यकीनन 9-10 सितंबर को जी- 20 देशों के शिखर सम्मेलन की ऐतिहासिक सफलता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के तेज विकास की नई संभावनाएं निर्मित हुई हैं। जी-20 से जहां भारत विकासशील देशों, ग्लोबल साउथ के देशों और अफ्रीकी देशों के लिए और महत्वपूर्ण बना है, वहीं जी-20 के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, सऊदी अरब, यूएई और अन्य कई प्रमुख देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ वाणिज्य व कारोबार बढ़ाने संबंधी द्विपक्षीय वार्ताएं महत्वपूर्ण रही हैं। इससे भारत के वैश्विक व्यापार, भारत से निर्यात, भारत में विदेशी निवेश, भारत में विदेशी पर्यटन और भारत के डिजिटल विकास का नया क्षितिज सामने आया है।
गौरतलब है कि जी-20 से दुनिया में ग्लोबल सप्लाई चेन में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के मद्देनजर भारत की अहमियत बढ़ी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार फिर क्वाड संगठन के प्रति अपने-अपने देश की न सिर्फ प्रतिबद्धता जताई है बल्कि सीधे तौर पर चीन को यह संदेश भी दिया है कि क्वाड के सदस्य देश अमेरिका भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान आर्थिक रूप से एक-दूसरे को और मजबूती देंगे। साथ ही मौजूदा वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवस्था की जगह एक दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था को मूर्त रूप देंगे। दुनिया में यह बात उभरकर सामने आई है कि ‘चीन प्लस वन’ रणनीति के तहत भारत दुनिया के सक्षम व भरोसेमंद देश के रूप में वैश्विक आपूर्ति शृंखला वाले देश के रूप में नई भूमिका निभा सकता है। दुनियाभर में कल तक जिस भारत को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह अब वैश्विक चुनौतियों के समाधान का हिस्सा बन गया है।
जहां 55 देशों के प्राकृतिक संपदा संपन्न अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराकर भारत ने वैश्विक पटल पर अपनी कूटनीति का दबदबा बढ़ाया, वहीं चीन के आर्थिक प्रभुत्व वाले अफ्रीकी संघ के देशों में भारत ने चीन का रास्ता रोकने की पहल भी की है। अब भारत अफ्रीकी देशों में कृषि, स्वास्थ्य फार्मेसी, टेक्सटाइल, ऑटो मोबाइल ऊर्जा व ढांचागत विकास के क्षेत्र में तेजी से कदम आगे बढ़ाएगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जी-20 सम्मेलन में घोषित हुए भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (आईएमईसी) के माध्यम से रेल एवं जल मार्ग से भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसरों का ऐसा ढेर लगाया जा सकेगा, जिससे चीन की तुलना में भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता भी बढ़ जाएगी। वस्तुतः आईएमईसी चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का सबसे व्यावहारिक जवाब भी है। अब आईएमईसी के तहत भारत से पश्चिम एशिया होते हुए यूरोप तक कॉरिडोर बनेगा और रेल लाइनें बिछेंगी। एक-दूसरे के ऊर्जा और संचार क्षेत्रों को जोड़ने की भी व्यवस्था होगी। यूएई, सऊदी अरब, ईयू, फ्रांस, इटली और जर्मनी साझीदार देश होंगे। भविष्य में यह भारतीय अर्थव्यवस्था को यूरोप और पश्चिमी एशिया के देशों की अर्थव्यवस्था से जोड़ने वाला एक अहम माध्यम बनेगा।
इसमें कोई दोमत नहीं है कि जी-20 की अध्यक्षता से भारत में विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगेगी। भारत ने जी-20 प्रेसिडेंसी के तहत रणनीतिक रूप से भारत के 60 शहरों में करीब 200 बैठकों में 125 देशों के लगभग एक लाख प्रतिनिधियों की मेजबानी करते हुए उन्हें भारत के बेजोड़ पर्यटन स्थलों से परिचित कराया है। इस साल जनवरी, 2023 से लेकर जून तक विदेशी सैलानियों की संख्या 43.80 लाख रही तो वहीं पिछले साल इस दौरान विदेशी पर्यटकों की संख्या 21.24 लाख रही। साल 2022 की तुलना में जनवरी से जून 2023 तक 106 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। विदेशी पर्यटकों से होने वाले आर्थिक लाभ का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि एक विदेशी पर्यटक से औसतन 2 लाख रुपए की कमाई होती है।
निश्चित रूप से जी-20 से भारत के पक्ष में जो आर्थिक व कारोबारी परिदृश्य निर्मित हुआ है, उससे भारत के शेयर बाजार में अभूतपूर्व उछाल आया है। अब भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भी तेजी से बढ़ेगा। जी-20 शिखर सम्मेलन में हासिल ऐतिहासिक सहमति ने विदेशी निवेशकों में भारत के प्रति नया भरोसा जगाया है। यह भी उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2022-23 में दुनिया में वैश्विक सुस्ती के बावजूद भारत में एफडीआई 46 अरब डॉलर के स्तर पर रहा है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट, 2023 के मुताबिक वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के रुझान के बीच भारत दुनिया के सर्वाधिक एफडीआई प्राप्त करने वाले 20 देशों की सूची में आठवें पायदान पर रहा है। अब देश में ऑटो मोबाइल, फॉर्मा, केमिकल, फूड प्रोसेसिंग और टेक्सटाइल सेक्टर जैसे मैन्युफैक्चरिंग के विभिन्न सेक्टरों में एफडीआई का प्रवाह तेजी से बढ़ेगा।
अब भारत का वैश्विक व्यापार तेजी से बढ़ेगा। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का विदेश व्यापार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचते हुए 1.6 लाख करोड़ डॉलर मूल्य की ऊंचाई पर रहा है। भारत के निर्यात में भी तेजी से वृद्धि होगी। भारत का वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 447 अरब डॉलर पहुंच गया है। साथ ही सेवाओं का निर्यात 320 अरब डॉलर पार कर गया है। भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर तेजी से बढ़ेगा। डिजिटल इकोनॉमी के तहत कॉमर्स, बैंकिंग, मार्केटिंग, ट्रांजेक्शन, डेटा एनालिसिस, साइबर सिक्योरिटी, आईटी, टूरिज्म, रिटेल ट्रेड, हॉस्पिटेलिटी आदि क्षेत्रों में रोजगार और स्वरोजगार के मौके तेजी से बढ़ेंगे। साथ ही अब भारत बौद्धिक सम्पदा, शोध और नवाचार की डगर पर भी तेजी से आगे बढ़कर विभिन्न क्षेत्रों में विकास को अपनी पहुंच में लेते हुए दिखाई देगा।
नि:संदेह जी-20 से हासिल हुई आर्थिक विकास की नई जोरदार संभावनाओं के बावजूद देश को विकसित देश बनने का लक्ष्य कठिन और चुनौतीपूर्ण है और इस हेतु विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार लगातार 7.6 प्रतिशत दर से वृद्धि करनी होगी। इस चुनौतीपूर्ण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। युवाओं को डिजिटल दुनिया के नए दौर की नई तकनीकी योग्यताओं से सुसज्जित करना होगा। जहां भारत को दुनिया के नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता और अफ्रीकी संघ में नए प्रभावी निर्यातक की भूमिका को मुट्ठी में लेना होगा, वहीं अभी से भारत को मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कॉरिडोर के क्रियान्वयन के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा।
हम उम्मीद करें कि जी-20 के बाद भारत आर्थिक विकास की बहुआयामी संभावनाओं को हासिल करने के लिए आगे बढ़ेगा। इससे चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की विकास दर 6.5 प्रतिशत से अधिक के स्तर पर पहुंच सकेगी। साथ ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा रखने वाला भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाई दे सकेगा और दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ते हुए भारत आर्थिक शक्ति बनने की डगर पर आगे बढ़ेगा।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।