जी-20 की आधारशिला वर्ष 1999 में वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार, कृषि व ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के संबंध में रखी गई। समय के साथ इनमें पर्यावरण, आतंकवाद जैसे विषय भी जुड़ गये। अब 19 देश और यूरोपीय संघ इसके सदस्य हैं जिनके बीच संगठन की अध्यक्षता बारी-बारी से घूमती है। इस बार भारत इसका अध्यक्ष है वहीं शिखर बैठक का मेजबान भी। सवाल ये है इस बड़े आयोजन से भारत को क्या हासिल होगा? क्या शी चिनफिंग या पुतिन की अनुपस्थिति कोई प्रभाव डालेगी ?
पुष्परंजन
लेखक ईयू एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के लिए जी-20 शिखर बैठक में आना ज़रूरी नहीं था। वो जकार्ता में चल रही आसियान शिखर बैठक की ग्रांड सफलता चाहते थे। चीन का मीडिया उन्हीं ख़बरों से लबरेज़ रहा, जिसे पूर्वी एशियाई देशों का मीडिया फॉलो कर रहा है। मंशा यही है कि जी-20 बैठक को महत्वहीन साबित किया जाए, उसकी कवरेज कम से कम हो। जकार्ता की बैठक में चीनी प्रधानमंत्री ली छियांग मंगलवार को अपना वक्तव्य दे रहे थे। 26वीं चाइना-आसियान शिखर बैठक, 26वीं आसियान प्लस थ्री, और 18वीं ईस्ट एशिया समिट के बाद ली छियांग इस आलेख के छपने तक भारत प्रस्थान कर चुके होंगे। जी-20 की शिखर बैठक में ली छियांग शायद उन सवालों को उभारें, जिसपर चीन को आपत्ति है।
चीन की बुनियादी आपत्ति जी-20 समारोहों का उन भारतीय इलाक़ों में होना था, जिसपर वह ज़बरदस्ती का दावा ठोकता है। कुछ दिल पहले चीन ने एक तथाकथित ‘मानक मानचित्र’ जारी किया जिसमें अरुणाचल प्रदेश, अक्साईचिन के साथ-साथ ताइवान और दक्षिण चीन सागर पर क्षेत्रीय दावा किया गया। चीन हर साल इस तरह के मानक मानचित्र जारी करता है। यह पहली बार है कि भारत ने चीनी दावों को खारिज करते हुए इस मानचित्र पर कड़ा एतराज़ किया है। जी-20 शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले इस नक्शे का प्रकाशन चीनी शरारत ही कहा जाना चाहिए। जोहान्सबर्ग की बैठक में शी और मोदी की मुलाक़ात, सीमा विवाद के हल के लिए पहल संबंधी जो बयान जारी हुआ था, उससे लगा था कि अब गाड़ी पटरी पर चलने लगेगी।
शी को यह भी लगा कि पुतिन के बग़ैर यदि वो दिल्ली शिखर बैठक में जाते हैं, तो कहीं उनकी कूटनीतिक घेरेबंदी न हो जाए। शी का दिल्ली बैठक में नहीं आना भी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए बड़ी ख़बर बन गई, जिसकी व्यापक कवरेज देखकर लगता है कि जैसे सबकुछ पूर्वनियोजित हो। शी 14 मार्च 2013 को चीन के राष्ट्रपति बने, तब से वो लगातार जी-20 की शिखर बैठकों में जाते रहे। अपवाद के रूप में 2021 की बैठक में शी आभासी रूप से स्क्रीन पर दिखे। वह कोविड काल था। मगर, शी जब नूसा डुआ में थे, पीएम मोदी से उनका हाथ मिलाना भारत के लिए अहम ख़बर बनी। मोदी समर्थक सोशल मीडिया लहालोट था। इससे खुन्नस खाये ट्रोल आर्मी ने जवाबी हमले में प्रधानमंत्री मोदी को नहीं बक्शा। अजब हो रहा था, हाथ मिलाओ तो बुरा, न मिलाओ तो मुश्किल।
क्या शी जो बाइडेन से भी दूरी चाहते थे, इसलिए दिल्ली नहीं आये? इस थ्योरी को भी सही नहीं मानिये। बल्कि, जो बाइडेन ने शी के नहीं आने का अफसोस प्रकट किया है। ठीक से देखा जाए तो अमेरिका-चीन कूटनीति की गाड़ी को धीरे-धीरे पटरी पर लाने के प्रयास लगातार चल रहे हैं। दो अगस्त को अल ज़जीरा ने ख़बर दी कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी वाशिंगटन आमंत्रित किये गये हैं। अगस्त 2023 के तीसरे हफ्ते अमेरिकी वित्त मंत्री जीना राइमांडो पेइचिंग हो आई थीं। कई कारणों में से एक कारण अवश्य है कि पुतिन से दोस्ती निभाने की वजह से शी ने भारत आना सही नहीं समझा।
रिश्तों में असहजता का पहलू
पीएम मोदी से शी की जोहान्सबर्ग में मुलाक़ात के विजुअल्स को ध्यान से देखिये तो संबंधों में सहजता नहीं प्रकट हो रही थी। बिल्कुल औपचारिक। यांत्रिक। फिर, डोकलाम-देपसांग ला, दौलत बेग ओल्डी जैसे इलाक़ों में भूमिहरण को लेकर चीन के प्रति भारत का सोशल मीडिया और प्रतिपक्ष जिस तरह से हमलावर है, उससे भारत स्थित चीनी दूतावास ने शी के आने का सही समय नहीं माना। भारतीय विदेशमंत्री एस. जयशंकर से जब पूछा गया कि पुतिन और शी चिनफ़िंग के भारत न आने का जी-20 सम्मेलन पर क्या असर पड़ेगा? जवाब में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि जी 20 में अलग-अलग मौक़ों पर ऐसे कुछ राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रहे हैं, जो किसी भी वजह से शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे, लेकिन उस देश के प्रतिनिधि बैठक में अपना पक्ष बताते हैं। मुझे लगता है कि बैठक में सभी प्रतिनिधि बहुत गंभीरता से शामिल हो रहे हैं।’ जयशंकर से दूसरा महत्वपूर्ण सवाल था, शी और पुतिन के जी-20 सम्मेलन में न आने की वजह क्या भारत से नाराजगी है? जयशंकर ने जवाब दिया, ‘मुझे नहीं लगता कि इसका भारत से कोई संबंध है। दोनों नेताओं ने जो फैसला लिया है, उसके बारे में वो बेहतर जानते होंगे।’
1999 में जी-20 की आधारशिला वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार, कृषि व ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के लिए रखी गई। सबसे पहले यह आइडिया दुनिया के सात समृद्ध देशों के वित्तमंत्रियों व सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने विकसित किया था। समय के साथ जी-20 में पर्यावरण, आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई और महिला अधिकार जैसे विषय जुड़ते चले गये। सात से बढ़ते-बढ़ते 19 देश और यूरोपीय संघ को मिलाकर 20वां समूह, जी-20 के सदस्य हैं। 19 देशों के बीच संगठन की अध्यक्षता बारी-बारी से घूमती रहती है। लेकिन भारत में ऐसी व्याख्या की जाती रही, गोया पीएम मोदी के प्रताप की वजह से भारत को जी-20 की अध्यक्षता का अवसर मिला है।
बात भी बहुत हद तक सही है। तीस नवंबर से एक दिसंबर 2018 तक अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में जी-20 की शिखर बैठक थी। समापन वाले दिन पीएम मोदी का आग्रह था कि हम जी-20 की अध्यक्षता 2021 के बदले 2022 में लेंगे। इस वास्ते इटली को मनाना आवश्यक था। अर्जेंटीना के बाद 2019 में जापान, नवंबर 2020 तक सऊदी अरब, और इंडिया का टर्न 2021 में आ चुका था। साल 2022 में जी-20 की अध्यक्षता की बारी इटली की थी। इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुसेपे कोंते, जी-20 की अध्यक्षता को आगे-पीछे करने के वास्ते सहजता से कैसे राजी हो गये? जिसने भी सुना, हैरान हुआ।
ब्यूनस आयर्स में जी-20 की शिखर बैठक से महीना भर पहले जुसेपे कोंते 30 अक्तूबर 2018 को दिल्ली आये थे। कोंते की उस यात्रा में भारत-इटली के बीच आर्थिक व टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहकार के बड़े-बड़े संकल्प किये गये थे। फिर 29 और 30 अक्तूबर 2018 को पीएम मोदी को जापान में रहना था, मगर जुसेपे कोंते से मिलने की शिद्दत इतनी थी, कि उस यात्रा को थोड़ा पीछे किया गया। आज़ादी के अमृत वर्ष में भारत को जी-20 की अध्यक्षता का अवसर मिला तो, मगर जिस दिव्य समारोह का दीदार देश की जनता अमृत वर्ष में करती, उससे वंचित रह गई। जुसेपे कोंते फरवरी 2021 तक इटली की सत्ता में रहे, वो भी जी-20 से उत्पन्न अमृत को चख नहीं पाये।
जी-20 के लक्ष्य से जुड़े आयाम
यह तो स्पष्ट है कि जी-20 का लक्ष्य विश्वभर में व्यापार साझा करना है। इसमें सहयोग के बहुत सारे आयाम जुड़ते चले गये। भारत में जो लोग जी-20 की अध्यक्षता को उपलब्धि मानकर फूले नहीं समा रहे हैं, उनसे पूछना चाहिए कि इस देश में जिन मूल्यों को आधार बनाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी, क्या उसका जी-20 के ‘मोटो’ से कोई मेल है?
कड़वा सच यह है कि जी-20 का मंच अमेरिका की खुशामद करने के वास्ते बना है। ‘एकै साधे सब सधै’ के सिद्धांत को मानते रहिए, व्हाइट हाउस को रिझाने के वास्ते ठकुरसुहाती करते रहिए। आप 2019 के जी-20 समिट को याद करें, जब डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका की वजह से महिला अधिकार जैसे विषय को प्रमुख एजेंडे के रूप में शामिल किया गया था। पैरिस सम्मेलन में पर्यावरण को लेकर अमेरिका अड़ गया, तो जी-20 संकट में आ गया। दिल्ली बैठक की सफलता के वास्ते जो बाइडेन द्वारा निर्धारित मार्ग पर चलना होगा, यह भी तमाम गतिविधियों को देखते हुए समझ में आता है।
जी-20 का दूसरा पहलू यह भी है कि कोविड के समय अमेरिका-चीन के बीच रस्साकशी और यूक्रेन युद्ध के बाद से जी-20 विभाजित हुआ है। इंडोनेशिया के नूसा डुआ में पुतिन प्रकट नहीं हुए, प्रमुख कारण यूक्रेन युद्ध ही रहा था। पुतिन जी-20 शिखर बैठकों में अपनी सक्रियता से कटते रहे, मगर रस्म अदायगी के लिए रूसी विदेशमंत्री की शिखर बैठकों में सहभागिता अवश्य बनी रही। जी-20 की शिखर बैठकों में साझा बयान का न आना भी सहभागी देशों की एकता पर एक बड़ा सवाल है।
जिनका आशियाना न रहा
जुलाई 2023 का अंतिम सप्ताह था जब आवास और शहरी मामलों के कनिष्ठ मंत्री कौशल किशोर ने संसद को बताया कि 1 अप्रैल से 27 जुलाई के बीच दिल्ली में अतिक्रमण हटाने के 49 अभियान चलाये गये, जिसमें 230 एकड़ सरकारी जमीन को वापस लिया गया है। मंत्री कौशल किशोर का कहना था कि जी-20 के लिए एक भी मकान नहीं तोड़ा गया है। लेकिन इन इलाक़ों में जाइये तो कहानी कुछ और है। दिल्ली के भैंरो मार्ग स्थित जनता कैंप में जिनके मकान टूटे उन्हें लगा था कि जी-20 जलसे से गरीबों के हक में कुछ होगा। वहीं के एक निवासी ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि जो कुछ हो रहा है वह तो बिल्कुल उलटा है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसी कालोनियों में जो लोग घर नहीं बना सकते, तो उन्हें बसने क्यों दिया जाता है? दरअसल, यह एक पूरा नेक्सस है, जिसमें नेता-नौकरशाह, मुहल्लों के छुटभैये दलाल समेत सबकी शिरक़त दरपेश होती है। साल 2021 में तत्कालीन आवास और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में कहा था कि 1 करोड़ 35 हजार लोग दिल्ली की अनियमित कॉलोनियों में रहते हैं। हरदीप पुरी अब शहरी विकास महकमे को नहीं देखते, मगर उन जैसे नेताओं के पास इसका जवाब नहीं है कि पिछले दस वर्षों में ऐसे लोगों को बसाने और कुछ समय बाद उजाड़ने की ज़िम्मेदारी किसकी बनती है?
फरवरी 2023 के दूसरे सप्ताह ख़बर आई कि जी-20 शिखर सम्मेलन और संबंधित कार्यक्रमों की तैयारियों पर दिल्ली सरकार की विभिन्न एजेंसियां 1,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करेंगी। दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया कि अधोसंरचना को उन्नत करने के अलावा नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के विभिन्न विभागों द्वारा सौंदर्यीकरण कार्य और ऐसी अन्य तैयारियों पर 1,084 करोड़ रुपये खर्च होंगे। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि शिखर सम्मेलन के लिए सड़कों और फुटपाथों की मरम्मत, बागवानी, एलईडी लाइटों से दिल्ली को जगमग कर देना सुनिश्चित कर दिया गया है। आगंतुकों और विदेशी प्रतिनिधियों के लिए इलेक्ट्रिक बसों की योजना बनाई गई है।
सबसे दिलचस्प है जी-20 की तैयारियों को लेकर बयानवीर नेताओं में भिड़ंत। दिल्ली प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बीरेंद्र सचदेवा ने बयान दिया कि केंद्र सरकार ने अबतक जी-20 पर 4,064 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जबकि केजरीवाल सरकार ने केवल 51 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। सचदेवा ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस सुरक्षा पर 340 करोड़ रुपये और डीडीए सौंदर्यीकरण पर 18 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) ने 60 करोड़ रुपये का खर्च किया है।
लेकिन क्या सचमुच दिल्ली में चांद-सितारे लग गये? आप जी-20 शिखर बैठक के आयोजन के समय दिल्ली की चारों दिशाओं की परिक्रमा कर लीजिए, ज़मीनी सच से रूबरू हो जाएंगे। 4,064 करोड़ रुपये खर्च कहां किये गये हैं, इस सवाल का उत्तर शायद कभी सीएजी ढूंढ निकाले। दिल्ली में ओखला, भलस्वा और गाजीपुर कूड़े के पहाड़ जी-20 को चिढ़ाते हुए मिलेंगे।
दिल्ली सरकार के अनुसार, ‘ओखला लैंडफिल को दिसंबर 2023 तक, भलस्वा लैंडफिल को मार्च 2024 और गाजीपुर लैंडफिल को दिसंबर 2024 तक खत्म करने की योजना है।’ इससे पहले ओखला और भलस्वा लैंडफिल से मुक्ति की समय-सीमा दिसंबर 2023 थी और गाजीपुर लैंडफिल की समय सीमा मार्च 2024 थी। अब बता रहे हैं कि कूड़े के पहाड़ों को जैव विविधता पार्क में परिवर्तित कर देंगे। अजब-ग़ज़ब है। आप प्रगति मैदान से पांच-सात किलोमीटर के इलाके को घूम लीजिए, जगह-जगह सड़कें खुदी पड़ी हैं। मालूम नहीं, दिल्ली जलबोर्ड ने ऐन जी-20 शिखर सम्मेलन के समय पाइप लाइन बिछाना क्यों तय किया? दिल्ली में जगह-जगह खुदी सड़कें, धूल-मिट्टी आयोजन के मौके पर अखर रही हैं!
डाइनिंग टेबल पर खास डिजाइनर क्रॉकरी
रेणु खंतवाल
जी20 अायोजन पूरे शबाब पर है। हर चीज़ इस तरह से तैयार की गयी है कि वह सर्वश्रेष्ठ हो और भारत की कला-संस्कृति की झलक पेश करती हो। भारत आने वाले मेहमानों की मेजबानी की बात करें तो ऐसी मेन्यू तैयार किया गया जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों के तरह-तरह के परंपरागत पकवान शामिल हों। यह भी कि इन पकवानों को जिन बर्तनों में परोसा जाए वे भी बहुत खास हों। इसीलिए चांदी के इन बर्तनों को बेहद सुंदर तरीके से डिशेज अनुसार डिजाइन किया है। जयपुर की एक कंपनी द्वारा बनाए गए इस खास टेबलवेयर और सजावट को दिल्ली में जारी जी20 शिखर सम्मेलन के लिए चुना गया। क्रॉकरी के ये डिज़ाइन भारत की विविधता में एकता को दर्शाते हैं। बर्तनों में जहां अशोक चक्र उकेरा गया है वहीं राष्ट्रीय पक्षी मोर के साथ-साथ खूबसूरत फूलों व भारतीय संस्कृति को भी चिन्हित करते डिजाइंस तैयार किए हैं। विविधता में एकता की थीम, फ्यूजन एलिगेंस को ध्यान में रख इन बर्तनों को तैयार किया गया। ताकि दिल्ली के 11 होटलों की मेज पर ये बर्तन शोभा बढ़ाएं, स्वादिष्ट भोजन जब इनमें सर्व किया जाए तो यह डाइनिंग टेबल के लुक में चार चांद लगाएं। यह डिजाइन कंपनी के मुख्य डिजाइनर राजीव पाबुवाल और लक्ष्य पाबुवाल के दिमाग की उपज है। राजीव पाबुवाल ने बताया- जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए थे तो उन्हें इन्हीं बर्तनों में खाना परोसा गया था। उन्हें ये बर्तन इतने पसंद आए थे कि कुछ बर्तन वे अपने साथ अमेरिका लेकर गए और कुछ बर्तन उन्होंने बाद में वहां से ऑर्डर करके मंगवाए।