रेणु खंतवाल
वो रहने वाली महलों की, सीआईडी, रिश्ते, आहट, देवी, विष्णु पुराण, इश्श् कोई है, रंजू की बेटियां जैसे धारावाहिकों में अपनी दमदार भूमिकाओं के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री रीना कपूर इन दिनों स्टार भारत के शो ‘आशाओं का सवेरा धीरे धीरे से’ में अहम भूमिका में नज़र आ रही हैं। हाल ही में रीना कपूर से हुई बातचीत
इतने शो करने के बाद भावना का किरदार निभाना आपके लिए क्यों जरूरी था? क्या खास है इसमें?
भावना का किरदार हमारे समाज की उस हकीकत को बताता है जो कभी न कभी हर इंसान महसूस करता है। यह उस महिला की कहानी है जिसका पति अब नहीं है। समाज में मानते हैं कि घर का बड़ा पुरुष हमारी सुरक्षा की गारंटी जैसा है लेकिन अगर किसी घर का मुखिया ही चला जाए तो…। इस शो में दिखाया है कि किसी के जाने के बाद उसके पीछे रह गये लोगों का जीवन संघर्ष कैसा रहता है।
आपके कई रोल फेमस हुए। एक स्थापित कलाकार के लिए नये की खोज कितनी आसान रहती है?
बिल्कुल आसान नहीं होती। क्योंकि जैसे ही आपका कोई किरदार हिट होता है वैसे ही रोल आपके पास आने लगते हैं। मेरे साथ भी ऐसा हुआ लेकिन मैंने बहुत ऑफर इसीलिए छोड़े क्योंकि मैं ज्यादा काम करने के बजाय नया व चुनौतीपूर्ण किरदार निभाना चाहती हूं। यही वजह कि मेरे एक के बाद एक शो नहीं आते। केवल मनोरंजन के लिए या दिखती रहूं इसलिए काम करना मुझे पसंद नहीं।
मनोरंजन जगत में माना जाता है कि दिखोगे तो बिकोगे। दिखोगे नहीं तो भुला दिए जाओगे। क्या ऐसा होता है?
हां, ऐसा होता है। अगर आप काफी दिनों तक नहीं दिखते तो लोगों के दिमाग से आप निकल जाते हो। ऐसा इंडस्ट्री में बहुत सारे लोगों के साथ हुआ भी। लेकिन इसके साथ ही मैं मानती हूं कि जो आपके भाग्य में लिखा है वो जरूर मिलेगा। इसलिए मेरे हिस्से का काम मुझे मिल ही जाता है।
कभी ऐसा हुआ कि आर्थिक मजबूरी के चलते आपको काम करना पड़ा हो?
नहीं, भगवान का शुक्र है मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। एक्टिंग करना पसंद है इसलिए सिर्फ पसंदीदा काम करती हूं। लेकिन सच है कि बहुत कलाकारों को कई बार आर्थिक मजबूरी में भी काम करना पड़ता है।
काम चुनने के लिए आपकी प्राथमिकता क्या रहती है?
पहले नम्बर पर यह कि मेरा रोल क्या है। दूसरे नम्बर पर प्रोडक्शन हाउस। यानी जिनके साथ मैं काम कर रही हूं उनके साथ मैं सहज हूं या नहीं।
क्या कभी पीछे मुड़कर देखती हैं अपने सफर को?
मैं ज्यादा इस बारे में सोचती ही नहीं हूं कि क्या खोया क्या पाया। जो चीज़ें बदलना आपके हाथ में नहीं है उसके बारे में क्यों सोचना।
आपकी नज़र में टीवी का बेहतरीन दौर कौन-सा रहा?
मेरी नज़र में टीवी का सबसे अच्छा दौर वो रहा है जब डेली सोप नहीं होते थे। तब लोगों को रचनात्मकता के साथ काम करने का वक्त मिलता था। न ही दर्शकों की तरफ से यह दबाव होता था कि हर एपिसोड उस धमाकेदार अंत में खत्म हो।