गिरीश पंकज
जैसे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है, उसी तरह गड्ढे भी एक हैं। जहां जाइएगा, इन्हें पाइयेगा। जयपुर से लेकर रायपुर तक सड़कों के गड्ढे एक हैं। झुमरीतलैया से लेकर ऊटपटांगपुर तक गड्ढे अपने अस्तित्व को लेकर बड़े सजग रहते हैं। गड्ढे गरीब बच्चों के स्वीमिंग पूल होते हैं। पैसे वाले फीस देकर स्विमिंग पूल में तैरने जाते हैं मगर गरीब बच्चे गड्ढों की कृपा से नि:शुल्क ही तैर लेते हैं। गड्ढों के हिसाब से आप अनुमान लगा सकते हैं कि उस शहर के निगम के अफसरों की कमाई कितनी होगी।
सच पूछें तो गड्ढे हमें अनुशासन सिखाते हैं। गड्ढे हमारे मार्गदर्शक हैं। वे हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि एे भाई, ज़रा सामने देखकर चलो। गड्ढे उस मुहावरे को सार्थक करते हैं, जिसमें कहा गया कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वो एक दिन उसी में गिरता है। गड्ढे हमें प्रभु-स्मरण प्रेरित करते हैं। घर से निकलते वक्त घर के लोग कहते हैं, ‘जाओ वत्स, गड्ढों से भगवान तुम्हारी रक्षा करेंगे।’
बड़े छलिए किस्म के होते हैं गड्ढे। ऊपर से जल नज़र आता है और उसके पीछे एक गड्ढा मुस्कराते हुए इंतज़ार करता है कि कब कोई इधर आए और मैं कहूं, आ गले लग जा। आदमी किसी गड्ढे से बचकर आगे बढ़ता है तो गड्ढा चिढ़ कर कहता है, कब तक बचोगे बच्चू, आगे हमारा बड़ा भाई बैठा है, गले लगाने के लिए।
उस दिन चौराहे का एक छोटा गड्ढा बड़े गड्ढे को देख कर दुखी हो रहा था। मन-ही-मन सोच रहा था कि कब मैं भी बड़ा गड्ढा बनूंगा। लोग आपस में चर्चा करेंगे, अखबारों में मेरे बारे में स्टोरी छपेगी। फोटू छपेगी। जैसे अभी छपती है कि महात्मा गांधी मार्ग में बड़े-बड़े गड्ढे हैं। छोटा गड्ढा सोचता है, कितनी स्वार्थी है दुनिया, हम छोटों की तरफ ध्यान नहीं देती। अरे, आज जो बड़े गड्ढे हैं, वे भी छोटे थे। वह तो नगर निगम की कृपा से देखते-ही-देखते बड़े हो गए। करुणा और कमीशनखोरी से भरे अधिकारी आज नहीं तो कल हम पर कृपा करेंगे। बस, केबल बिछाने वालों से कुछ सेटिंग हो जाए।
गड्ढे अपने भाग्य को सराहते हैं। चिकनी सड़कों की चर्चा कम होती है, मगर गड्ढों की चर्चा खूब होती है। इसलिए कभी-कभी अच्छी-खासी सड़क भी गड्ढा बनने को लालायित हो उठती है और एक दिन उसकी इच्छा पूरी हो जाती है। उस सड़क को नगर निगम वाले खोद कर चले जाते हैं और सड़क गद्गद हो जाती है। लोग गिरते रहेंगे, हाथ-पैर तुड़वाते रहेंगे, तब जाकर कुम्भकर्ण के वंशज जागेंगे और गड्ढे से क्षमा-याचना करते हुए उसे पाट देंगे। मगर कुछ ऐसा पाटेंगे कि बहुत दिनों तक गड्ढे वाली फीलिंग बनी रहेगी। लोग वहां से गुजरेंगे और एक बार फिर उनकी गाड़ी वहां धंस जाएगी। तब लोगों को समझ में आएगा कि अच्छा-अच्छा, वंस अपान ए टाइम यहां एक गड्ढा हुआ करता था! दबा हुआ गड्ढा खुश होगा कि अभी भी मेरा अस्तित्व बरकरार है। मुझको ढंकने की कोशिश करने वालो, कुछ दिन और मुझे अपने अस्तित्व पर गर्व करने दो।