पंकज चतुर्वेदी
दिल्ली के प्रगति मैदान में बनी सुरंग-सड़क को देश के वास्तु का उत्कृष्ट उदाहरण कहा जा रहा था। सबसे घनी पूर्वी दिल्ली और गाज़ियाबाद की कोई अस्सी लाख आबादी को मध्य-दक्षिण दिल्ली से जोड़ने वाली सुरंग बीते दिनों एक ही बारिश में स्विमिंग पूल बन गई इसकी लागत कोई 923 करोड़ है। इसकी गुणवत्ता और भविष्य की बात छोड़िये, इसके शुरू होने के दस दिन बाद ही इस पर जाम लगने लगा था, बरसात का पानी भर रहा है सो अलग। यहां बेमौसम सीलन है और आला इंजीनियर वह कारण नहीं तलाश पा रहे जिसके चलते इसकी सीमेंट वाली सड़क और दीवारों पर सीलन आ रही है। अभी कुछ फुहारें क्या पड़ीं, दिल्ली और उसके आसपास के सभी महानगर— गाजियाबाद, नोएडा, गुडगांव पानी-पानी हो गए। कई सड़कों पर पांच किलोमीटर तक लंबा जाम लग गया।
गर्मी से निजात के आनंद की कल्पना करने वाले सड़कों पर जगह-जगह पानी भरने से ऐसे दो-चार हुए कि अब बारिश के नाम से ही डर रहे हैं। बारिश भले ही रिकार्ड में बेहद कम थी, लेकिन आधी दिल्ली ठिठक गई। यह तो हर साल की कहानी है और देश के कोई दो दर्जन महानगरों की त्रासदी है। हर बार सारा दोष नालों की सफाई न होने, बढ़ती आबादी, घटते संसाधनों और पर्यावरण से छेड़छाड़ पर थोप दिया जाता हैं। विडंबना है कि शहर नियोजन के लिए गठित लंबे-चौड़े सरकारी अमले पानी के बहाव में शहरों के ठहरने पर खुद को असहाय पाते हैं। दुखद है कि जाम का कारण बनने वाला पानी का भराव उन जगहों पर होता है जिन्हें सड़क निर्माण तकनीक की आधुनिक संरचना कहते हैं— अंडरपास व फ्लाई ओवर।
देश की राजधानी दिल्ली में सुरसामुख की तरह बढ़ते यातायात को सहज बहाव देने के लिए बीते एक दशक के दौरान ढेर सारे फ्लाई ओवर और अंडरपास बने। कई बार दावे किए गए कि अमुक सड़क अब ट्रैफिक सिग्नल से मुक्त हो गई है, इसके बावजूद दिल्ली में हर साल कोई 185 जगहों पर 125 बड़े जाम और औसतन प्रति दिन चार से पांच छोटे जाम लगना आम बात है। जानकर आश्चर्य होगा कि बरसात होते ही चाहे दिल्ली हो या गुरुग्राम, वहां के अंडरपास जाम हो जाते हैं और शहर की सड़कों पर वाहन बेबस अटके रहते हैं।
बारिश के दिनों में अंडरपास में पानी भरना ही था, इसका सबक हमारे नीति-निर्माताओं ने आईटीओ के पास के शिवाजी ब्रिज और कनाट प्लेस के करीब के मिंटो ब्रिज से नहीं लिया था। ये दोनों ही निर्माण बेहद पुराने हैं और कई दशकों से बारिश के दिनों में दिल्ली में जल-भराव के कारक रहे हैं। इसके बावजूद दिल्ली को ट्रैफिक सिग्नल मुक्त बनाने के नाम पर कोई चार अरब रुपये खर्च कर दर्जनभर अंडरपास बना दिए गए। लक्ष्मीनगर चुंगी, द्वारका मार्ग, मूलचंद, पंजाबी बाग आदि कुछ ऐसे अंडरपास हैं जहां थोड़ी-सी बारिश में ही कई-कई फुट पानी भर जाता है।
दक्षिण-पूर्वी जिले में एमबी रोड पर स्थित पुल प्रह्लादपुर रेलवे अंडरपास में तो हर साल बरसात में पानी भरना अब किसी को चिंतित नहीं करता। वहां पिछले साल एक मौत भी हो गई थी। गुरुग्राम शहर में अंडरपास में पानी भरने से पिछले तीन साल में तीन लोगों की मौत हो गई है। हाल ही में खेड़कीदौला अंडरपास में बारिश के बाद भरे पानी में डूबने से एक शख्स की मौत हो गई थी। इसके अलावा राजीव चौक अंडरपास, बजघेड़ा रेलवे अंडरपास और हीरो होंडा चौक अंडरपास में भी जलभराव हो जाता है। फरीदाबाद के एनएचपीसी, ग्रीन फील्ड कॉलोनी अंडरपास और ओल्ड फरीदाबाद अंडरपास का भी यही हाल है। सबसे शर्मनाम तो है हमारे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को जोड़ने वाले अंडरपास का नाले में तब्दील हो जाना। कहीं पर पानी निकालने वाले पंपों के खराब होने का बहाना है तो सड़क डिजाइन करने वाले नीचे के नालों की ठीक से सफाई न होने का रोना रोते हैं तो दिल्ली नगरपालिका अपने यहां काम नहीं कर रहे कई हजार कर्मचारियों की पहचान न कर पाने की मजबूरी बता देती है।
दरअसल, अंडरपास की समस्या केवल बारिश के दिनों में ही नहीं है। आम दिनों में भी यदि यहां कोई वाहन खराब हो जाए या दुर्घटना हो जाए तो उसे खींच कर ले जाने का काम इतना जटिल है कि जाम लगना तय ही होता है। असल में इनके डिजाइन में ही खामी है जिससे बारिश का पूरा जल-जमाव उसमें ही होता है। जमीन की गहराई में जाकर ड्रेनेज किस तरह बनाया जाए, ताकि पानी की हर बूंद बह जाए, यह तकनीक अभी हमारे इंजीनियरों को सीखनी होगी।
अंडरपास का हर बार तालाब बन जाना गाजियाबाद के गौशाला अंडरपास की स्थाई समस्या है तो जयपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर गुडगांव के लिए जाने वाले प्रत्येक रपटे पर बारिश का पानी जमा होता ही है। दिल्ली के हवाई अड्डे से लेकर दिलशाद गार्डन तक के अंडरपास जरा से बादल बरसने पर दरिया बन जाते हैं। फरीदाबाद में प्रत्येक पुल बरसात के बाद जाम हो जाता है। कुछ ही घंटों में होने वाला जाम ईंधन की बर्बादी, उससे उपजे कार्बन के कारण धरती को स्थाई नुकसान तथा ईंधन की खरीद पर भारत के विदेशी पूंजी के व्यय में इजाफा करता है। जाहिर है कि अंडरपास के डिजाइन बरसात को ध्यान में रख कर बनाए जाने आवश्यक हैं ताकि नुकसान को टाला जा सके।
यह विडंबना है कि हमारे नीति-निर्धारक यूरोप या अमेरिका के किसी ऐसे देश की सड़क व्यवस्था का अध्ययन करते हैं जहां न तो दिल्ली की तरह मौसम होता है और न ही एक ही सड़क पर विभिन्न तरह के वाहनों का संचालन। उसके बाद सड़क, अंडरपास और फ्लाई ओवरों के डिजाइन तैयार करने वालों की शिक्षा भी ऐसे ही देशों में लिखी गई किताबों से होती हैं। नतीजा ‘आधी छोड़ पूरी को जावे, आधी मिले न पूरी पावे’ का होता है। हम अंधाधंुध खर्चा करते हैं, उसके रखरखाव पर लगातार पैसा फूंकते रहते हैं, उसके बावजूद न तो सड़कों पर वाहनों की औसत गति बढ़ती है और न ही जाम जैसे संकटों से मुक्ति। काश! कोई स्थानीय मौसम, परिवेश और जरूरतों को ध्यान में रखकर जनता की कमाई से हासिल टैक्स को सही दिशा में व्यय करने की भी सोचे। सरकार में बैठे लोग भी इस संकट को एक खबर से कहीं आगे की सोच के साथ देखें।