शिमला, 20 सितंबर (हप्र)
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 13 अधिनियमों को निरस्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश निरसन विधेयक (2023) पेश किया। इनमें से कुछ औपनिवेशिक युग के हैं जो अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि इन अधिनियमों को अलग, स्वतंत्र या विशिष्ट बनाए रखना अनावश्यक है। इसलिए इन्हें निरस्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इन्हें निरस्त करने का मुख्य उद्देश्य स्पष्टता लाने के लिए इन्हें कानून की किताब से हटाना है। उन्होंने कहा कि यदि निरसन विधेयक के उद्देश्यों और कारणों को पढ़ें तो ये कानून अप्रासंगिक और निष्क्रिय हो गए हैं और उन्होंने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है तथा अब उनकी उपयोगिता समाप्त हो गई है।
ये कानून होंगे निरस्त
जिन अधिनियमों को निरस्त करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है, उनमें प्रेसीडेंसी लघु वाद न्यायालय अधिनियम 1882, कृषक ऋण अधिनियम 1884, प्रांतीय लघु वाद न्यायालय अधिनियम 1887, मंडी लघु वन उपज शोषण और निर्यात अधिनियम 1997 (विक्रमी संवत) 1941 और चंबा माइनर शामिल हैं। इसके अलावा वन उपज शोषण और निर्यात अधिनियम 2003, पंजाब तंबाकू विक्रेता शुल्क (निरसन) अधिनियम 1953, हिमाचल प्रदेश निजी वन अधिनियम 1954, पंजाब श्रम कल्याण निधि अधिनियम 1965, पंजाब पेशे, व्यापार, कॉलिंग और रोजगार कराधान (हिमाचल निरसन) अधिनियम 1968, हिमाचल प्रदेश वन संरक्षण और वन आधारित आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का रखरखाव अधिनियम 1984, हिमाचल प्रदेश जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण (वित्तीय स्थापना में) अधिनियम 1999, हिमाचल प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल अधिनियम 2003, हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण (निर्णयित और लंबित मामलों तथा आवेदनों का स्थानांतरण) अधिनियम 2008 भी निरस्त किये जाने वाले विधेयकों में शामिल हैं।
कृषि, बागवानी और वानिकी विवि (संशोधन) विधेयक भी पेश
सरकार ने आज विधानसभा में हिमाचल प्रदेश कृषि, बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2023 भी सदन में पेश किया ताकि इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के चयन में राज्य सरकार की भूमिका हो। इस संबंध में कृषि मंत्री चंद्र कुमार ने सदन में विधेयक पेश किया। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश कृषि, बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय अधिनियम, 1986 की धारा 2, 23 और 24 में अनुदान सहायता प्रदान करने के बावजूद कुलपति की नियुक्ति में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।