बड़ी ताकतों के बीच प्रतिद्वंद्विता की आंच को सम्मेलन से दूर रखने के लिए भारत की जी-20 की अध्यक्षता की चंहु ओर प्रशंसा हो रही है, जिससे उभरते बाजार को बल मिलेगा और विकासशील देशों को पनपने का मौका। सहृदयता और हिम्मत से लबरेज़ भारतीय विदेश नीति के लिए गत सप्ताहांत का प्रदर्शन शायद सबसे शानदार रहा।
नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन ऐतिहासिक और अनोखा था। यह 1983 में आयोजित हुए गुट-निरपेक्ष आंदोलन और कॉमनवेल्थ शिखर सम्मेलनों जितना विशाल नहीं था। फिर भी, यह भारत में विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्राध्यक्षों का सबसे बड़ा सम्मेलन था। सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात है कि भारत ने पूरे आयोजन को बहुत कुशलता से निभाया।
मेजबान भारत ने अपनी अध्यक्षता का आदर्श-वाक्य ‘वसुधैव कटुम्बकम्’ या ‘एक पृथ्वी,एक परिवार, एक भविष्य’ बनाया और इसी पर आगे बढ़ा। जिसकी बदौलत जी-20 में सबकी भागीदारी पहले की अपेक्षा अधिक बन सकी। भारत ने सलाह-प्रक्रिया में दक्षिणी गोलार्ध के राष्ट्रों को भी शामिल किया और नौ देशों को आमंत्रित किया, जो अधिकतर विकासशील जगत से हैं। सम्मेलन में विश्व की विकास संबंधी समस्याओं का हल निकालने के लिए एजेंडा पर विचार हुआ। यह वैसा शिखर सम्मेलन नहीं था, जहां भारत अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने की कोशिश में रहे बल्कि यह आयोजन वह रहा जिसमें बहु-स्तरीय तंत्र की खामियों को सुधारने की कोशिशें हुई, जीवंतता का पुनर्संचार हुआ और यह दुनिया के लोगों की जरूरतों के प्रति अधिक क्रियाशील बनने का प्रयास रहा।
प्रक्रिया को पटरी पर बनाए रखने और जी-20 का हश्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तरह गैर-प्रभावी न होने पाए, इसके लिए भारत को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी ताकि रूस और चीन के साथ पश्चिमी मुल्कों की प्रतिद्वंद्विता की छाया दूर रहे। इसलिए, जी-20 के सदस्य दक्षिणी मुल्कों के बीच गठबंधन की प्रक्रिया आरंभ हुई। इस एकता के बूते दक्षिण एशियाई मुल्कों की ताकत आखिरकार जी-20 के अकड़ू सदस्यों को माननी पड़ी।
भारत ने 55 अफ्रीकी मुल्कों का प्रतिनिधित्व करने वाले और सबसे बड़े क्षेत्रीय संगठन अफ्रीकन यूनियन (एयू) को जी-20 में शामिल करके नया संतुलन बनाने की कोशिश की है। अफ्रीकी संगठन को बतौर आंमत्रित सदस्य जी-20 में बुलाया गया, लेकिन पिछले किसी अध्यक्ष ने इस समूह के सदस्य विन्यास में बदलाव करने का जोखिम नहीं उठाया। भारत ने यह सफलतापूर्वक कर दिखाया। तथ्य है कि आयोजन की प्रक्रिया शुरू होने से पूर्व, भारत ने एयू को जी-20 में बतौर स्थाई सदस्य शामिल किए जाने पर सर्वसम्मति की घोषणा कर दी थी, इस तरह उसके प्रतिनिधि को भी मुख्य वार्ता मंच पर जगह मिली।
अफ्रीकी देशों और भारत के बीच लंबे समय से रहे ‘हरम्बी’ सहयोग संबंधों के लिए यह पल कभी न भूलने वाले बन गए। अफ्रीकन यूनियन में बतौर पूर्व राजदूत रहने के कारण मुझे बहुत खुशी हुई जब शीर्ष नेतृत्व के घोषणापत्र को दिशा देने में भारत ने यह हिम्मत कर दिखाई। चूंकि इस साल मंत्री स्तर की प्रत्येक बैठक में इस मुद्दे पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई थी, तो आमतौर पर कयास था कि संयुक्त वक्तव्य की बजाय अध्यक्ष की संक्षिप्त टिप्पणी से काम चलाया जाएगा। इस साल हुई जी-20 बैठकों में इसी प्रारूप को अपनाया भी गया। यह एक बढ़िया जुगत रही और इससे ऐसा कोई मौका नहीं बना कि सर्वसम्मति वाली भाषा में कोई किंतु-परंतु करने में माथापच्ची करता रहे और अंतिम निर्णय शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ दिया गया, जहां अंततः सर्वसम्मति बन गई।
यूक्रेन के मुद्दे पर पश्चिमी मुल्कों, रूस और चीन के विचार और तेवर लीक में बंधे हैं। भारत इस बात पर दृढ़ था कि बाली में बनी सर्वसम्मति अब व्यावहारिक नहीं रही, लिहाजा एक नई सर्वसम्मति बनानी पड़ेगी। भारतीय राजनयिकों ने इसपर बढ़िया कारगुजारी कर दिखाई और विभक्त हुई पड़ी दुनिया के मुल्कों को उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने को राजी कर लिया, जो वाकई मायने रखते हैं।
जी-20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया, भारत, ब्राजील और दक्षिण एशिया के रूप में दक्षिणी गोलार्ध के मुल्कों के पास एक के बाद एक रही है और इस कारक ने सर्वसम्मत घोषणापत्र को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका समर्थन तुर्किए, सउदी अरब, मेक्सिको और अन्य मुल्कों ने भी किया।
रोचक यह कि यूक्रेन को लेकर पैरा में रूस की निंदा सीधी नहीं है, इनमें रूस पर आए सयुंक्त राष्ट्र प्रस्तावों, बाली सर्वसम्मति और यूक्रेन में हुए विभिन्न प्रकार के अतिक्रमणों का जिक्र है। इस मसले पर, रूस का नाम लिए बगैर भारत ने कर दिखाया कि आपसी इलाकाई झगड़े के पीछे तीसरे मुल्क भी जिम्मेवार हैं। यही तरीका चीन द्वारा अपने पड़ोसी देशों के साथ नक्शा संबंधी या अन्य किस्म की आक्रामकता दिखाने के जिक्र पर अपनाया गया। इसलिए, यह यूक्रेन संकट पर भारत के रुख की जीत है।
जी-7 गुट, रूस और चीन ने इस विषय में चुप रहना चुना, क्योंकि ऐसा न करने पर, जी-20 की अध्यक्षता करने में भारत की सफलता को लगे धक्के का नुकसान उलटा उनका रहता। एक मर्तबा यह जटिलता निबट गई, उसके बाद तमाम विकास संबंधी पहलू और पहलकदमी वाले विषयों पर कोई अड़चन नहीं रही, बल्कि जी 20 के विभिन्न कार्य-समूहों द्वारा पहले की जा चुकी सख्त मेहनत के फलस्वरूप सर्वसम्मति पहले से तैयार थी।
भारत ने कोशिश करके जी-20 की दिशा वह बनवाई है जिससे कि यह संगठन विश्व, विशेषकर दक्षिणी दुनिया, की जरूरतों के प्रति क्रियाशील बने। भारत चाहता है कि जो वादे किए हैं वे पूरे हों और अपूर्ण वादों की अदला-बदली न होने पाए। यह ठीक वैसा है कि मुल्कों के ऋण संकट के लिए बहुस्तरीय विकास बैंक जिम्मेवार हैं और चीन भी अपने जिम्मेवारी से बच नहीं सकता।
यही बात लचीली आपूर्ति शृंखला पर लागू है। वहीं सतत विकास ध्येय, पर्यावरण वित्तीय सहायता और डिजिटल जन-आधारभूत ढांचे के जरिये बृहद सुधार, जन-स्वास्थ्य, सुरक्षा और अन्य कई पहलकदमियां, जो दुनिया को बेहतर, हरा-भरा और दूसरों के प्रति लचीलापन रखने वाली बनाएं।
आम राष्ट्र-इलाकाई मुद्दों से ऊपर उठकर भारत ने जो एक बढ़िया काम कर दिखाया है, वह है, सबको साथ लेकर और सौहार्दपूर्ण ढंग से वैश्विक चिंताओं के प्रति जी-20 को अधिक क्रियाशील बना देना। मौजूदा विवाद-ग्रस्त विश्व सर्वसम्मति बनाने में भारत के कौशल का स्वागत कर रहा है। भारत मंडपम् में सर्वसम्मति बनवाकर शायद भारत ने बहुतों को चौंका दिया। कम से कम समीक्षकों को यह उम्मीद नहीं कि शिखर सम्मेलन के पहले ही दिन ऐसा हो जाएगा। इसका मतलब यह कि वार्ताकार बैठक उपरांत भी विमर्शों में उलझे रहने की बजाय राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा दिए रात्रि-भोज का लुत्फ शांत-चित्त होकर उठा पाए।
शिखर सम्मेलन का अंत दिल्ली में फुहारों के साथ हुआ, विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों को लगा होगा कि एकजुट होकर जो प्राप्ति की है, ये उसकी बूंदें हैं और वे एक नई आशा के साथ घर वापसी कर रहे हैं।
लेखक पूर्व राजदूत हैं।