सभी कदम क्यों विवादित होकर रह जाते हैं। क्यों खुद को सामाज के ठेकेदार मानने वाले राजनीतिक दल राजनीतिक दांवपेच खेलने लगते हैं। सब आम इंसान हैं और उनके हित में जो भी उचित है, न्यायालय उस पर सख्त कानून बनाए। साथ ही उल्लंघन करने वाले के लिए कठोर दंड तय हो। कानून किसी धर्म, जात व किसी राजनीतिक दल विशेष का गुलाम नहीं है। यह प्रजातांत्रिक देश है जहां सबको समान अधिकार मिलता है।
ऋतु गुप्ता, फरीदाबाद
प्रतिष्ठा का मुद्दा
आज धार्मिक गतिविधियों का लाउडस्पीकर से प्रसारण धर्मावलंबियों के बीच प्रतिष्ठा का मुद्दा बनकर विवाद के गलियारों में गूंज रहा है। लाउडस्पीकर परंपरा वर्षों से बनी हुई है। पहले कभी विवाद नहीं होने से सरकार ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अब आमजन की सुख-शांति को ध्यान में रख नए प्रभावी नियम बनाना चाहिए। यदि कभी किसी संप्रदाय से जुड़े लोगों को कोई विशेष समारोह आयोजित करना हो तो प्रशासन से अनुमति लेकर लाउडस्पीकर का उपयोग किया जा सकता है।
दिनेश विजयवर्गीय, बूंदी, राजस्थान
पुरस्कृत पत्र
जिम्मेदारी तय हो
आज के दौर में लाउडस्पीकर धार्मिक प्रचार-प्रसार का साधन तो बन गया है लेकिन इस पर नियंत्रण नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर नियमों का उल्लंघन होता है। यद्यपि ज्ञात हो कि विभिन्न प्रकार के ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण, परिवहन और निर्माण भी हैं, जिससे जीव बुरी तरह प्रभावित होते हैं। लेकिन बीते कुछ दिनों से लाउडस्पीकर पर राजनीति ने इसे विवादास्पद मुद्दा बना दिया है। हरेक पार्टी सियासी रोट सेंकने में लगी है। कानूनी तौर पर ध्वनि प्रदूषण के मानक-मापकों के उल्लंघन के लिए तय जुर्माने के साथ कार्यान्वयन की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन को देनी चाहिए ताकि आपसी सौहार्द बना रहे।
मनकेश्वर कुमार, मधेपुरा, बिहार