विश्व श्रम संगठन का हाल ही में एक सर्वे आया है। इसमें 112 देशों के बारह हजार युवाओं को शामिल किया गया। इनकी उम्र अठारह वर्ष से उनतीस वर्ष तक थी। ये युवा शिक्षित भी थे और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भी। इस सर्वेक्षण का विषय था—युवा और कोविड-19, नौकरियों, शिक्षा, अधिकार और मानसिक स्थिति पर प्रभाव।
इन युवाओं में लगभग एक-तिहाई इस बात से परेशान थे कि आने वाले दिनों में उनका भविष्य और करिअर कैसा होगा। जिस तरह से दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां मंद पड़ी हैं, बड़ी संख्या में नौकरियां जा रही हैं, इस कारण वे अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित और अनिश्चितता से भरे दिखे। सर्वे का कहना था कि अगर सरकारों ने युवाओं की इस अनिश्चितता को जल्दी ही दूर नहीं किया तो युवाओं की ये हालत सभी के लिए परेशानी का कारण बन सकती है।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह भी है कि इन कारणों से बड़ी संख्या में युवा अवसाद के शिकार हो रहे हैं। बताया गया कि दो में से एक युवा अवसाद का शिकार हो रहा है। यानी कि युवाओं की कुल आबादी का पचास प्रतिशत अवसाद से जूझ रहा है। यह आबादी बहुत बड़ी है। इनमें से सत्रह प्रतिशत बेहद गम्भीर संकट में हैं। वे सीखने और रोजगार में पड़े व्यवधान से बेहद परेशान हैं। जिनके ये काम रुक गए हैं, उन्हें अवसाद और गहरी चिंता के कारण तरह-तरह की परेशानियों के बहुत खतरे हैं। उनका इस तरह की परेशानियों में चले जाने का खतरा उनसे दोगुना है, जिनकी शिक्षा कोरोना के कारण बाधित नहीं हुई या जिनके रोजगार खत्म नहीं हुए हैं क्योंकि शिक्षा, रोजगार मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी हैं।
पता चला कि हर छह में से एक युवा की नौकरी इस दौर में चली गई है। जिन क्षेत्रों में इस महामारी के कारण रोजगार पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, वे हैं— सेवा और क्रय-विक्रय के तमाम क्षेत्र। तिहत्तर प्रतिशत जो युवा पढ़ रहे थे, उनमें से बहुत से साथ में नौकरी भी कर रहे थे। वे आॅनलाइन शिक्षा से ठीक से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। गरीब देश में ऐसे छात्रों का प्रतिशत ज्यादा है, जहां आॅनलाइन शिक्षा की ठीक से पहुंच नहीं है। जहां डिजिटल सुविधाएं अभी नहीं पहुंची हैं। इसीलिए बहुत से युवा ठीक से पढ़ भी नहीं पा रहे हैं। कुल 51 प्रतिशत मानते हैं कि इस महामारी के कारण उनकी शिक्षा पूरी करने में देरी होगी। नौ प्रतिशत को लगता था कि हो सकता है कि उनकी शिक्षा अधूरी ही रह जाए या वे असफल हो जाएं। पांच में से दो युवाओं ने कहा कि इस दौर में उनकी आय भी घट गई है। यह प्रभाव भी गरीब देशों में अधिक देखा गया। यह भी देखा गया कि इस दौर में अपनी तमाम परेशानियों के बावजूद, लगभग 25 प्रतिशत युवाओं ने किसी न किसी सामाजिक और सेवा के काम में भाग लिया। जरूरतमंदों की मदद की। इसके लिए इनकी तारीफ की जानी चाहिए। आईएलओ ने अपने निष्कर्ष में कहा कि जरूरी है कि कोरोना महामारी से निपटने और खत्म करने के प्रयास सरकारों को युद्धस्तर पर करने होंगे। युवाओं की आवाज को सरकारें सुनें और उनकी मदद करें।
हमने देखा भी है कि हर देश की ताकत उसके युवा ही होते हैं। वे ही किसी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायक भी होते हैं। उन्हीं की श्रम शक्ति की बदौलत देश चलता है। तभी सरकारें इन दिनों युवा केंद्रित योजनाएं अधिक से अधिक बनाती हैं।
भारत में भी युवाओं की संख्या पैंसठ प्रतिशत है। सभी राजनीतिक दल इन युवाओं को लुभाने की तरह-तरह की कोशिशों में लगे रहते हैं। उन्हें ही देश की असली शक्ति बताया जाता रहा है। अब उनमें से बहुत से अवसाद का शिकार हो रहे हैं। कई स्थानों से रोजगार न होने या रोजगार चले जाने के कारण युवाओं द्वारा आत्महत्या की खबरें भी आ रही हैं। विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि युवा ठीक से खाएं और भरपूर नींद लें तो अवसाद से दूर रह सकते हैं।
मगर सवाल तो यही है कि अगर रोजगार चले गए हैं, शिक्षा पूरी नहीं हो पा रही तो इन्हें नींद ठीक से आएगी भी कैसे। भूख-प्यास, नींद, आराम, यहां तक कि खुशी भी तो हमारी शिक्षा और उससे मिलने वाले रोजगार से जुड़ी होती है।
हाल ही में भारत के बारे में भी जीओक्यूआईआई ने भी एक अध्ययन किया था। उसमें जो आंकड़े आए, वे बेहद चौंकाने वाले थे। इसमें बताया गया था कि लाॅकडाउन के दौरान भारत के 43 प्रतिशत लोग अवसाद के शिकार हुए हैं। उनकी जीवनशैली बिगड़ रही है। ये संख्या बेहद चिंतित करने वाली है। जिन दस हजार लोगों ने इस अध्ययन में भाग लिया था, उनमें से 57 प्रतिशत ने बताया कि वे हमेशा थकान महसूस करते हैं। अध्ययन में यह भी पाया गया कि युवक कम व्यायाम कर रहे हैं। आखिर करेंगे भी कैसे जब वे हमेशा थकान महसूस करते हैं। अवसाद का हमारे स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ता है। इसके अलावा उनका रुझान बाहर के खाने की तरफ भी अधिक था।
अवसाद के शिकार लोगों को सलाह दी जा रही है कि अगर वे दुखी हैं, अकेलापन महसूस कर रहे हैं तो वे अपने दोस्तों से बातें करें। परिवार के सदस्यों के साथ मिलजुलकर रहें। अवसाद और चिंताओं को व्यायाम और प्राणायाम से दूर करें। अपनी शक्ति को पहचानना भी जरूरी है। कौन से ऐसे कारण हैं जो आपको अवसाद और चिंता की ओर ले जाते हैं, उनकी पहचान करें। उनसे निकलने का प्रयास करें।
अगर इन बातों से नहीं लड़ पा रहे हैं, तो डाक्टर की मदद जरूर लें। डाक्टर जो दवाएं दें, उन्हें बताए अनुसार समय पर लें। यदि दवाओं का ठीक असर न हो रहा हो, तो डाक्टर को बताएं, जिससे कि वे दवाएं बदल सकें। जिन माताओं ने हाल ही में शिशुओं को जन्म दिया है, उन्हें अवसाद से बचाना बेहद जरूरी है क्योंकि इसका असर न केवल उन पर बल्कि उनके नवजात शिशुओं पर भी पड़ सकता है।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।