एक पारिवारिक चिकित्सक (फैमिली डॉक्टर) स्वास्थ्य व्यवस्था का अभिन्न अंग होता है। विगत में, भारतीय परिवार का किसी चिकित्सक से जुड़े होना आम चलन था। वह चिकित्सक उस परिवार को स्वास्थ्य सेवाएं देने के अलावा अक्सर पारिवारिक मसलों में भरोसेयोग्य मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाया करता था। पश्चिमी देशों में, पारिवारिक चिकित्सक आज भी स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सामान्य चिकित्सक वाली व्यवस्था यूके की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में रीढ़ की हड्डी है, जो स्थानीय निवासियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाती है।
भारत में मेडिकल शिक्षा प्राप्त निकले स्नातक शहरों में पारिवारिक चिकित्सकों की भूमिका में हुआ करते थे तो गांवों में यही काम रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (आरएमपी) का था। मेडिकल जगत में बहुत ज्यादा तरक्की होने के कारण अब किसी पारिवारिक चिकित्सक के पास केवल एमबीबीएस की डिग्री होना माकूल स्वास्थ्य सेवा देने में काफी नहीं माना जाता। इसलिए मरीज अब मामूली बीमारी में भी ज्यादातर विशेषज्ञ डाक्टरों का रुख करते हैं।
विशेषज्ञ डॉक्टर की महारत किसी खास विधा या बीमारी में होती है, लेकिन वे अतिरिक्त बीमारियों को संभाल नहीं पाते। मसलन, या तो वे समस्या को समग्रता के परिप्रेक्ष्य में समझ नहीं पाते (जिससे बीमारी कई मर्तबा बहुत गंभीर बन जाती है) या फिर वे मरीज को आगे किसी अन्य विशेषज्ञ के पास भेज देते हैं, लिहाजा इलाज में खर्च बढ़ोतरी हो जाती है।
हमें जरूरत है उच्च शिक्षित, उच्च कौशलयुक्त किंतु सामान्य अथवा पारिवारिक चिकित्सकों (फैमिली फिज़िशियन) की, जो फौरी प्राथमिक और यहां तक कि कुछ माध्यमिक स्वास्थ्य जरूरतों में अपने स्तर पर इलाज करने में सक्षम हों। पारिवारिक चिकित्सक से अपेक्षा है कि उसके पास विभिन्न रोगों की समझ हो ताकि हरेक उम्र और बीमारी के मरीज को बृहद स्वास्थ्य देखभाल दे पाए। जरूरत पड़ने पर वह मरीज को संबंधित विशेषज्ञ के पास भेज सकता है।
युक्तम स्वास्थ्य देखभाल देने के आलोक में, यथेष्ट मानव-बल और बुनियादी ढांचा का होना जरूरी है। सालों तक, सरकार और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (जो अब नेशनल मेडिकल कमीशन है), दोनों ने अधिक संख्या में मेडिकल कॉलेज सुनिश्चित करने को कदम उठाए हैं। अब इनकी संख्या 700 से अधिक हो गई है, और यह सब मिलकर हर साल एमबीबीएस कोर्स में 1 लाख से अधिक सीटों पर दाखिले की क्षमता रखते हैं। स्नातकोत्तर सीटों की संख्या भी बढ़कर लगभग 70,000 हो गई है।
हालांकि, विभिन्न विशेषज्ञ कोर्स में भी सीटों की गिनती बढ़ी है लेकिन एमडी (फैमिली मेडिसिन) कोर्स में सीटें बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की गई। प्रभावशाली वैश्विक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने में पारिवारिक व सामान्य चिकित्सक वर्ग की भूमिका बहुत अहम है, जिससे कि सामान्य किस्म की बीमारी के इलाज के लिए विशेषज्ञों पर बेजा बोझ न पड़े। इसके अलावा, पारिवारिक चिकित्सक जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञों के साथ तालमेल बनाकर अपने स्तर पर इलाज कर सकता है।
पारिवारिक चिकित्सक विधा (एमडी फैमिली मेडिसिन) में स्नातकोत्तर डिग्री होने की जरूरत का अहसास एमसीआई और नेशनल बोर्ड ऑफ एग्ज़ामिनेशन को सालों पहले हो गया था लेकिन दुर्भाग्यवश, इस मामले पर आगे काम नहीं हुआ। यह साल 2021 था जब एमसीआई ने मेडिकल कॉलेजों को फैमिली मेडिसिन विधा में एमडी कोर्स शुरू करने की अनुमति दी। इससे पहले एनबीई ने कुछ अस्पतालों में यह कोर्स चलाने का अनुमोदन कर दिया था। वर्ष 2011-22 के बीच एमसीआई बोर्ड ने इस मुद्दे पर विचार किया और एक सटीक पाठ्यक्रम तैयार करवाया और फैमिली मेडिसिन के लिए आवश्यक न्यूनतम मानकों को तय किया।
इसकी जानकारी सरकार को दे दी गई। यह सोचा गया कि पहले पहल मेडिसिन विभाग के अध्यापक बतौर समन्वयक पढ़ाई करवाएंगे और एमडी (फैमिली) रेज़िडेंट्स को पढ़ाने में अन्य संबंधित विधाओं के शिक्षकों को भी शामिल किया जाएगा ताकि शुरुआती दौर में अलग से विभाग बनाने की जरूरत न पड़े। यह भी सलाह दी गई कि एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम व पाठ्यक्रम उन एमबीबीएस डॉक्टरों के लिए हो, जो पांच साल से लगातार इलाज कर रहे हैं जिससे प्रशिक्षण अवधि में अमूमन दो साल बच पाएंगे। ऐसा होने पर, न केवल समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती बल्कि पारिवारिक या सामान्य चिकित्सक रहते हुए, नया कौशल सीखकर उन्हें और अधिक प्रभावशाली इलाज करने की काबिलियत मिल जाती।
एनएमसी को अब प्रभावशाली फैमिली मेडिसिन फिज़िशियन बनाने हेतु पाठ्यक्रम और न्यूनतम मानक तय करने पर पुनर्विचार करना चाहिए। अहम यह कि नियामकों को सुनिश्चित करना होगा कि फैमिली मेडिसिन में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने वाले को डीएम (डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन) कोर्स करने में दाखिले की योग्यता खुद-ब-खुद मान्य न होने पाए। अन्यथा, यह प्रावधान एमडी (मेडिसिन) उत्तीर्ण न करने वालों के लिए पिछला रास्ता बन जाएगा क्योंकि एमडी (मेडिसिन) और एमडी (फैमिली मेडिसिन) दो अलग विधाएं हैं और इनका पाठ्यक्रम भी नितांत अहलदा है। इसलिए एमडी (फैमिली मेडिसिन) करने वाले डीएम कोर्स के लिए जरूरी योग्यता मानकों को पूरा नहीं करते।
सरकार ने फैमिली मेडिसिन विधा को लोकप्रिय बनाने के लिए सभी नए बने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों को फैमिली मेडिसिन विधा में स्नातकोत्तर कोर्स शुरू करने के लिए कई कदम उठाये हैं। इसी प्रकार, एनएमसी भी मेडिकल कॉलेज़ों को यह कोर्स शुरू करने को प्रोत्साहित करे। एनएमसी कानून में विशेषतौर पर कहा गया है कि स्नातकोत्तर बोर्ड फैमिली मेडिसिन में पोस्ट ग्रेजुएशन को बढ़ावा और सहयोग दे। सरकार को भी भारतीय स्वास्थ्य मानकों में सुधार करना होगा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में फैमिली मेडिसिन में स्नातकोत्तर करने वालों के लिए नौकरी के अवसर जोड़ने होंगे। फैमिली मेडिसिन की पढ़ाई चुनने के लिए स्नातकों को प्रोत्साहित करने में यह कदम उठाना बहुत जरूरी है।
वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल के हित में इस कोर्स को आकर्षक बनाने के लिए कुछ और कदम उठाने की भी जरूरत है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों या जिला अस्पतालों में एक अलग फैमिली फिज़िशियन होने की जरूरत है। उन्हें अपने सामान्य सरकारी नौकरी के समय के बाद, घर पर फीस के बदले इलाज करने की इज़ाजत देनी चाहिए जिससे परिवारों की निजी स्वास्थ्य जरूरतें फौरन पूरी हो पाएं। वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने में, एकीकरण की दिशा में सरकारी फैमिली फिज़िशियनों को कुछ तरीकों से शामिल करके, निजी इलाज सेवाएं मुहैया करवाने में शामिल किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर, विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ समन्वय बनाकर पारिवारिक चिकित्सक विशेषज्ञ स्तर का इलाज और उपचार उपरांत परामर्श दे सकेंगे, जिससे अस्पतालों में जाकर मुआयना करवाने की फेरियां कम हो सकेंगी और व्यवस्था पर बोझ घटेगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और एनएमसी, दोनों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण देने में कमी का निदान करने की जरूरत है।
लेखक पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के पूर्व निदेशक हैं।