डॉ. मधुसूदन शर्मा
सनातन संस्कृति का सर्वाधिक लोकप्रिय पावन पर्व दीपोत्सव कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। शीत ऋतु के आगमन के स्वागत में मनाया जाने वाले इस त्योहार में अमावस्या की रात को भारत के गांव-शहरों में असंख्य दीप प्रज्वलित हो उठते हैं। ये छोटे छोटे दिये अंधेरी रात को रोशन करते हुए मानवता को संदेश देते हैं ‘तमसो मां ज्योतिर्गमय’। हे प्रभु! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ। ये दीपक हमें प्रेरणा देते हैं कि जीवन में निराशा के अंधकार से डरो मत। एक छोटे से दीपक की पुरुषार्थ रूपी लौ निराशा रूपी अंधकार को आशा रूपी प्रकाश में बदल देती है।
पंच तत्वों का प्रतीक दीपक
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सृष्टि का सृजन पांच तत्वों से हुआ। इन पांचों तत्वों की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई। ब्रह्मा के मन से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की क्रमशः उत्पत्ति हुई। मिट्टी का दीपक इन्हीं पांच तत्वों का प्रतीक होता है। दीपक बनाने के लिए पहले मिट्टी को पानी में गलाया जाता है, जो क्रमशः पृथ्वी और जल तत्व के प्रतीक है, फिर उसे आकर देकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं फिर अग्नि तत्व ‘आग’ में तपाया जाता है। इस प्रकार ये मिट्टी के दीपक पंच तत्वों के प्रतीक होते हैं। इसीलिए हिंदू धर्म में धार्मिक कार्यों अनुष्ठानों या मांगलिक कार्यों का शुभारंभ मिट्टी का दीपक प्रज्वलित कर किये जाने की परंपरा है।
ऊर्जावान वातावरण के लिए
एक मान्यता यह भी है- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दीपावली के समय सूर्य निम्न राशि का होता है और अग्नि तत्व अत्यंत क्षीण हो जाता है। दीपों को प्रज्वलित करने से अग्नि तत्व की पूर्ति होती है, जिससे वातावरण ऊर्जावान होता है। दीपावाली की रात साल की सबसे काली अंधेरी रात होती है। ऐसे समय में दीपकों के प्रकाश से वातावरण जगमग हो उठता है।
ईश्वर का स्वरूप ज्योति
सनातन संस्कृति की मान्यता है कि प्रकाश ईश्वर स्वरूप है। श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने भी प्रकाश को सृष्टि का आधार तत्व बताया है- ‘जो योगी अखंड ध्यान द्वारा अपनी चेतना को परम चैतन्य में विलीन कर देता है, वह प्रकाश (प्राणिक स्पंदन) को सृष्टि के आधार तत्व के रूप में देखता है।’ दीपक की ज्योति ईश्वर का स्वरूप माना जाता है। इसलिए ध्यान, साधना, पूजा-उपासना या दूसरे मांगलिक कार्यों में दीप प्रज्वलित कर ईश्वर का आह्वान किया जाता हैं। दीपक के प्रकाश के बारे में शास्त्रों में कहा भी गया है- ‘दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन’ अर्थात् दीप ज्योति परब्रह्म-प्रकाश स्वरूप है। दीप ज्योति विष्णुस्वरूप है। चूंकि दीपक का प्रकाश सतोगुणी स्वरूप होता है, इसलिए यह शुभ शक्तियों, दैवीय स्पंदनों को अपनी ओर आकर्षित करता है। जिससे पारलौकिक अनिष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
शुद्ध-सात्विक वातावरण
गाय के घी से प्रज्वलित दीपक प्रदूषण दूर करता है, जिससे वातावरण शुद्ध-सात्विक हो जाता है। दीपक की लौ के प्रकाश से प्रकाशाणु वातावरण में व्याप्त रोगाणुओं को समाप्त कर देते हैं। दीपक की खड़ी चमकदार लौ पर त्राटक करने से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मस्तिष्क की कार्य-क्षमता में वृद्धि होती है। दीपों की आभा शुद्ध होती है जिससे वातावरण सकारात्मक हो जाता है। अंधकार अवसाद पैदा करता है, जबकि प्रकाश मन में आनंद और उत्साह पैदा करता है। दीपावली पर टिमटिमाते इन दीपकों के कारण मन आनंद और उत्साह से भर जाता है।
दीपदान महापुण्यदायक
दीप प्रज्वलन करते समय पहले निम्न मंत्र को दीपक की पूजा करते हुए उच्चारण किया जाता है :-
‘शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यम् धन सम्पदा। शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते।’ अर्थात् जो शुभ करता है, कल्याण करता है, आरोग्य रखता है, धन संपदा देता है और शत्रु बुद्धि का विनाश करता है, ऐसे दीप के प्रकाश को मैं नमस्कार करता हूं।
दीपावली पर दीपदान महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक होता है। अग्निपुराण के 200वें अध्याय में कहा गया है : ‘दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति।’ अर्थात् दीपदान से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। इस ज्योतिपर्व की समग्र सार्थकता तभी है, जब यह पर्व केवल दीप प्रज्वलित करने तक ही सीमित न हो। बल्कि इस पर्व पर हमारे अंतस का अंधेरा मिटे। और हमारे अंदर ज्ञान और प्रेम की ज्योति जल उठे।