सहीराम
बात सिर्फ चंदा मामा की नहीं है जी, जो अभी तक दूर के थे और अब इतने पास के हैं कि सोशल मीडिया में बाकायदा राखी बंधवाते नजर आए। खैर, मौका भी था और दस्तूर भी। लेकिन इधर चंदा मामा से ज्यादा नेताओं में मामा बनने की होड़ लगी हुई है। उन्हें लगता है कि बस रसोई गैस का सिलेंडर सस्ता दो और झट मामा बन जाओ। बहनों के वोट पक्के। जलकुकड़ों का कहना है कि वे इस तरह मामा बनकर सबको मामू बना रहे हैं। मामा और मामू में बस यही फर्क है कि अपनी पूर्व प्रेमिका के बच्चों के मामा बनने के दुस्वप्न से निकल कर अगर कोई चाहे तो स्वेच्छा से भी मामा बन सकता है, लेकिन मामू सिर्फ बनाया जाता है। जलकुकड़ों को यही अंदेशा है कि मामा कोई नहीं बन रहा, बस वे सबको मामू बना रहे हैं।
खैर, अभी तक तो दुनिया में या कहें कि ब्रह्मांड में बस दो ही मामा थे। एक किस्से कहानियों के चंदा मामा और दूसरे राजनीति के शिवराज मामा। ऐसे में उन दो मामाओं- कंस मामा और शकुनि मामा को याद नहीं करना चाहिए। हालांकि, बात चाहे रिश्तों की हो या राजनीति की- इन दोनों मामाओं के बिना अधूरी ही रहेगी। पर क्योंकि अपने यहां इधर मामाकाल चल रहा है तो उन मामाओं को क्यों याद करें, जिन्होंने अपनी बहनों और भानजों को कष्ट ही पहंुचाए।
तो साहब अभी तक तो राजनीति में एक ही मामा थे- शिवराज मामा। लेकिन अब रसोई गैस का सिलेंडर सस्ता करके न सिर्फ मुख्यमंत्रियों में ही मामा बनने की होड़ लगी है बल्कि हद तो यह हो गयी जनाब कि खुद प्रधानमंत्री भी मामा बनने की इस होड़ में शामिल हो गए हैं। उन्होंने रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत में दो सौ रुपये घटाए और कहा कि यह रक्षाबंधन के पावन त्योहार पर अपनी बहनों के लिए उनका तोहफा है। लेकिन जलकुकड़े इसे न भाईपना मान रहे हैं और न ही मामापना। वे तो इसे बिजनेस की वह ट्रिक मान रहे हैं जिसे दीवाली के मौके पर ग्रांड सेल लगाकर तकरीबन सभी दुकानदार अपनाते हैं। इस सेल में फिफ्टी पर्सेंट की ही नहीं, कई बार तो सेवंटी और एटी पर्सेंट तक की छूट दी जाती है और दुकानदार को घाटा फिर भी नहीं होता क्योंकि सेल लगने से पहले ही उसकी कीमत उससे काफी ज्यादा बढ़ा दी जाती है, जितने की छूट दी जा रही होती है।
खैर जी, मां-बाप की जायदाद में भाइयों को बहनों के हिस्से की ही तरह अगर नेता को भी वोट मिल जाएं तो घाटा कुछ भी नहीं। अलबत्ता इसी मामाकाल में राहुलजी और प्रियंकाजी के भाई- बहन वाले प्रेम पर सवाल उठाने की कोशिश भी की गयी। लेकिन मानसिक बीमारी तो इलाज से दूर हो सकती है। फिर भी मोहब्बत की दुकान खोलकर प्रयास तो किया ही जा सकता है।