नयी दिल्ली, 3 नवंबर (एजेंसी)
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को वकीलों से नए मामलों में स्थगन का अनुरोध नहीं करने की अपील करते हुए कहा कि वह नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख-पे-तारीख’ अदालत बन जाए। उन्होंने कहा कि पिछले दो महीने में वकीलों ने 3,688 मामलों में स्थगन का अनुरोध किया। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी हैं।
गौर हो कि ‘तारीख-पे-तारीख’ हिंदी फिल्म ‘दामिनी’ में सनी देओल का लोकप्रिय संवाद था जिसमें अभिनेता ने फिल्म के एक दृश्य में अदालतों में स्थगन की संस्कृति पर रोष प्रकट किया था। सीजेआई ने कहा कि अब वकीलों की संस्थाओं की मदद से शीर्ष अदालत में मामला दायर होने के बाद नए मामलों को सूचीबद्ध करने में समय का अंतर काफी कम हो गया है। उन्होंने इस तथ्य पर अफसोस जताया कि पीठ के समक्ष मामले सूचीबद्ध होने के बाद वकील स्थगन का अनुरोध करते हैं और यह बाहरी दुनिया के लिए बहुत खराब संकेत देता है।
चुनाव से रोकने पर दो सप्ताह में केंद्र से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर अपराधों में आरोप तय किये गये लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर जवाब के लिए शुक्रवार को केंद्र को दो सप्ताह का समय दिया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अवगत कराया कि केंद्र सरकार ने इस मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है। पीठ ने कहा, ‘ केंद्र सरकार के वकील ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा है। इसे दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाये।’ शीर्ष अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने इस मुद्दे पर केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये थे। जिन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों में आरोप तय किये गये हैं, उन लोगों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के अलावा याचिका में केंद्र और भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को ऐसे उम्मीदवारों पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के दिशानिर्देशों के बावजूद केंद्र और निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया है। गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की एक रिपोर्ट के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए याचिका में कहा गया है कि 2009 के बाद से घोषित गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनमें से एक ने अपने खिलाफ 204 आपराधिक मामले होने की घोषणा की है।