क्षमा शर्मा
हाल ही में नैरोबी अफ्रीका के बारे में एक खबर आई। इसमें हाथियों के खान-पान के बारे में शोध किया गया था। बताया गया कि हाथी अपने खाने में विविधता पसंद करते हैं। इस शोध का मुख्य उद्देश्य हाथियों की खान-पान की आदतें जानना था जिससे कि भविष्य में उन्हें ठीक से संरक्षित किया जा सके। इस शोध में केन्या के हाथियों को दो समूह में बांटा गया था। जिससे कि उनकी खान-पान की आदतों का ठीक से पता लगाया जा सके। वैज्ञानिकों को इसमें सफलता भी मिली। वे दोनों समूहों के हाथियों के बारे में पता करने में सफल रहे कि किसे किस तरह के पौधे खाना पसंद है। हाथियों के बारे में मशहूर है कि उन्हें गन्ने और केले बहुत पसंद होते हैं। असम के बारे में अक्सर खबरें आती रहती हैं कि वहां हाथी सैनिक कैम्पस में घुसकर टैंकों में रखी शराब को पी जाते हैं। वे नशे में खूब उत्पात भी मचाते हैं।
वैज्ञानिक तब तक किसी बात को नहीं मानते जब तक कि उन्हें किसी बात के प्रमाण न मिलें, लेकिन जो लोग जानवरों को पालते हैं, उनके नजदीक रहते हैं वे इस बात को जानते ही हैं कि जानवर भी अपने स्वाद के प्रति बेहद सजग होते हैं। वे भी नापसंद आने वाले खाद्य पदार्थ को नहीं खाते।
सालों पहले एक रिश्तेदार के यहां हरियाणा में जाना हुआ था। यही दिन थे। बारिश और आम का मौसम था। गृहस्वामिनी ने एक बड़े भगौने में आम पानी में भिगोकर रख दिए, जिससे कि जब वे ठंडे हो जाएं और उनका ताप निकल जाए तो खाए जा सकें। सब लोग कमरे में थे, उनका कुत्ता भी वहीं था। अचानक देखा गया कि कुत्ता पेट के बल धीरे-धीरे खिसकने लगा, दौड़ता तो सबको पता चल जाता। हो सकता है कि उसे रोकने की कोशिश की जाती। किसी को पता न चले, इसके लिए वह ऐसा कर रहा था। पेट के बल धीरे-धीरे खिसक रहा था। ऐसा करता वह वरांडा पार करके रसोई के पास पहुंचा। वहां दो पांवों पर खड़े होकर उसने स्लैब पर रखे भगौने में भीगे एक आम को मुंह में दबाया और बाहर भाग गया। गृहस्वामिनी ने उसे ऐसा करते देखा तो डांटा-अच्छा चोरी कर रहा है। अब लौट के आना तब बताऊंगी। मगर वह वहां होता तभी तो मालकिन की डांट सुनता। वह तो बाहर दूर बैठा मजे से आम खा रहा था। उसे आम, खीरा, टमाटर, गाजर खाने का भी बहुत शौक था। आम की खुशबू आते ही वह बेचैन हो उठता था। एक दूसरे पिल्ले को देखा था जिसे संतरा खाने का बहुत शौक था। संतरा छीलते ही वह घर के किसी भी कोने में बैठा हो, दौड़ा चला आता था। और हाथ से छीनने की कोशिश करता। संतरे की फांकें वह आदमी की तरह ही खाता। उसके बीज उगलता जाता था।
एक दूसरे मित्र के यहां एक बार जाना हुआ था। मित्र ने अंकुरित चने परोसे थे। उनमें से कुछ फर्श पर गिर पड़े। अचानक सामने बैठी सफेद बिल्ली आई और बिखरे हुए चने पंजे से बीन-बीनकर खाने लगी। ये बातें अपनी आंखों से देखी हैं, वरना तो विश्वास करना ही मुश्किल हो।
इन चौपायों की तरह ही पक्षियों की भी खान-पान के मामले में पसंद-नापसंद होती है। एक तोते को चाय इतनी पसंद थी कि वह घर वालों को चाय पीते देख पिंजरे में उछल-कूद मचाने लगता था। जब तक उसे चाय न दी जाए शोर मचाता रहता था। कहता था-मम्मी, चाय दो, चाय दो। जब उसे चाय और बिस्कुट दिए जाते तो चोंच में बिस्कुट को पकड़कर चाय में डुबोता और खाता। इसी तरह कौए भी यदि सूखे चावल खाने को पाएं तो वे उसे पानी में भिगोते हैं, तब खाते हैं। दूसरी चिड़ियों को नमकीन खाना इतना पसंद नहीं होता, मगर कौए इसका अपवाद होते हैं। हां, वे कबूतरों की तरह बाजरा या गेहूं अथवा मक्का नहीं खाते। मेरी खिड़की पर आने वाला कौआ बिस्कुट खाता है, ब्रेड, रोटी भी। कभी-कभी जब उसका इन चीजों को खाने का मन नहीं होता, तो इनकी तरफ देखता भी नहीं है। बंद खिड़की पर चोंच मारकर कुछ और खाने को मांगता है। न दो कांव-कांव करके पूरा घर सिर पर उठा लेता है। ऐसे में यदि घर में कोई मिठाई रखी है और वह उसे दे दी जाए तो बड़े शौक से खाता है। चोंच में भरकर अपने बाल-बच्चों के लिए भी ले जाता है। कई बार लगता है कि शायद वह मादा कौआ होगी, लेकिन कोई जरूरी नहीं क्योंकि पक्षियों में पिता भी अपने बच्चों को पालते हैं। उनके खान-पान का प्रबंध करते हैं।
जानवरों की दुनिया में भी तरह-तरह के खेल, मेल, मिलाप, लड़ाई-झगड़े हैं, शत्रु-मित्र की पहचान है मनुष्य की दुनिया की तरह। उन्हें भी स्वाद की पहचान है, जबकि मनुष्य इसे सिर्फ अपनी थाती समझता है। वह अपने को धरती का मालिक भी मानता है, जबकि यह धरती उन सबकी है, जो इस पर रहते हैं। इनमें तमाम पशु-पक्षी, कीट, पतंग, पेड़, पौधे, नदी, पहाड़, समुद्र सब शामिल हैं। इनमें से हर एक के अपने-अपने जीवन जीने, रहने-सहने के तौर- तरीके हैं। जिनमें वक्त के साथ ये बदलाव भी करते हैं। जैसे कि बिल्लियों को कूलर या एसी में सोना इन दिनों काफी पसंद आता है, जबकि उन्हें कहां से इन चीजों की आदत पड़ी। जब से वे अस्तित्व में आईं तब क्या कूलर और एसी ही थे? लेकिन वक्त के साथ सब अपने को दुनिया के बदलाव के नियम के तहत ही बदलते हैं। इसी तरह किसी गाय की पसंदगी-नापसंदगी देखनी हो तो उसे कुछ चीजें खिलाकर देखिए। जो चीजें वह नहीं खाना चाहती, उनसे तुरत मुंह फेर लेगी, सिर हिलाकर खाने से मना करेगी, फिर भी न माने तो सींग हिलाकर मारने की धमकी भी देगी। है न दिलचस्प।
सच तो ये है कि हम मंगल पर एक वायरस खोजने को बेकरार हैं कि काश! जीवन का कोई चिह्न मिल सके। यह भी क्या हमारे अलावा भी इस अंतरिक्ष में किसी और का अस्तित्व है, लेकिन हमारे आसपास, बाजू में मनुष्य से इतर जो दुनिया है, जहां न जाने कितने जीवधारी, पेड़-पौधे रहते हैं, उनकी तरफ हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता। जबकि उन्होंने भी लगातार अपने जीवन के तरीके बदले हैं। बहुत से घोसलों को घास के मुकाबले टीवी एंटिना के तारों से बना देखा है। यह भी एक बदलाव ही है।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।