अरुण नैथानी
कैलाश सत्यार्थी किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उन्होंने पिछले चार दशकों में एक लाख से अधिक बच्चों को बालश्रम और बालदासता से मुक्त कराया। ‘बचपन बचाओ’ की देशव्यापी मुहिम चलाने वाले सत्यार्थी बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले वैश्विक छवि के अग्रदूत हैं। उन्हें वर्ष 2014 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला था। उनकी हालिया पुस्तक ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ बारह ऐसी सच्ची कहानियां हैं जिसमें बच्चे बालदासता, बालश्रम, उत्पीड़न, काम-धंधों में शोषण, ईंट-भट्ठों, खदानों, कालीन उद्योग, सर्कस, दुर्व्यापार, यौन उत्पीड़न व घरेलू बाल मजदूरी की रोंगटे खड़े करने वाले उत्पीड़न से मुक्त होकर बालदासता के खिलाफ प्रतीक बने।
सत्यार्थी लिखते हैं कि पिछले चार दशक में सामने आए इन अमानवीय घटनाक्रमों ने उन्हें गहरे तक उद्वेलित किया। जिन्हें कागज में उतरने में एक दशक से अधिक का समय लगा। इन जीवंत किरदारों की पीड़ा की तपिश कालांतर में लाखों बच्चों की दासता की बेड़ियां पिघलाने में मददगार बनी। दरअसल, बाल उत्पीड़न-शोषण की अनेक घटनाएं उजागर होने के बाद बाल अधिकारों, खदानों, उद्योगों व घरेलू कामगार बाल श्रमिकों की मुक्ति के कानून अस्तित्व में आए। आज ये बच्चे अपने जीवन में बड़े बदलाव लाकर प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।
समीक्ष्य कृति में अंधेरे के खिलाफ जंग करने वाली 1981 में मुक्त करायी गई साबो की कहानी है, जो कालांतर में बाल दासता के खिलाफ वैश्विक मुहिम का चेहरा बनी। तो सर्कस में यौन उत्पीड़न का शिकार बच्ची की दर्दभरी दास्तां भी है। शहीद कालू की वेदना है जो एक अमेरिका राष्ट्रपति से बाल दासता से मुक्ति के सवाल करता है। कहानियों में पनौती माने गए प्रदीप, एक आईपीएस अधिकार के घर में गर्म चिमटे से दागे गए अशरफ, खदान मजदूर देवली की दर्दभर दास्तां भी पुस्तक की कहानियों का हिस्सा हैं।
नि:संदेह, कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक ‘तुम पहले क्यों नहीं आये’, हमारे समाज में बाल अधिकारों का अतिक्रमण, शोषण व दुर्व्यवहार की हकीकत बताने वाला एक सार्थक प्रयास है।
पुस्तक : तुम पहले क्यों नहीं आए रचनाकार : कैलाश सत्यार्थी प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 246 मूल्य : रु. 299.