प्राचीन लोक परंपराएं तीज-त्योहार और विभिन्न सामाजिक मान्यताएं ही भारतीय संस्कृति को समृद्धता प्रदान करती हैं। प्रत्येक त्योहार और परंपरा में सामाजिक सद्भाव, समाजोत्थान और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश होता है। भारतवर्ष में हर माह कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। भाद्रपद कृष्णपक्ष नवमी को गोगा नवमी का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे हिंदू-मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ सभी जाति समुदायों के लोग मनाते हैं। इस प्रकार से गोगा नवमी सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है।
जाहरवीर गोगा जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1003 में भाद्रपद कृष्णपक्ष नवमी के दिन राजस्थान के ददरेवा स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम जेवर सिंह चौहान और माता का नाम बाछल देवी था। ऐसा माना जाता है की वीर गोगा जी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। जाहरवीर गोगा जी को पशुधन संरक्षक, सांपों के देवता और पर्यावरण संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। गोगा जी महाराज को कहीं घोड़े पर सवार, कहीं खेजड़ी के पेड़ के पास तो कहीं सांपों के साथ दिखाने की परंपरा है। गोगा नवमी के दिन मिट्टी के घोड़े को पूजने की परंपरा है। इस दिन गांव देहात में मेले लगते हैं और गोगा स्वरूप निशान की पूजा होती है। विशेष पकवान बनाते हैं।
बताया जाता है कि बाल्यकाल से ही गोगा जी को नाग देवता का ईष्ट प्राप्त था। अपने पिता जेवर सिंह की मृत्यु के बाद गोगा जी सिंहासन पर बैठे। उनके चचेरे भाई अर्जुन और सर्जन की वीर गोगा जी से बड़ी दुश्मनी थी। अपने चचेरे भाइयों और गोगा जी के बीच युद्ध हुआ। गोगा जी ने दोनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया। इससे नाराज उनकी माता ने उन्हें 12 साल का बनवास दे दिया। कहा जाता है कि गोगा जी ने शुद्ध होकर धरती मां से अपनी गोद में समेट लेने की प्रार्थना की और गोगा जी धरती में समा गए। उनकी पत्नी श्रीयल को बड़ा दुख हुआ और वह अपने सुहाग की वापसी के लिए गुरु गोरखनाथ की शरण में गईं। गोरखनाथ ने अपने तपोबल से गोगा जी को धरती से वापस प्राप्त कर लिया। वीर गोगाजी अपनी मां के डर से अपनी पत्नी से छुपकर मिलने लगे। इस बात की भनक जब उनकी मां को लगी तो मां ने क्रुद्ध होकर उसे आगे से मुंह न दिखाने के लिए कह डाला। गोगा जी ने भी अपने आपको धिक्कारा और एक जगह समाधि लगाकर उसमें लीन हो गए। एक दिन उनकी पत्नी समाधि स्थल पर पहुंच गई और वहीं गिरकर बेहोश हो गई। इस समय धरती फट गई और दोनों पति-पत्नी उसमें समा गए। यही समाधि स्थल आगे चलकर गोगामेड़ी के रूप में विख्यात हुआ। गोगा नवमी के दिन राजस्थान के इस गोगामेड़ी के स्थान पर बड़ा मेला लगता है। यहां गोगामेड़ी के स्थान पर नीले घोड़े पर सवार हाथ में शास्त्र लिए हुए गोगा जी महाराज की मूर्ति स्थापित है।
किंवदंती यह भी है कि गोगामेड़ी के निर्माण का श्रेय एक ब्राह्मण को जाता है। उन्होंने यहां एक कच्ची मेड़ी बनाकर बाबा की पूजा शुरू की आज यह स्थान गोगामेड़ी के नाम से विख्यात है। बाद में इसका जीर्णोद्धार महाराज गंगा सिंह ने किया। गोगा नवमी के दिन यहां विभिन्न प्रदेशों से लोग ‘निशान’ लेकर पहुंचते हैं ‘निशान ‘के ऊपर मोरपंख, कौड़िया और डमरू बांधकर सजाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों से आए भक्तजन समाज में सांप्रदायिक सद्भावना, समभाव, सामाजिक एकता, खुशहाली और परिवार में शांति और प्रगति की मन्नत मांगते हैं। इस प्रकार से पवित्र त्योहार सभी धर्म, समुदायों और जाति के लोगों को एकता के सूत्र में बाधने का संदेश देता है।
– सतीश मेहरा