दीप भट्ट
जाने-माने फिल्मकार श्याम बेनेगल की बहुप्रतीक्षित बायोपिक फिल्म-‘मुजीब द मेकिंग ऑफ ए नेशन’ बांग्लादेश और हिन्दुस्तान के साथ ही दुनिया भर के सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म को दर्शकों का अद्भुत प्यार मिला है। फिल्म की रिलीज के बाद श्याम बेनेगल ने फिल्म की सफलता और इसके निर्माण की चुनौतियों को लेकर विस्तार से बातचीत की। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के चुनिंदा अंश :
आपने तमाम अर्थपूर्ण और यथार्थपरक फिल्मों का निर्माण किया। पर बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की जीवनगाथा पर एक बायोपिक फिल्म निर्माण की चुनौतियां किस तरह की थीं?
देखिए, कॉमर्शियल फिल्म का निर्माण करना उतना चुनौतीपूर्ण काम नहीं जितना एक बॉयोपिक फिल्म का। पहले तो, जिस व्यक्ति की जीवनगाथा पर आप फिल्म बना रहे हैं उससे संबंधित ऐतिहासिक जानकारियां जुटाना बड़ा मुश्किल काम होता है। फिर उस विराट व्यक्तित्व को पर्दे पर साकार करने वाला उस क्षमता का कलाकार चाहिए। वहीं उस दौर को जीवंत करने के लिए वैसी ही पृष्ठभूमि तैयार करने की चुनौती हमारे सामने थी।
बांग्लादेश में इस फिल्म को कैसा रिस्पांस मिला है?
बांग्लादेश में 164 सिनेमाघरों में फिल्म चल रही है। मुझे जो रिपोर्ट मिली, उसके मुताबिक वहां आज तक कोई फिल्म इतनी हिट नहीं हुई। गांव-देहात तक फिल्म पहुंची है।
आप फिल्म में बांग्लादेश के कलाकारों के योगदान का किस तरह आकलन करते हैं?
वहां के एक्टर बहुत प्रोफेशनल हैं। चाहे काम के हिसाब से कहें या अनुशासन के,हर हिसाब से बेहतर हैं। ये नहीं कि एक ही शॉट के बीस-बीस री-टेक हों। तैयारी के साथ सेट पर आते हैं। इसलिए री-टेक की गुंजाइश नहीं होती।
वहां के कलाकारों की और कौन सी खूबियों ने आपको प्रभावित किया?
वहां ज्यादातर थिएटर के कलाकार हैं। वही मेरी फिल्म में थे। वे बहुत तैयारी से सेट पर पहुंचते थे। कॉस्ट्यूम के हिसाब से आते थे। कौन सा सीन है, एक बार बता दिया, फिर उनका काम देखने लायक होता था। ये नहीं कि डॉयलाग याद नहीं है, कॉस्ट्यूम ठीक नहीं हैं। मैंने उनकी हर चीज में परफेक्शन देखा। इसलिए काम में बहुत आसानी हुई। कुल 40-45 दिन में काम कर लिया था हमने वहां पर।
आपको बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद का कितना सहयोग मिला?
उनका तो भरपूर सहयोग मिला हमको। बांग्लादेश ओवरक्राउडेड है। वहां खाली जगह नहीं मिलती। अगर सरकार का सहयोग नहीं होता तो हम उन स्थानों पर शूटिंग नहीं कर सकते थे जहां करनी थी। फिर हमें उन सभी ऐतिहासिक जगहों पर शूटिंग करने की आसानी से अनुमति मिल गई जिनका शेख मुजीबुर्रहमान की निजी जिन्दगी से या उनके राजनीतिक जीवन से ताल्लुक था। बीएफडीसी और एनएफडीसी ने फिल्म निर्माण के लिए धन दिया। तो भारत और बांग्लादेश सरकारों की ओर से फिल्म निर्माण के लिए उनकी एजेंसियों से धन मिला।
फिल्म में शेख मुजीबुर्रहमान का किरदार निभाने वाले आरीफिन शुभो के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
आरीफिन ने तो फिल्म में अद्भुत अभिनय किया है। उसे मैं सेट पर शूटिंग करते हुए देखता था तो लगता था जैसे शेख मुजीबुर्रहमान की आत्मा उतर आई हो उसमें। मैंने यह बात, जब वह पहले दिन, शूटिंग कर रहा था, उससे कही भी थी। उसने शेख मुजीबुर्रहमान की भूमिका जिस बेहतरीन तरीके से की है उससे उसे अमरत्व मिला है। बांग्लादेश का वह लाडला कलाकार बन गया। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस फिल्म के लिए उसने सिर्फ एक टका यानी एक रुपया साइनिंग अमाउंट लिया। उसकी शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति श्रद्धा है।
बांग्लादेश में भी क्या यह फिल्म इसी टाइटल से रिलीज हुई या कुछ और है?
बांग्लादेश में फिल्म का टाइटल अलग है। वहां फिल्म- ‘मुजीब एक्टी जातिर रुपकार’ यानी बंगाली जाति के लिए एक देश का निर्माता नाम से बांग्ला में रिलीज हुई है।
आप अपनी फिल्मों की डबिंग नहीं करते। इसके पीछे कोई खास कारण ?
मैं अपनी फिल्मों में डबिंग नहीं करता। मेरी सभी फिल्में सिंक साउंड हैं। वजह यह कि डबिंग में एक्टर वह इमोशन नहीं ला पाता जैसा शूटिंग में शॉट देते वक्त ला रहा होता है।
आप बांग्लादेश में प्रीमियर में नहीं गए। वजह ?
काफी समय से स्वास्थ्य खराब चल रहा था इसलिए बांग्लादेश में प्रीमियर अटैंड नहीं कर सका। वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद का मुझे फोन आया था। उन्होंने कहा-हाऊ कैन आई रिपे यू फॉर दिस ब्यूटीफुल फिल्म। यह भी कि आप आ जाएं, आपके लिए डॉक्टरों से लेकर एंबुलेंस तक सारी व्यवस्था हैं।