एक तरह से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का आगाज छत्तीसगढ़ के बस्तर व दुर्ग की बीस सीटों के चुनाव के साथ ही हो जाएगा। पांच राज्यों में छत्तीसगढ़ अकेला राज्य है जहां दो चरणों में चुनाव है। जहां राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में एक ही दिन में चुनाव संपन्न होने हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में सुरक्षा कारणों से 90 सीटों का मतदान दो अलग-अलग चरणों में है। वैसे सात नवंबर को मिजोरम में भी मतदान होना है। लेकिन चुनाव का खास फोकस छत्तीसगढ़ के बस्तर दुर्ग के इलाकों में है। यहां बस्तर की बारह और दुर्ग क्षेत्र की आठ सीटों पर मतदान होना है। बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर व कांकेर नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र रहे हैं। लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होता दिख रहा है। इसे इन क्षेत्रों में बढ़ते मतदान प्रतिशत से भी देखा जा सकता है। जहां 2003 में बस्तर क्षेत्र में 65 प्रतिशत मतदान हुआ था, वहां पिछली बार 2018 में यहीं मतदान 75 प्रतिशत हुआ है। नब्बे के दशक में चालीस-पैंतालीस प्रतिशत मतदान भी बहुत मान लिया जाता था।
छत्तीसगढ़ की नब्बे सीटों में बस्तर, दुर्ग की 20 सीटें आती हैं। बस्तर की बारह सीटों में 11 एसटी के तहत आती हैं। एक एसटी सीट दुर्ग की है। कहा यही जाता है कि छत्तीसगढ़ की सत्ता की चाबी बस्तर-दुर्ग से आती है। बस्तर दुर्ग का क्षेत्र अलग-अलग कारणों से हमेशा सुर्खियों में रहा है। सियासत में इसका महत्व रहा है। कभी बस्तर पर कांग्रेस का प्रभाव रहता था। फिर बीजेपी ने 2003 में इसमें सेंध लगाई। रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सत्ता 15 साल बनी रही। एक बार फिर कांग्रेस ने इस चक्र को तोड़ा। छत्तीसगढ़ की सत्ता के साथ-साथ बस्तर दुर्ग में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए कांग्रेस-भाजपा में संघर्ष हो रहा है। बस्तर दुर्ग के इलाकों का सियासी महत्व इस बात पर भी है कि दुर्ग की राजनांदगांव की सीट पर बीजेपी नेता रमन सिंह चुनाव लड़ते हैं, वहीं चित्रकोट की प्रतिष्ठित सीट पर कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक बैज को ही चुनाव में उतारा है। बस्तर-दुर्ग के इन इलाकों में आदिवासी दलित मतदाताओं की संख्या को देखते हुए यूपी से उतरी पार्टी बसपा भी अपनी संभावनाएं देखती है और यहां की स्थानीय क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की कोशिश करती है। यही स्थिति आप पार्टी की भी है। वह भी इन क्षेत्रों को मथने का प्रयास कर रही है। बस्तर दुर्ग में जमीन, जंगल व कृषि के सवाल ही अहम रहे। सियासी दलों के गुणा-भाग भी इन्ही मुद्दों के आसपास रहे।
बस्तर क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव रहा। पहले जनसंघ और फिर आपातकाल के बाद बनी भाजपा ने अविभाजित मध्यप्रदेश के इन दुर्गों को ढहाने की बहुत कोशिश की। लेकिन बस्तर कांग्रेस के प्रभाव में रहा तो दुर्ग के किले अजित जोगी ने थामें रखे। इससे पहले लंबे समय तक दुर्ग की सियासत पर कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा का प्रभाव बना रहा।
आखिर छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहले चुनाव में बीजेपी ने बस्तर में कांग्रेस को पूरी तरह धराशायी कर यहां की सभी बारह सीटों पर जीत हासिल कर अपना परचम फहराया। बीजेपी को राज्य में जो 50 सीटें हासिल हुई थीं, उसमें एक-तिहाई से ज्यादा 15 सीटें इसी बस्तर-दुर्ग क्षेत्र से हासिल हुई थीं। डाॅ. रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने अगला विधानसभा चुनाव भी जीता। साथ ही बीजेपी के मत-प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई। इस बार भी कांग्रेस नई बनी पंडरिया, खुज्जी, मोहला, मानपुर और कोंटा की सीट जीत सकी। लेकिन राजनादगांव की सीट रमन सिंह के सामने गंवा दी। वर्ष 2013 के चुनाव में डाॅ. रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की हैट्रिक जरूर बनी। लेकिन कांग्रेस की चुनौती सामने आई। कांग्रेस ने बस्तर की आठ सीटें जीतीं। बीजेपी केवल चार सीट जीत सकी। भाजपा की दूसरे क्षेत्रों की सीटों के सहारे ही सरकार बनी। बीजेपी की सीटें लगभग पिछले आंकड़ों पर 49 बनी रहीं। 2018 में कांग्रेस ने 43 प्रतिशत मत लेकर 68 सीटें हासिल की। बीजेपी तब 15 में ही सिमट गई। कांग्रेस ने बस्तर की 12 में 11 सीटें हासिल कीं। बाद में उपचुनाव में कांग्रेस ने बारहवीं सीट भी हासिल कर ली।
दुर्ग और बस्तर के किले ढह गए। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि सीएम रमन सिंह की राजनांदगांव और दंतेवाड़ा की सीट ही बीजेपी बचा सकी। दरअसल, छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र में बीजेपी के लिए जो परिणाम 2013 में आए थे, उस संकेत को बीजेपी समझ नहीं पाई। आदिवासियों में जो नाराजगी थी उसे बीजेपी ने साधने की कोशिश नहीं की। खासकर नौकरशाही के प्रति लोगों की शिकायत का चुनाव पर सीधा असर पड़ा। कांग्रेस अपने मुद्दों को ज्य़ादा ठोस तरीके से जनता तक ले गई। तीन बार की सरकार का इंटर इनकम्बेंसी को भी कांग्रेस ने भुनाया। एमएसपी की कमजोर दरों को लेकर भी रोष रहा। माना गया कि वामपंथी ताकतों ने भी पूरा जोर बीजेपी को हराने और कांग्रेस को जिताने पर लगाया। पिछला चुनाव कांग्रेस ने बेहतर रणनीति के साथ लड़ा।
छत्तीसगढ़ में चुनाव के लिए पहले चरण में बीजेपी ने जहां पिछली गलतियों से सबक लेकर सावधानी से कदम उठाया है, वहीं कांग्रेस भूपेश बघेल सरकार की उपलब्धियों और योजनाओं का खाका जनता के सामने रख रही है। बस्तर-दुर्ग के इलाकों में जोरदार संघर्ष है। बीजेपी ने एक बार फिर आदिवासियों के क्षेत्र में पैठ बनाने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के पहले चरण का रण बस्तर और दुर्ग के उन इलाकों में है, जहां बीजेपी अपने पुराने गढ़ों को फिर से पाने की मशक्कत कर रही है। बस्तर के क्षेत्र पर ध्यान दिया जा रहा है। बीजेपी ने चुनाव के लिए रमन सिंह को चेहरा तो नहीं बनाया लेकिन रमन सरकार के 15 सालों के काम भी गिनाए जा रहे हैं। साथ ही लोगों को बताया जा रहा है कि केंद्र में मोदी सरकार के चलते माओवादी हिंसा थमी है। इस बार इन क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन का मुद्दा अंदर ही अंदर सुलग रहा है। बस्तर में बीजेपी ने चार पूर्व मंत्रियों को फिर से टिकट दिया है। बस्तर से बीजेपी ने आठ नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी सीधे अपने नाम पर वोट मांग रहे हैं। वहीं कांग्रेस के लिए बेशक राहुल गांधी-प्रियंका स्टार प्रचारक कहे जा रहे हों लेकिन असली कमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ही थामी है। कांग्रेस ने भी हर वर्ग के मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। सीएम बघेल अपने शासन की उपलब्धियों को जनता के सामने रख रहे हैं। इन क्षेत्रों में आदिवासियों को प्रभावित करने की कोशिश हुई हैं। तेंदुपत्ता खरीद दरों पर चार हजार रुपया प्रति बोरी बढ़ाया गया है। कांग्रेस की गारंटियों की भी खासी चर्चा है। कांग्रेस ने भी बीजेपी की तर्ज पर चित्रकोट की सीट पर सांसद दीपक बैज को चुनाव लड़ाया है। कांग्रेस ने बस्तर में अपने 12 प्रत्याशियों में से सात को फिर से मौका दिया है। चित्रकोट, दंतेवाड़ा, अंतकोट और कांकेर में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदले हैं।
छत्तीसगढ़ के चुनाव में बसपा और गौंडवाना गणतंत्र पार्टी ने गठबंधन किया है। बसपा का आधार छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में देखा जाता है। जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का आधार आदिवासी इलाके हैं। बसपा 53 और गौंडवाना गणतंत्र पार्टी 37 सीटों पर लड़ रही है। निश्चित ही बस्तर और दुर्ग में इनकी अपनी कोशिश होगी। दोनों ने जल, जंगल और जमीन को मुद्दा बनाया है। बसपा ने 2018 में जांजगीर की जैजेपुर और पांमगढ़ सीट जीती थी और चुनाव में 3.87 मत हासिल किए थे। बसपा की उस समय की सहयोगी पार्टी जेसीसीजे ने पांच सीट हासिल कर चौंकाया था। आप की कोशिश भी यहां अपना आधार बढ़ाने की है। इन क्षेत्रीय पार्टियों के अलावा सियासी दलों के असंतुष्ट बागियों के भी अपने खेल हैं। कांग्रेस-बीजेपी की इन पर भी नजर है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।