चेतनादित्य आलोक
भारत की पहचान हमेशा से ऋषि-मुनियों और साधु-संतों की भूमि के रूप में रही है। युगों-युगों से अनेक ऋषि-मुनि और साधु-संत इस पावन भूमि पर अवतरित होते रहे हैं। इन्होंने सदा ही अपनी जीवन-शैली, विचार और कर्म से मानव जाति को प्रेरित और प्रभावित किया है। बेहद सरल और सहज जीवन जीने वाले हमारे ये ऋषि-मुनि और साधु-संतगण भक्ति, ज्ञान, करुणा, प्रेम, त्याग, समर्पण, तपस्या आदि के बल पर देवत्व के औदात्य और कारुण्य को प्राप्त कर देवता-तुल्य ही हो जाते हैं। यही कारण है कि इनके लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। परमात्मा की उपासना से प्राप्त अनेक प्रकार की चमत्कारिक सिद्धियों के स्वामी इन ऋषि-मुनियों और साधु-संतों के होने मात्र से ही मनुष्य का कल्याण संभव हो जाता है।
ऐसे ही एक ‘बाबा नीम करौली’ हुए, जिनका वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में 1900 के आसपास हुआ था। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था। कहते हैं कि 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गयी थी। बाबा 1958 में गृह-त्याग कर साधु वेष में उत्तर भारत की यात्रा पर निकल गये। घूमते-घूमते 1961 में ये उत्तराखंड के नैनीताल स्थित ‘कैंची धाम’ पहुंचे। हिमालय की तलहटी में समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मनोरम पहाड़ी क्षेत्र में देवदार के वृक्षों के मध्य नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर बसे इस कैंची धाम में ही बाबा नीम करौली ने 1964 में एक आश्रम की स्थापना की। ये अत्यंत सरल, सहज और आडंबरों से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। ये भक्तों को अपने पांव तक नहीं छूने देते थे। पांव छूने या पूजा करने के इच्छुक भक्तों को ये हनुमान जी महाराज की शरण में जाने की सलाह देते थे। बाबा भक्त शिरोमणि हनुमान जी महाराज के परम भक्त थे और उन्हें ही अपना गुरु एवं आराध्य मानते थे। इन्होंने देश भर में हनुमान जी के 108 मंदिरों का निर्माण करवाया था। हनुमान जी की उपासना से इन्होंने अनेक चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त की थीं।
बाबा के चमत्कारों की अनेक घटनाएं देश-दुनिया में प्रचलित हैं। ऐसी ही कुछ कहानियों एवं घटनाओं के आधार पर बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने ‘मिरैकल ऑफ लव’ नामक एक पुस्तक की रचना की है, जिसमें बाबा के कंबल से जुड़ी ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नामक एक घटना का वर्णन मिलता है। देवभूमि कैंची धाम में प्रत्येक वर्ष 15 जून को एक मेला लगता है, जहां भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर से लोग बाबा का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने आते हैं। वैसे तो इन्होंने 11 सितंबर, 1973 को ही वृंदावन धाम में शरीर का त्याग कर दिया था, पर उनके भक्तों का विश्वास है कि अपने भक्तों का दुःख-दर्द मिटाने आज भी आश्रम में पधारते हैं। भक्तों का विश्वास है कि श्रद्धापूर्वक याद करने पर बाबा कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। बाबा के आश्रम में वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले भक्तों में सर्वाधिक संख्या अमेरिकी भक्तों की होती है। बाबा के भक्तों में एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग तथा हॉलीवुड की एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स समेत दुनिया भर की कई नामचीन हस्तियां शामिल हैं, बताते हैं कि उनके जीवन में इस धाम की यात्रा के बाद बड़े सकारात्मक परिवर्तन हुए।
आध्यात्मिक गुरु बाबा नीम करौली का समाधि-स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में स्थित है। बाबा के दर्शन और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु यहां भक्तों का आना-जाना पूरे साल लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति कभी खाली हाथ नहीं लौटता। बाबा सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। समाधि-स्थल के पास ही बाबा नीम करौली तथा हनुमान जी महाराज की भव्य प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। बाबा कहते थे कि पैसा कमाने के साथ-साथ व्यक्ति को इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि वह अपने पैसे किन चीजों पर खर्च कर रहा है। साथ ही अपनी कमाई तथा अपने धन का कुछ भाग जरूरतमंदों के बीच वितरित भी करना चाहिए।