कौशल सिखौला
चित्रकूट के घाट पर
भई संतन की भीर
तुलसीदास चंदन घिसें
तिलक देत रघुवीर।
भारतीय संस्कृति में तिलक और बिंदिया की अनोखी महिमा है। तिलक रेखा से न केवल हमारी शान है, अपितु सनातनी होने की पहचान भी है। देव कार्य में तिलक अंगूठे से दिया जाता है और दोनों मध्यमा उंगलियों से भी। पितरों के आह्वान अथवा विसर्जन के समय अनामिका से भी तिलक दिया जाता है।
तिलक रोली से भी होता है और चंदन से भी। संन्यास परंपरा और पितृ कर्मकांड में भस्म त्रिपुंड तिलक की मान्यता है। तिलक सौभाग्य का प्रतीक है। प्रत्येक धार्मिक कार्य शुरू करने से पहले मांगलिक तिलक जरूरी है। अनुष्ठान के बाद पुरोहित अपने यजमान को आशीर्वाद तिलक देते हैं। स्त्रियों को बिंदी तिलक देने के बाद सुख-समृद्धि की प्रतीक मांग में भी बिंदी लगाना पुरोहित का दायित्व है। तिलक क्षेत्रवार भी बदल जाते हैं। परंतु तिलक का मूल एक ही है।
साधु-संन्यासियों की पहचान उनके तिलक से हो जाती है। साधु समाज में कुल 80 प्रकार के तिलक प्रचलित हैं। शैव, शाक्त और वैष्णव संतों में अलग-अलग प्रकार के तिलक लगाए जाते हैं। सर्वाधिक 64 प्रकार के तिलक वैष्णव बैरागी संत लगाते हैं। संतों के अखाड़ों, आश्रमों और छावनियों में प्रातःकालीन स्नान के बाद संत शृंगार करते हैं, जिनमें भस्म रमाना और तिलक लगाना प्रमुख हैं।
तिलक लगाने के लिए साधु संत रोली कुंकुम, सिंदूर, चंदन और केसर का प्रयोग करते हैं। नागा संन्यासी भस्म रमाकर माथा भी भस्म से लीपते हैं और उसके ऊपर श्वेत भस्म से त्रिपुंड लगाते हैं। बैरागी संतों में रोली और केसर के तिलक लगाए जाते हैं। उदासी संत केसर मिले चंदन का तिलक लगाते हैं। वैष्णवों में विष्णुस्वामी तिलक, श्यामश्री तिलक, गाणपत्य तिलक एवं चन्द्र तिलक सर्वाधिक प्रचलित हैं। कुछ वैष्णव रामानंदी भौंह के बीच से तिलक की शुरुआत करते हैं तो कुछ सीधे नाक से ही तिलक लगाते हैं। नासिका से तिलक लगाने वालों की पूजा विधि बड़ी लम्बी है। वैष्णवों में कृष्ण प्रणामी तिलक भी गुजराती संतों में प्रमुख है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम दिशाओं से आये संतों की तिलक परम्परा में कुछ-कुछ भिन्नता है। इनके अलावा तांत्रिक, अघोरी और कापालिक साधु सिंदूरी तिलक लगाते हैं। कुम्भ मेला महापर्व पर साधु-संतों की तिलक विधा बहुत आकर्षित करती है।
घर में प्रतिदिन की पूजा, संध्या, वंदन, कीर्तन, संकीर्तन आदि में भाग लेते हुए तिलक अवश्य लगाएं। दक्षिण भारत में तो काम पर निकलने से पूर्व तिलक अवश्य लगाते हैं। प्राचीनकाल में युद्ध पर जाते राजा को रानी तिलक लगाती थी और सैनिकों के मस्तक पर धर्मगुरु। तिलक की महिमा की क्या कहिए। यह तो हमारी आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है।