संतोष उत्सुक
बरसों पहले विज्ञापन आया था, ‘पड़ोसी की जले जान, आपकी बढ़े शान।’ आजकल है ‘कार ऐसी खरीदिए, दूसरे आपा खोएं।’ कार ऐसी खरीदिए जो हर कहीं पार्क करनी मुश्किल हो। सब जगह ले जाने का दिल न करे। कभी स्वादिष्ट खाने का न्योता मिले तो हिसाब लगाना पड़े। उनका घर, उस चौराहे से दाएं तरफ, उस सड़क पर, बाएं मुड़कर उस गली में है, अ… वहां गाड़ी ले जाएं तो पार्क कहां करेंगे। अन्दर जगह कम है। वहां गली वालों की गाड़ियां खड़ी होंगी, ले गए और जैसे-कैसे पार्क कर दी तो मोड़नी मुश्किल हो जाएगी। कहीं ठुक गई तो एक स्क्रैच हटवाने के सैकड़ों और एक डेंट के हज़ारों लग सकते हैं। इसलिए वहां जाना ही क्यूं जहां शानबढ़ाऊ कारजी पार्क करने के लिए उचित जगह न हो।
कार ऐसी खरीदिए जिसकी सुविधाओं बारे पता न चले। सुविधाएं वही हों जिनकी ज्यादा ज़रूरत न हो। आजकल विशेषताएं इतनी हैं कि देख-सुन, मन आपा खोए। टेस्ट ड्राइव लेते ही कीमत भूल जाए। कारजी घर आएं तो अजनबी हसीना की तरह, सब कुछ डिज़ाइनर पहन कर छाई हों। कार के फिचर्ज़ बढ़ती उम्र वालों के पल्ले न पड़ें। नई कार तो बच्चों और उनकी मम्मी की पसंद की ही लेनी होती है। पुरानी कार की याद तो आती रहेगी। ज़िंदगी जुगाड़ और संघर्ष में कटी, अब लग्जरी कार की गोद में लेटेगी।
नए फीचर, हसीनाओं की हाई स्लिट ड्रेस की तरह रिझाने के लिए होते हैं, बस, बंदा फिसल जाए। व्यापारिक मुस्कराहट लिए, क़र्ज़ देने वाले भी आपका हाथ और शरीर पकड़ने को तैयार हैं। बैंड बजाते इतने रास्ते, क़र्ज़ दिलाने की तरफ लिए जा रहे हैं। आजकल के ज़माने में भी, ‘घर के बाहर हाथी खड़ा है’ वाला ख्वाब कार खरीदकर पूरा हो सकता है। हां, विशेषताएं ऐसी होने चाहिए जो अच्छी तरह समझने के बाद भी याद न रहें। वैसे एक लिस्ट सामने लटका सकते हैं या फिचर्ज़ खुद ही कहते रहें, मालिक, हमें प्रयोग करो। वैसे तो ज्यादातर विशेषताएं शांत ही रहती हैं इसलिए पता नहीं रहता ।
सामान खरीद कर, उसकी सुन्दर रंगारंग पैकिंग उतारते हुए अच्छा लगता है। वीडियो भी बनाया जाता है। घर में खूब बधाइयां आती हैं लेकिन कुछ दिनों बाद ही लगता है, कार से लाखों रुपये में दिन में तारे देखने जैसा अनुभव है। खैर, अब यह विचार पुराना हो गया है कि समझदारी तो वही कार खरीदने में है जिसे मज़े से खुद ड्राइव कर सकें। सहजता से पार्क कर सकें और गाड़ी आपकी संतुलित खर्च करूं जेब से निकली हो और पड़ोसियों के भी काम आ सके।