डॉ. मोनिका शर्मा
आपसी बातचीत का तरीका रिश्तों में सहजता भी ला सकता है और दूरियां भी। कहने-सुनने का तरीका ही यह तय करता है कि रिश्तों के हिस्से मजबूती आएगी या बिखराव। ऐसे में हर बात और जज़्बात को जाहिर करने के सही अंदाज़ को लेकर सोचना जरूरी है। शब्द हों या भाव, यूं लगना जरूरी है कि आप सचमुच साझी ज़िंदगी जी रहे हैं। पर्सनल बातचीत में भी अपनेपन का भाव जरूरी है। पर्सनल टॉक को लेकर हुए एक ताज़ा मनोवैज्ञानिक शोध के मुताबिक, मैं और मेरा जैसे एकवचन शब्दों के बजाय हम, हमारे और अपने जैसे बहुवचन शब्दों का उपयोग करने से रिश्ते मजबूत होते हैं। संवाद का यह रंग-ढंग जीवन में संतुष्टि की सौगात देता है। रिसर्चर्स ने इसे वी-टॉक का नाम दिया है। यह शोध लंबे समय तक इस्तेमाल किए गए शब्दों और पति-पत्नी के बीच रिश्ते से जुड़ा है।
भावनाओं का सेतु बने संवाद
अपनों के बीच भावनाओं का सेतु बनाने में आपसी संवाद की भूमिका अहम है। इसी शोध में सामने आया कि हर व्यक्ति की सोच और स्वभाव एक-दूसरे से अलग होते हैं, लेकिन फिर भी सभी घर में एक-दूसरे के साथ संतुलन बनाकर चलते हैं। अकसर व्यवहार बिल्कुल अलग होने और सोच एक-दूसरे से न मिलने के कारण रिश्ते खराब हो जाते हैं और कई बार टूट भी सकते हैं। ऐसे में वी-टॉक करने से हमारे मस्तिष्क में मैसेज चला जाता है कि पति-पत्नी दो अलग यूनिट नहीं बल्कि एक ही हैं। नतीजा यह कि लंबे समय तक रिश्ते बने रहते हैं। साझे संवाद से दोनों की भावनाओं में भी सहज मेल होने लगता है। जैसे एक को दर्द होता है तो दूसरा बिना कहे इसे पहचान लेता है। ऐसे कई पहलुओं पर वी-टॉक से जुड़ाव को मजबूती देने वाले परिणाम सामने आए हैं। यह कहीं न कहीं रिश्तों को मजबूती से जोड़ने वाला भावनाओं का पुल बनाने वाली बात ही है।
गहरे जुड़ाव को बल
शेयरिंग की सोच केयरिंग वाले जज़्बातों का जुड़ाव पैदा करती है। सम्बन्धों में मजबूती लाती है। लाजिमी भी है क्योंकि भावनाओं की यह हिस्सेदारी असल में जीवन को ही नहीं, मन के इमोशन्स को भी शेयर करने वाली बात है। यह साझी सोच हर मामले में संवेदनाओं को पोषित करती है। एक-दूजे के साथ सुख और उपलब्धियों के दौर में ही नहीं बल्कि तकलीफ़ों के समय भी जोड़े रखती है। हालिया बरसों में साझा जीवन जी रहे दो इन्सानों में भी बातचीत कम से कम होती जा रही है। संवाद की सहजता वाला परिवेश सिकुड़ रहा है। करीबी रिश्तों में भी न तो दुख को कहा जाता है और न ही सुख साझा करने की आदत बची है। अनकही सी ये दूरियां पति-पत्नी के उम्रभर के रिश्ते में भी मतभेद और मनमुटाव पैदा कर रही हैं। शक और संदेह का घेरा कसता जा रहा है। तलाक के मामले इस आधार पर दायर किए जा रहे हैं कि रिश्ते में आपसी संवाद न के बराबर है। साथ रह रहे दो लोग एक-दूजे को ठीक से जान तक नहीं पा रहे। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि बिना बातचीत के किसी भी रिश्ते को कायम रखना मुश्किल ही होता है। हर उम्र के लोगों में भावनात्मक जुड़ाव को पोसने के लिए अपने-अपने मन की कहना और सुनना आवश्यक है।
बच्चों की भी बेहतरी
वी-टॉक, यानी साझे जीवन के भाव से जुड़े संवाद से परवरिश का पहलू भी जुड़ा है। अभिभावकों के सहज और मर्यादित आपसी संवाद से बच्चों में शालीन भाषा का विकास होता है। इतना ही नहीं, पेरेंट्स का नियमित बातचीत करना बच्चों के पालन-पोषण पर भी गहरा असर डालता है। इसीलिए पेरेंट्स को अपनी चुप्पी के परिणामों के ऐसे पहलुओं पर भी गौर करना चाहिए। छुटपन से ही अपने आप में खोये रहने वाले माता-पिता के साथ रहने वाला बच्चा सामाजिक कौशल नहीं सीख पाता। घर में सहज और स्नेहपगे संवाद के अभाव में कई बार तो बच्चे जरूरी सूचनाएं तक शेयर नहीं कर पाते। जो उम्र खुलकर बोलना सीखने की होती है, उसमें बच्चे सहमे-से रहने लगते हैं। बिना सोचे अभिभावकों से अपनी इच्छाएं, शौक और सपने साझा करने की उम्र में बच्चे सधकर बोलने लगते हैं। परवरिश के मोर्चे पर यह बेहद असहज करने वाला पहलू है। यह सहमा सा बर्ताव बच्चों के सर्वांगीण विकास में बड़ी बाधा बनता है। ऐसे में पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती के लिए ही नहीं, बच्चों की मान-मनुहार और मनोबल के लिए भी जरूरी है कि घर में आपसी संवाद बना रहे।