राकेश सोहम्
हैप्पी हेलोवीन! बीते दिनों परदेस में हेलोवीन का त्योहार मनाया गया। इसके पीछे की कथा कुछ भी हो। देखने में यह एक ऐसा उत्सव है जिसमें लोग डरावने मुखौटे लगाकर आपस में मिलते-जुलते हैं। हमारे देश में मुखौटों की परंपरा पुरानी है। तभी तो ‘एक चेहरे पर कई चेहरे… लगा लेते हैं लोग।’ राजनीति में मुस्कुराते मुखौटे हमेशा प्रचलन में रहे हैं। अभी देश के पांच राज्यों में अघोषित हेलोवीन मनाया जा रहा है। मुस्कुराते मुखौटे जनता को लुभाने में लगे हैं। जरूरतमंदों पर इन मुखौटों का भारी असर देखा जा रहा है। किसी अनजान सिरफिरे ने इन हंसते, मुस्कुराते और प्रलोभन देते मुखौटों के असर की पड़ताल की है। अभी दो ही असरदार परिणाम सामने आए हैं, जो इस प्रकार हैं :-
असरदार परिणाम एक– जनकलाल जी के घर की कामवाली बाई बहुत अच्छी है। वह बिना नागा आती है, लेकिन कुछ दिनों से उसके तेवर बदले हुए हैं। अचानक लापता हो जाती है! घर के झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने के काम बेचारे जनकलाल जी के हिस्से आ जाते हैं। चार दिन की छुट्टी के बाद वह लौटी तो जनकलाल जी उस पर बरस पड़े। बाई ने चुप्पी तोड़ी और खुलासा किया, ‘हम चुनावी सभा में गई थी साब। आप हमें महीने भर के काम का कितना देते हो? हज़ार रुपया, बस! हमें अकेले एक सभा का चार-पांच सौ मिल जाता है।’ श्रीमती जनकलाल ने कमान संभाली और बोली, ‘लेकिन चुनावी सभा तो परसों थी?’ वह तुनक कर बोली, ‘हां तो क्या करें! अचानक दो सभा ‘अटेंड’ करना पड़ी। परसों वाली ‘लोकल’ थी और दूसरी पास के गांव में थी। वहां सपरिवार गई थी। वहां खूब कमाई हुई।’ वह अधिकारी के मानिंद मीटिंग अटेंड करने का विवरण बताने लगी। फिर गुस्से में साड़ी का पल्लू कमर में कसते हुए काम पर झपट पड़ी। जनकलाल सहम गए।
असरदार परिणाम दो- दिवाली का त्योहार सिर पर है। चिंतामन बिस्तर पर औंधे पड़े हैं। उनकी उम्रदराज कमर में भारी पीड़ा है। सीढ़ी पर चढ़कर घर की रंगाई-पुताई का काम वे स्वयं कर रहे थे। सीढ़ी सरक गई, काया धचक गई, कमर लचक गई। दरअसल, काम करने वाले दिहाड़ी मजदूर काम अधूरा छोड़कर भाग गए। पता चला है कि ये मजदूर, पार्टी-निरपेक्ष; अलग-अलग नेताई सभाओं में यहां से वहां डंडा-झंडा ताने अपने भरण-पोषण में लगे हैं।
अभी परिणाम और भी गंभीर आ सकते हैं क्योंकि चुनाव नज़दीक हैं। अपना ध्यान रखें। सतर्क रहें, सावधान रहें। बिलेटेड हैप्पी हेलोवीन।