ललित शर्मा/हप्र
कैथल, 6 नवंबर
धरती माता बीमार है। मर्ज बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों दवा करते हैं। कारण यह है कि रोग का पता नहीं है। धड़ाधड़ कीटनाशक दवाइयां धरती के मुंह में उड़ेली जा रही हैं। कारण ये है कि मिट्टी की बीमारियां जांचने के लिए सरकार ने जो महकमा खड़ा किया है, उसके पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। प्रदेश भर में मिट्टी की जांच करने के लिए जरूरी खंड कृषि अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी व अन्य कर्मचारियों के करीब 70 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। किसान कीटनाशक बनाने वाली दवाइयों की फैक्टरियों और दवा विक्रेताओं के हवाले हैं। जिन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कौन सी मिट्टी में कौन सी दवाई डाली जानी है। बस सेल्स टारगेट पूरे करने हैं। इसलिए तरह-तरह के अवैज्ञानिक तर्क देकर किसानों को खेत में बेतहाशा दवाइयां डालने के लिए बहकाया जा रहा है।
ऐसे में धरती से उपजे अन्न, सब्जियां व फल खाकर लोग बीमार हो रहे हैं। इसके लिए जितना दोषी किसान है, उससे कई गुणा अधिक दोषी सरकार की लापरवाही जिम्मेदार है। अगर सरकार केरल की तर्ज पर राज्य के प्रत्येक गांव में कृषि विकास अधिकारी नियुक्त करके किसानों को गांव-गांव सुविधा दे तो हरियाणा की बीमार पड़ी धरती की सेहत सुधर सकती है और लोगों को बीमारियों से काफी हद तक बचाया जा सकता है। अगर सरकार के अप्रैल 2021 से मार्च 2022 के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो राज्य में खंड कृषि अधिकारी के कुल स्वीकृत पद 196 हैं। इसमें से 129 पद भरे हुए हैं, जबकि 69 पद रिक्त हैं। कृषि विकास अधिकारी प्रशासनिक के कुल स्वीकृत पद 1067 हैं। इनमें से 267 पदों पर ही अधिकारी कार्यरत हैं, 800 पद खाली पड़े हैं।
कृषि विकास अधिकारी मृदा संरक्षक की बात करें तो स्वीकृत पद 109 हैं। ये सभी पद रिक्त पड़े हैं। कृषि विभाग अधिकारी इंजीनियरिंग विंग के कुल स्वीकृत पद 31 हैं। इसमें से 11 पर अधिकारी कार्यरत हैं, जबकि शेष 20 पद खाली हैं। यहां बताना जरूरी है कि कुछ पदों पर कृ़षि विभाग ने समायोजन किया है। कुछ लोग नये भर्ती हुए हैं तो कुछ रिटायर्ड होकर चले गए हैं। उपरोक्त खाली पदों से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कृषि के क्षेत्र में कैसे उन्नत होंगे। हैरानी की बात तो यह है कि ग्राम स्तर पर कृषि विभाग का कोई कार्यालय ही नहीं है।
अधिकारियों के अभाव में दम तोड़ रही योजनाएं
सरकार ने किसानों के हितों के लिए अनेक योजनाएं लागू की हैं। किसानों के पोर्टल से लेकर मेरा पानी-मेरी विरासत जैसी योजनाएं हैं, लेकिन कृषि विभाग में अधिकारियों व कर्मचारियों के टोटे के चलते ये योजनाएं दम तोड़ रही हैं। मेरा पानी, मेरी विरासत योजना का उद्देश्य था कि धान के रकबे को कम किया जाए, लेकिन अधिकारियों की कमी के कारण धान का रकबा कम होने की बजाय बढ़ रहा है। अधिकारियों की सुस्ती के कारण कैथल में गन्ने का 8 हजार एकड़ का एरिया धान में तब्दील हो गया है।
गांव-गांव अफसर बैठें तो सुधरे जमीन की सेहत : गुलतान नैन
भारतीय किसान संघ के प्रांतीय मंत्री गुलतान नैन ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है। अगर खेती बीमार हो गई तो धीरे-धीरे सारा सिस्टम बिगड़ जाएगा। इसे रोकने के लिए गांव-गांव कृषि वैज्ञानिक और अधिकारियों की नियुक्तियां होनी चाहिए। उनके कार्यालय होने चाहिए, जिससे किसान वहीं मिट्टी की जांच से लेकर स्प्रे, खाद की मात्रा के बारे में सुझाव कृषि विशेषज्ञों से ले सकें। कृषि विकास अधिकारियों के करीब 80 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। ऐसे में हरियाणा कैसे कृषि प्रधान राज्य बनेगा। नैन ने कहा कि वे इन्हीं मांगों को लेकर पिछले दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मिले हैं। उनकी मांग है कि केरला की तर्ज पर हरियाणा में भी गांव-गांव में कृषि अधिकारियों के कार्यालय हों और मिट्टी जांच से लेकर सभी सुविधाएं इन कार्यालयों में हों।
क्या कहते हैं अधिकारी
हमारा उद्देश्य है कि किसानों को हर सुविधा मिले। विभाग में कृषि विकास अधिकारियों के पद खाली हैं। पिछले दिनों कुछ पोस्ट निकली थी। इसमें 52 अधिकारी नियुक्त किए गए थे। विभाग किसानों को जागरूक करने के लिए गांव-गांव जाकर कैंप लगाता है।
– डाॅ. रोहताश, अतिरिक्त कृषि निदेशक