डॉ. श्याम प्रीति
एक नेताजी हैं… नाम है खुराफातीलाल। वह खुद को राजनीतिक महाभारत का खुद ‘अर्जुन’ बताते हैं। सभा में जाते हैं तो चिल्लाते हैं और जीतने के बाद संसद में चुपचाप बैठे नजर आतेे हैं। गुरु द्रोण ने अर्जुन से लक्ष्य पूछा था तो जवाब मिला था… चिड़िया लेकिन बाबू खुराफातीलाल का लक्ष्य केवल कुर्सी है। उनकी आंखों में बस यही बसती है।
यह बात वह खुद कहते हैं। वह फरमाते हैं कि वह तो ‘पैदल’ थे… जीत गए तो ‘वजीर’ बन गए। यह जनता की मेहरबानी थी… सो जनता की बात वह बहुत गौर से सुनते हैं लेकिन सत्ता की चाबी हाथ में रहे इसलिए वह केवल सुनते हैं… जवाब देने की बजाय मुस्कुराकर काम चलाते हैं। वह कहते हैं कि चुप हजार बलाएं टालता है…
राजनीति के बारे में वह समझाते हैं कि यह शतरंज की उस बिसात जैसी है जिसमें राजा कोई भी हो… वह कभी मरता नहीं है, केवल हारता या जीतता है। जो राजा होता है… वह बाकी मोहरों को नचाता है। सभी मोहरे उस राजा की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं। शतरंज में चली जाने वाली चालें… राजनीति की बिसात में बहुत काम आती हैं। कब आगे बढ़ना है और कब पीछे हटना है… यह सोचना-समझना बहुत होता है। चतुर खिलाड़ी हर दांव का तोड़ ढूंढ़ता है।
बकौल खुराफातीलाल, शतरंज की बिसात में सबसे ज्यादा ‘घोड़ा’ उछलता है और राजनीति का घोड़ा वह कहलाता है, जो राजनीतिक दल में कुछ ज्यादा की उम्मीद रखता हैै। वह भूल जाता है कि उसकी लिमिट ढाई घर की चाल में सिमटी हुई है।
खुराफातीलाल कहते हैं- ‘घोड़े’ की तरह हाल ‘ऊंट’ का भी रहता है। वह हमेशा तिरछा भागता है और जब तक चाल सही चलता है, बचा रहता है लेकिन सावधानी हटी और दुर्घटना घटी… होते ही वह बिसात से बाहर कर दिया जाता है। राजा को तो मरना होता नहीं है, उसे तो मात मिलती है या जीत लेकिन सबसे ताकतवर होता है वजीर। कभी वह ‘हाथी’ की तरह सीधा चलता है और कभी घोड़े की तरह लेकिन वह ऊंट की तरह नहीं चल सकता।
सबसे मस्त ‘हाथी’ है… वह हमेशा सीधा चलता है…. एकदम आंखों की दिशा में। उसे महावत की जरूरत होती है और शतरंज का खिलाड़ी उसका महावत होता है। बचे पैदल… तो उनका काम तो सीधे चलना है और मौका मिलने पर टेढ़ा मारना। जैसेे पार्टी कार्यकर्ता…। कभी-कभी आगे बढ़ते-बढ़ते वे हाथी, ऊंट, घोड़ा या वजीर बन सकते हैं… यह उनकी किस्मत पर निर्भर करता है। राजनीतिक दलों में देख लीजिए… आपको राजा, वजीर, घोड़े, हाथी, ऊंट, पैदल के साथ कुछ ‘गधे’ भी दिख जाएंगे। ये शतरंज की बिसात से बाहर बैठने के बावजूद राजनीतिक खेल का हिस्सा होते हैं।