पृथ्वी से परे जीवन की खोज के लिए खगोल वैज्ञानिकों का मुख्य फोकस मंगल पर ही रहता है लेकिन हमारे सौरमंडल में और भी कई स्थान जीवन होने की संभावना रखते हैं। इनमें बृहस्पति का बर्फीला चंद्रमा यूरोपा काफी समय से वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है। सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध में नासा के वॉयेजर यानों ने यूरोपा के बगल से गुजरते हुए उसके कई फोटो भेजे थे। वैज्ञानिकों ने इस पिंड का गहराई से अध्ययन किया है और इसकी अनेक विशेषताओं का पता लगाया है। इस चंद्रमा की सतह पर गहरी धारियां हैं जिनके आधार पर यह अटकल लगाई गई कि सतह के नीचे तरल जल का समुद्र मौजूद है। इस समुद्र की गहराई 60 से 150 किलोमीटर तक हो सकती है। यदि बर्फीली सतह के नीचे सचमुच तरल जल मौजूद है तो यूरोपा पर मौजूद पानी की मात्रा पृथ्वी के सारे समुद्रों में जमा कुल पानी से कई गुणा अधिक हो सकती है।
अब नासा के जेम्स वेब टेलीस्कोप ने यूरोपा पर जीवन के संभावित संकेत ढूंढ़े हैं। वहां स्थानीय रूप से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति का पता चला है। इससे यह संकेत मिलता है कि यूरोपा का बर्फ से ढका महासागर जीवन योग्य हो सकता है। इससे यह संभावना भी बढ़ गई है कि ठंडे जल संसार में जीवन हो सकता है।
यूरोपा पृथ्वी के चंद्रमा से थोड़ा छोटा है। वैज्ञानिकों का खयाल है कि यूरोपा की बर्फीली चादर की मोटाई 10 से 15 किलोमीटर तक है। इस परत के नीचे खारे पानी का महासागर है। तरल पानी की उपस्थिति यूरोपा को पारलौकिक जीवन में रुचि रखने वाले वैज्ञानिकों के लिए अन्वेषण की एक दिलचस्प ऑब्जेक्ट बनाती है। लेकिन अभी तक किसी ने यह नहीं दिखाया था कि यूरोपा के समुद्र में उचित अणु, विशेष रूप से कार्बन मौजूद है जो पृथ्वी पर जीवन की मूलभूत निर्माण इकाई है। जेम्स वेब टेलीस्कोप द्वारा की गई नई खोज दिलचस्प है क्योंकि ऐसा लगता है कि यह कार्बन डाइऑक्साइड किसी उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह द्वारा नहीं लाई गई है। खगोल वैज्ञानिकों को कार्बन डाइऑक्साइड का स्रोत यूरोपा के तारा रेजियो नामक क्षेत्र में दिखाई दिया है जो भूवैज्ञानिक रूप से एक युवा क्षेत्र दिखाई देता है। इससे पता चलता है कि गैस यूरोपा चंद्रमा के भीतर ही बनी होगी। अमेरिका में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की ग्रह-वैज्ञानिक सामंथा ट्रंबो ने कहा, हबल स्पेस टेलीस्कोप के पिछले अवलोकन में तारा रेजियो में समुद्र जनित नमक के सबूत मिले थे। अब हम देख रहे हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड भी वहां भारी मात्रा में केंद्रित है। हमें लगता है कि इसका मतलब यह है कि कार्बन की उत्पत्ति संभवतः यूरोपा के आंतरिक महासागर में हुई है।
साइंस पत्रिका में यूरोपा के अवलोकनों पर दो पत्र प्रकाशित हुए हैं। इनमें से एक पत्र की मुख्य लेखक ट्रंबो हैं। यह जेम्स वेब की ताकत का ही नतीजा है कि शोधकर्ताओं को यूरोपा के बारे में नए विवरणों को समझने में केवल कुछ मिनट लगे। शोधकर्ताओं को यूरोपा पर क्रिस्टलीय और अनाकार कार्बन डाइऑक्साइड दोनों के संकेत मिले। उन्होंने यूरोपा के उस क्षेत्र में गैस की उच्च सांद्रता देखी जिसे खगोलशास्त्री ‘अराजक क्षेत्र’ कहते हैं। इस क्षेत्र में सतह की परत बाधित हो गई है। यहां संभवतः ऊपरी परत और आंतरिक महासागर के बीच सामग्री की आवाजाही हो रही है।
चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड यूरोपा की सतह पर लंबे समय तक स्थिर नहीं रहती, शोधकर्ताओं का मानना है कि कार्बन अपेक्षाकृत हाल ही में समुद्र से आया है। 2022 की रिसर्च के अनुसार, यूरोपा की सतह औसतन लगभग 6 करोड़ वर्ष पुरानी है, जैसा कि बर्फ पर बने कुछ गड्ढों से अनुमान लगाया गया है। अराजकता वाला इलाका आम तौर पर औसत से छोटा है।
खगोल वैज्ञानिक आगामी वर्षों में यूरोपा के लिए दो मिशनों की योजना बना रहे हैं। नासा का क्लिपर मिशन अगले साल रवाना किया जा सकता है। यह मिशन अपनी कक्षा से यूरोपा का अवलोकन करेगा और वहां जीवन के लिए अनुकूल अणुओं और परिस्थितियों की खोज करेगा। यूरोपा क्लिपर पहला ऐसा मिशन है जो पृथ्वी के चंद्रमा को छोड़ कर सौरमंडल के किसी और चंद्रमा पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। यूरोपा क्लिपर चंद्रमा की सतह पर नहीं उतरेगा लेकिन 40 बार उसके नजदीक से गुजरेगा। यान पर लगे नौ उपकरण उसके चुंबकीय क्षेत्र, तापमान और अन्य विशेषताओं का विश्लेषण करेंगे। यूरोपा बीच-बीच में अंतरिक्ष की तरफ पानी के फव्वारे छोड़ता रहता है। ये फव्वारे सतह से 160 किलोमीटर तक ऊपर जाते हैं। यदि यूरोपा क्लिपर इन फव्वारों से गुजरने में कामयाब हो जाता है तो वह जल की रासायनिक संरचना का भी विश्लेषण कर सकता है। इस बीच, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा अप्रैल में लांच किया गया जूपिटर आइसी मून्स एक्सप्लोरर (जूस) अंतरिक्ष यान 2031 में बृहस्पति पर पहुंचेगा। यह यान उसके तीन चंद्रमाओं यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो की 35 बार उड़ान भी भरेगा। यूरोपा की तरह गेनीमेड और कैलिस्टो की सतह के नीचे भी समुद्र होने के संकेत मिले हैं।
वैसे हमारे ब्रह्मांड में ऐसे ग्रहों की संख्या अनगिनत है जिनका कोई मेजबान तारा नहीं है, लेकिन ऐसे ग्रहों के आसपास कई चंद्रमा हैं। वैज्ञानिकों का खयाल है कि इन चंद्रमाओं पर वायुमंडल हो सकता है। खगोल भौतिकविदों ने हिसाब लगाया है कि ऐसे चंद्रमाओं पर समुचित मात्रा में पानी की मौजूदगी हो सकती है। इतना पानी जीवन के निर्माण और जीवन के पनपने के लिए पर्याप्त होगा। पानी का तरल रूप जीवन के लिए अमृत है। इसी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ। हमारे ग्रह पर समस्त जैविक प्रणालियों के निरंतर अस्तित्व के लिए इसकी मौजूदगी अनिवार्य है। यही वजह है कि वैज्ञानिक ब्रह्मांड के दूसरे ठोस खगोलीय पिंडों में पानी की मौजूदगी के प्रमाण खोजते रहते हैं। अभी तक पृथ्वी के अलावा दूसरे ग्रहों पर तरल जल की उपस्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है।
लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।