हरजोत सिंह सिद्धू
पिछले ही महीने एक काम के सिलसिले में इलाहाबाद जाना हुआ। इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, इलाहाबाद विभिन्न स्वतंत्रता संग्राम गतिविधियों का केंद्र रहा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चौथा और आठवां सत्र क्रमशः 1888 और 1892 में इसी शहर में आयोजित किया गया था। सदी के अंत में, इलाहाबाद भी क्रांतिकारियों के लिए एक केंद्र बिंदु बन गया। अनेक ऐतिहासिक गतिविधियों वाला यह शहर हमारे रणबांकुरों की यादें भी समेटे है।
भगत सिंह से भी जुड़ा है यह शहर। वर्ष 1928 में, भगत सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हॉलैंड हॉस्टल में अजय घोष (एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता) के साथ एक रात बिताई थी। महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मल, अशफाकउल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लहरी के नाम उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में उनकी स्वतंत्रता संग्राम गतिविधियों से जुड़े हुए रहे। यहां भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा सबसे प्रसिद्ध पार्क है। वर्तमान में इसे चंद्रशेखर आज़ाद पार्क के नाम से जाना जाता है। यह पार्क प्रिंस अल्फ्रेड की शहर यात्रा की स्मृति में 1870 में इलाहाबाद के मध्य में बनाया गया था। कुल 133 एकड़ में फैले इस पार्क को पहले ‘अल्फ्रेड पार्क’ कहा जाता था। कंपनी के शासनकाल के दौरान इसे ‘कंपनी बाग’ के नाम से जाना जाता रहा। गत 3 जुलाई, 2023 को, मैंने शाम को शहीदी स्थल पर ‘अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क’ में अमर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। पार्क में ‘आज़ाद’ के जीवन को दर्शाते मनमोहक प्रकाश, ध्वनि और जल शो भी आयोजित हुए। मुझे भगत सिंह के बारे में इतिहास की किताबें और फ़िल्में याद आईं, जिनमें अल्फ्रेड पार्क में चंद्र शेखर आज़ाद के बलिदान का दृश्य दिखाया और दर्शाया गया था।
27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद में पुलिस के सीआईडी के प्रमुख, जेआरएच नॉट-बोवर को किसी ने सूचना दी कि चन्द्रशेखर आज़ाद अल्फ्रेड पार्क में है और अपने सहयोगी सुखदेव राज से बात कर रहे है। यह सूचना मिलने पर बोवर ने इलाहाबाद पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए अपने साथ पार्क में आने के लिए आदेश जारी किया। पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया। डीएसपी ठाकुर विश्वेश्वर सिंह के साथ कुछ सिपाही राइफलों से लैस होकर पार्क में दाखिल हुए और गोलीबारी शुरू कर दी। अपनी रक्षा करने और अपने साथी सुखदेव राज की मदद करने के क्रम में आज़ाद बुरी तरह घायल हो गये। आज़ाद ने स्वतंत्रता संग्राम जारी रखने के लिए अपने सहयोगी को पार्क से बाहर जाने के लिए कहा और सुखदेव को पार्क से सुरक्षित भागने के लिए कवर फायर किया।
आज़ाद खुद को बचाने के लिए एक पेड़ के पीछे छिप गये और पीछे से गोलीबारी शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में और लंबी गोलीबारी के बाद भी आज़ाद डटे रहे। पर आखिर उन्होंने हमेशा आज़ाद रहने और कभी भी ज़िंदा न पकड़े जाने का अपना वादा पूरा करते हुए, अपनी बंदूक से आखिरी गोली खुद के सिर में मार कर शहीदी को प्राप्त किया। जब अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे तो पुलिस ने आजाद का शव बरामद किया। आज़ाद का खौफ इतना था कि आज़ाद को मरा हुआ देखकर भी पुलिस अधिकारी उनके पास आने से कतरा रहे थे।
आज़ाद की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद मैं इलाहाबाद संग्रहालय गया। संग्रहालय में प्रवेश करते ही हमने संग्रहालय टीम को बताया कि हम पंजाब से आए हैं। संग्रहालय का भ्रमण समाप्त करके हम लॉबी में बैठे। संग्रहालय की एक महिला कर्मचारी दौड़कर हमारे पास आई, पूछा- ‘सर, आप सभी पंजाब से हो? मैं आपको बताना चाहती हूं कि पिछले साल भगत सिंह के एक रिश्तेदार ने पार्क और संग्रहालय का दौरा किया था। वे भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां से मिट्टी लेकर आए थे।’ इतना कहकर वह महिला करमचारी हमें जामुन के पेड़ के पास ले गई, जहां पेड़ की जड़ों में मिट्टी डाली गई थी। यह पेड़ बिल्कुल आज़ाद की मूर्ति के पास था। यह दृश्य रौंगटे खड़े करने वाला था। ऐसा लगा कि दो महान क्रांतिकारी साथ-साथ खड़े हैं। दोनों ने वर्ष 1931 में अपने प्राणों की आहूति दे दी।