डॉ. मोनिका शर्मा
मौजूदा दौर में बच्चों की परवरिश की रूपरेखा पूरी तरह बदल गई है। पालन-पोषण से पारम्परिक रंग-ढंग गायब हुआ है तो दूसरी ओर वर्चुअल दुनिया से संबंधित अनगिनत जोखिम जुड़ गए। आभासी दुनिया में बच्चों की निजता को ताक पर रख कर साझा की जा रही जानकारियां और तस्वीरें अपराधियों की राह आसान बनाने लगी हैं। माता-पिता जाने-अनजाने बच्चों का जीवन जोखिम में डाल रहे हैं। पैरेंटिंग से जुड़ा शब्द ‘शेयरेंटिंग’ अब सजग भर नहीं करता बल्कि चेताने वाली स्थितियां सामने रखता है। यही वजह है कि आभासी चमक-दमक और प्रशंसा के घेरे में घिरते अभिभावकों को चेताने के लिए जागरूकता अभियान चलाये जा रहे हैं। बीते दिनों असम पुलिस द्वारा शुरू किया गया अभियान बच्चों की निजता और सुरक्षा दोनों ही मोर्चों पर अभिभावकों को सतर्क करता है। यह मुहिम आभासी दुनिया में बच्चों की जानकारी, तस्वीरें और स्कूल आदि के पते-ठिकाने से जुड़े अपडेट्स साझा करने को लेकर अभिभावकों को सचेत करने से जुड़ी है। इस मुहिम में चार तस्वीरों पर चार कोट्स लिखकर लोगों तक संदेश पहुंचाया गया है। ये चारों वाक्य विचारणीय हैं।
बच्चे सोशल मीडिया ट्रॉफ़ीज नहीं हैं
‘शेयरेंटिंग’ की आदत को लेकर अभिभावकों को चेताने के लिए साझा की गई यह पंक्ति कम शब्दों में सब कुछ कहती है। वाकई बच्चों की मासूमियत और मुस्कुराहटें किसी ट्रॉफी के समान वर्चुअल दुनिया में शेयर करने के लिए नहीं हैं। उनका बचपना अभिभावकों की कोई उपलब्धि नहीं बल्कि ईश्वरीय वरदान है। दुनियावी रंगों से दूर सहजता से हंसने-मुस्कुराने का दौर। पेरेंट्स का समझना जरूरी है कि आए दिन सोशल मीडिया में शेयर करने भर को की गई गतिविधियां करने का पड़ाव नहीं होता बचपन। यह उम्र बेफिक्री के साथ रहने की है। बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी मैक्एफ़ी द्वारा अमेरिका में किए गए ‘द एज ऑफ़ कंसेंट’ नामक अध्ययन के अनुसार, 30 फीसदी अभिभावक अपने बच्चे की प्रतिदिन कम से कम एक तस्वीर या वीडियो सोशल नेटवर्क पर शेयर करते हैं। यों बच्चों को शो केस किया जाना बढ़ती उम्र के साथ या तो उनमें आत्ममुग्धता ले आता है या आक्रोश। अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे का जीवन कंटेन्ट भर नहीं है, न ही सराहना पाने भर को साझा की गई कोई उपलब्धि।
मासूमियत के स्नैपशॉट्स इंटरनेट पर चोरी होते हैं
एक बार पब्लिक प्लेटफॉर्म पर डाली गई सामग्री पर आपका कोई कंट्रोल नहीं रहता। आपकी प्रोफाइल से उठाकर बच्चों की तस्वीरें असुरक्षित और अजीबोगरीब वर्चुअल-सोशल समूहों में भी पहुंच जाती हैं। बच्चों का पीछा करने, ब्लैकमेलिंग और दुर्व्यवहार जैसी आपराधिक मानसिकता के लोगों के लिए यह राह आसान करने वाला बर्ताव है। बाल तस्करी के मामलों में भी सोशल मीडिया से बच्चों की जानकारी चुराने की बात सामने आई है। ध्यान रहे डिजिटल तस्वीरें और वीडियो आसानी से सहेजा जा सकने वाला डेटा हैं। दुर्भावनापूर्ण लोगों के लिए फेशियल रिकॉग्निशन जैसी तकनीक से बच्चे का नाम, स्थान और जन्म तिथि तक ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है। जो आपके बच्चे का पूरा नाम और स्थान जान लेना फोन नंबर आदि तलाशना अपेक्षाकृत आसान कर देता है। शेयर की गई छवियां चुराकर जुटाई गई सामग्री से अनगिनत सुरक्षा खतरे पैदा होते हैं।
बच्चों की प्राइवेसी सोशल मीडिया अटेंशन के लिए नहीं बेचें
बच्चों को भी सार्वजनिक मंचों पर अपनी पहचान और प्राइवेसी को बचाए रखने का इंसानी हक है। जबकि माता-पिता पल-पल की तस्वीरें सोशल मीडिया में डालते रहते हैं। शेयरेंटहुड : व्हाई वी शुड थिंक बिफोर वी टॉक अबाउट अवर चिल्ड्रन ऑनलाइन, की लेखिका लीह प्लंकेट के मुताबिक, हम जानते हैं कि बच्चों की कई अश्लील तस्वीरें वास्तविक बच्चों की तस्वीरें हैं। इन छवियों को फ़ोटोशॉप कर थोड़ा सुधारा जाता है। बच्चों की पहचान की चोरी का मामला संवेदनशील होता है इसलिए इंटरनेट पर अपने बच्चों के बारे में कुछ भी डालने से होने वाले संभावित खतरों के बारे में एक बार जरूर सोचें। फिर चाहे वह जानकारी किसी पर्सनल अकाउंट में ही क्यों न साझा की जाए। लीह के अनुसार, ‘प्राइवेसी एक मिथक है। कोई भी व्यक्ति आपकी निजी सामग्री का स्क्रीनशॉट ले सकता है। … बच्चों की छवियां और सूचनाएं न साझा करना ही बेहतर है।’
बच्चे की अपनी च्वाइस है
यह मानवीय मोर्चे पर बहुत अहम बात है। बच्चे का हक है कि वह अपने बारे किसे और कितना बताना चाहता है। अपने आप से जुड़ी कैसी बातें लोगों तक पहुंचाना या छिपाना चाहता है। कई बच्चे बड़े होने पर उस कंटेन्ट को पसंद नहीं करते जो अभिभावकों द्वारा उनके बचपन में साझा किया गया हो। कुछ तस्वीरों से तो उन्हें शर्मिंदगी भी महसूस होती है। पोस्ट करने से पहले, खुद से जरूर पूछें कि अगर आपका बच्चा यह पोस्ट देखेगा तो उसे कैसा लगेगा।