लक्ष्मीकांता चावला
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भारत के साथ ही ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की राजधानी लंदन के इंडिया हाउस अर्थात भारतीय भवन का भी ऐतिहासिक महत्व है। यहां भारत के जो बेटे शिक्षा प्राप्ति के लिए गए और राष्ट्रभक्ति के गहरे रंग में रंगे गए उनका विशेष नाम और योगदान है। ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी ने अपने रिकार्ड में इंडिया हाउस को ‘रहस्य घर’ और ‘आतंक घर’ लिखा है। यहां के देशभक्त सक्रिय गुट को शैतान और उसके दर्जन घृणित साथी इत्यादि कहकर लांछित किया था। लंदन स्थित 65 प्रोमवेल एवेन्यू हाई गेट की एक बिल्डिंग जिसे सर्वप्रथम श्यामजी कृष्ण वर्मा ने किराए पर लिया और 1 जुलाई 1905 को एचएम हिंडमैन के करकमलों द्वारा इस भवन का उद्घाटन करवाया।
इसे ऐतिहासिक संयोग और भारत मां का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि 9 जून, 1906 को भारत से चलकर 3 जुलाई, 1906 को मदनलाल ढींगरा लंदन पहुंचे और उससे पहले 26 मई, 1906 को चलकर 10 जून, 1906 को वीर सावरकर पहले ही लंदन पहुंच चुके थे। अक्तूबर 1906 में लंदन यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग कालेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ढींगरा को दाखिला मिल गया। एक दिन घूमते-घूमते उन्होंने इंडिया हाउस देखा और फिर वहीं के हो गए। इंडिया हाउस को देशभक्तों की नर्सरी भी कहा जाता है। जब ढींगरा भारत भवन पहुंचे तो वहां पर भाषण चल रहा था। वीर सावरकर का। ढींगरा का हृदय मानों वहीं का हो गया जहां उन्होंने सावरकर का भाषण सुना और श्यामजी कृष्ण वर्मा से भेंट की। इंडिया हाउस के तिमंजिला भवन में विद्यार्थियों को उस समय केवल 16 रुपये प्रति सप्ताह देकर भोजन, आवास की सुविधा मिलती थी। यहां के विद्यार्थी सादा भारतीय भोजन करते। यहां सुबह-शाम वंदेमातरम का स्वर गूंजता। इनकी गतिविधियों को देखकर अंग्रेज सरकार सतर्क रहती। इंडिया हाउस में जो सबसे ज्यादा चर्चा रहती थी वह थी कर्जन वाइली की भारतीयों के लिए शत्रुता, पर कर्जन वाइली के विरुद्ध भी जो वातावरण बनता गया उससे मदनलाल के हृदय में एक तूफान सा उठ खड़ा हुआ। इस दौरान युवकों को अधिक से अधिक संख्या में अपने साथ जोड़ने के लिए फ्री इंडिया सोसाइटी का भी गठन किया गया और हर रविवार को यहां साप्ताहिक बैठक की जाती थी। दूर दूर से विद्यार्थी सावरकर जी को सुनने और इंडिया हाउस को आजादी का मंदिर मानकर इकट्ठे होते थे। मई 1908 में इसी भारत भवन में भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम 1857 की क्रांति की वर्षगांठ मनाई गई, जिसे शहीद दिवस नाम दिया गया। भारत भवन को सजाया गया और यहां 1857 के वीरों- बहादुर शाह जफर, नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, राजा कुंवर सिंह, मौलवी अहमद शाह जैसे शहीदों को याद किया गया। समारोह का शुभारंभ वंदेमातरम गीत से हुआ। बंगला, मराठी, पंजाबी में कविताएं गाई गईं और हरनाम सिंह द्वारा गाए शब्द ने एक जोश भर दिया- जो ताउ प्रेम खेलन का चाव, सिर धर तली गली मोरी आयो।
इसी भारत भवन में एक इतिहास लिखा गया। एक दिन रात को सावरकर और ढींगरा एकांत में रहे। ढींगरा ने कहा वे देश के लिए प्राण देना चाहते हैं। वहां परीक्षा भी हुई और टेबल पर हाथ रख दिया मदनलाल ने, जिस पर एक सुआ सावरकर ने गाड़ दिया। रक्त की धारा तो बही पर वैसा ही तेज मदनलाल के चेहरे पर, इसके साथ ही मुस्कान और दृढ़ संकल्प की छाया। सावरकर और ढींंगरा गले मिले। वैसे ही जैसे कभी लाहौर में सांडर्स की हत्या के बाद कानपुर में शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर की भेंट हुई थी नया इतिहास लिखने के लिए।
याद रखना होगा कि इसी इंडिया हाउस में भारत की आजादी के दीवाने पलते गए, पढ़ते गए, बढ़ते गए और अंतत: एक के बाद एक देश की स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अर्पण होने के लिए आगे बढ़ते गए। इन्हीं दिनों समाचार मिला कि अंग्रेजी शासकों द्वारा वीर सावरकर के बड़े भाई को काले पानी की सजा दी गई। लाला लाजपत राय और सरदार अजीत सिंह को देश निकाला दिया गया। लोकमान्य तिलक को छह वर्ष की सजा सुनाकर मांडले जेल भेजा और इससे भी अधिक दुखद पर वीरों का सिर ऊंचा करने वाला समाचार अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सत्येंद नाथ बोस को फांसी पर चढ़ा दिया गया। ऐसी घटनाओं ने हर देशभक्त का हृदय क्रांति की ज्वाला से धधक उठा। ऐसे समय में इंडिया हाउस से जुड़े नौजवानों ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि ब्रिटिश सरकार पर हमारे प्रार्थनापत्रों आदि का कोई असर नहीं पड़ेगा। सरकार को झुकाना है तो हमें हिंसक कदम उठाने होंगे। वीर सावरकर जी का शिष्य ढींगरा सबसे आगे निकला और 1 जुलाई 1909 को उसने इम्पीरियल इंस्टीट्यूट लंदन के जहांगीर हाल में कर्जन वायली को गोलियों से भून दिया। शहीद मदनलाल ढींगरा का 17 अगस्त को बलिदान दिन है। लंबे संघर्ष के बाद 114 वर्ष बाद ढींगरा स्मारक अमृतसर में रष्ट्रभक्ति के स्मारक के रूप में तैयार है। अब कर्तव्य हमारा है अपने शहीदों को याद करें।