सर्दी की शुरुआत में हर वर्ष प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। खराब हवा में बच्चों, बुजुर्गों व गंभीर रोगियों के लिए सेहत से जुड़ी खासकर सांस संबंधी दिक्कतें बढ़ जाती हैं। ऐसे में बरती जाने वाली सावधानियों व बचाव के उपायों को लेकर दिल्ली स्थित सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विनी कांतरू से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
सर्दी के आगमन और बदलते मौसम में पिछले कुछ सालों से हमारे देश के कई राज्यों में प्रदूषण का कहर बरपता है। कम तापमान, ठंडी हवाएं और स्मॉग प्रदूषण शरीर के विभिन्न अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रदूषण के कारण वातावरण में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई इंडेक्स) काफी खराब हो जाता है। प्रदूषक तत्वों का लेवल पीएम -2.5 से पीएम -10 तक होता है। इनमें पीएम -2.5 से बड़े प्रदूषक तत्व हमारी सांस के जरिये शरीर के अंदर पहुंचकर फेफड़ों को सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। सांस की ब्रोन्कियल ट्यूब सिकुड़ जाती है और सूजन आ जाती है। फेफडों के ऊतकों का लचीलापन कम होने लगता है। जिससे मूलतः खांसी-जुकाम, गला खराब होना, रेशा, सांस लेने में दिक्कत, सीओपीडी, आईएलडी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी रेस्पेरेटरी समस्याएं होती हैं।
बच्चों, बुजुर्गों व रोगियों का खास खयाल
सांस की नली में मौजूद कई प्रदूषक तत्व विघटित होकर पीएम-2.5 से छोटे होकर रक्त में मिल जाते हैं। रक्त प्रवाह प्रक्रिया के साथ शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच जाते हैं और उन्हें नुकसान पहुचाते हैं। जैसे- आंखों में लालिमा और जलन होना, त्वचा और बाल रुखे-बेजान होना। हार्ट आर्टरीज में पहुंचकर कार्डियो वैस्कुलर बदलाव लाना जिसकी वजह से हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक या लकवा हो सकता है। इनके अलावा कैंसर, डायबिटीज जैसे रोग भी प्रदूषण से जुड़े हुए हैं। प्रदूषण के ज्यादा संपर्क में रहने पर प्रदूषक तत्व शरीर में मौजूद साइटोकाइन हार्मोन्स के साथ रिएक्ट कर जाते हैं। खासकर जोड़ों में सूजन पैदा करते हैं और आर्थराइटिस आदि का कारण बनते हैं। इस मौसम में प्रदूषण का सबसे ज्यादा खतरा कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों यानी बच्चों व बुजुर्गों, और पहले से ही गंभीर बीमारियों जूझ रहे लोगों को भी होता है।
ऐसे करें बचाव
सेहत का ध्यान रखें। किसी भी तरह की समस्या होने पर दवाई खुद न लेकर, चिकित्सक के परामर्श से लें। खासकर गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज अपने डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें और समुचित उपचार कराएं। वहीं सांस संबंधी रोगों से ग्रस्त मरीज और कमजोर इम्युनिटी वाले व्यक्ति बदलते मौसम में फ्लू, इंफ्लूएंजा की वैक्सीन जरूर लगवाएं। कभी सांस लेने में दिक्कत महसूस हो, तो डोज़ के हिसाब से इन्हेलर का उपयोग करें। जरूरत हो तो स्टीमर या नेबुलाइजर का इस्तेमाल करें। प्रदूषण की वजह से बढ़ती उम्र में फेफड़े क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है। 50 साल के बाद व्यक्ति रूटीन हेल्थ चेकअप करवाएं व डॉक्टरी परामर्श से दवाइयां लें। यह भी जरूरी है कि पोषक और संतुलित आहार का सेवन करें। हाई फैट या हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट के बजाय विटामिन मिनरल, प्रोटीन कैल्शियम रिच डाइट लें। भरपूर मात्रा में पानी पिएं। बेहतर है कि पानी हल्का गर्म हो।
इंडोर प्रदूषण के प्रति भी चौकसी
इंडोर वायु प्रदूषण से बचने को घर में वायु-संचरण की सुविधा अच्छी रखें। बाहर वातावरण में स्मॉग प्रदूषण का स्तर कम हो और धूप आ रही हो, तो सुबह उठने पर खिड़की-दरवाजे थोड़ी देर के लिए खोल दें। किचन के धुंए को निकालने के लिए चिमनी या एक्जास्ट जरूर चलाएं। खांसी-जुकाम या सांस लेने में किसी तरह की समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये ब्रोंकाइटिस, अस्थमा या सीओपीडी जैसी बीमारियों के कारक हो सकते हैं। घर, कपड़ों व फर्नीचर की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। यदि घर में अगर पालतू जानवर हों, तो यथासंभव दूरी रखें क्योंकि उनके बाल श्वसन तंत्र में पहुंचकर सांस संबंधी समस्याएं ट्रिगर कर सकते हैं। घर और आसपास मनी प्लांट, स्नैक प्लांट, पाम जैसे प्रदूषण प्रतिरोधी पौधे लगाएं। ये पौधे कार्बनडाई अवशोषित करने व ऑक्सीजन रिलीज कर वातावरण साफ रखने में मदद करते हैं।
जब भी बाहर जायें…
प्रदूषण का स्तर ज्यादा हो, तो बाहर जाते समय मास्क जरूर पहनें। जरूरी है कि आप मौसम और एक्यूआई इंडेक्स के प्रति सतर्क रहें। गुगल एप से मदद ले सकते हैं । मौसम अनुसार दिनचर्या में बदलाव लाएं। यह भी कि अस्थमा के मरीज इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें। घर में अतिरिक्त इन्हेलर जरूर रखें ताकि देर-सवेर खत्म होने पर मुश्किल न हो। बच्चे, उम्रदराज लोग और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को तो बाहर जाने से बचना चाहिए। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। अपनी दिनचर्या यानी सही समय पर सोने-जागने, खाने-पीने और काम करने का विशेष ध्यान रखें। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद अपने लिए जरूर समय निकालें। प्रतिदिन सुबह-शाम कम से कम 40 मिनट तेज चलना, दौड़ना, व्यायाम, एक्सरसाइज, योगासन, कार्डियो, ऐरोबिक जैसी एक्टिविटीज करें।