नयी दिल्ली, 6 सितंबर (एजेंसी)
केरल के महंत केशवानंद भारती की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट से वर्ष 1973 का चर्चित ‘संविधान के मूल ढांचे’ के सिद्धांत पर फैसला आया, जिसने संविधान में संशोधन को लेकर संसद के अधिकारों को न केवल सीमित किया बल्कि साथ-साथ न्यायपालिका को संशोधन की समीक्षा का अधिकार मिला। भारत के कानूनी इतिहास में आए ऐतिहासिक फैसले में भारती याचिकाकर्ता थे और रविवार को उनकी मौत हो गई। वह वर्ष 1970 में केरल के कासरगोड स्थित इदनीर हिंदू मठ के वंशानुगत प्रमुख थे और केरल सरकार के दो भूमि सुधार कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसमें धार्मिक संपत्ति के प्रबंधन पर पाबंदी लगाई गई थी। इस मामले में कई चीजें पहली बार हुई। इस मामले की सुनवाई अबतक की सबसे बड़ी पीठ (13 न्यायाधीशों की पीठ) में हुई और 68 दिनों तक सुनवाई हुई जो अबतक का रिकार्ड है। अदालत ने मामले पर 703 पन्नों का फैसला सुनाया। इस मुकदमे में 31 अक्टूबर 1972 को बहस शुरू हुई और 23 मार्च 1973 को समाप्त हुई। हालांकि, मामले में आया ऐतिहासिक फैसला महत्वपूर्ण है जिसने छह के मुकाबले सात के बहुमत से उस को सिद्धांत को समाप्त कर दिया कि संसद को संविधान के हर हिस्से को संशोधित करने का अधिकार है। इस पीठ की अध्यक्षता तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस एम सीकरी ने की। इस पीठ में उच्चतम न्यायालय के सुप्रसिद्ध न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच आर खन्ना भी थे।