अरुण नैथानी
संक्रमणकाल से गुजरते देश में आर्थिक लक्ष्यों की प्राथमिकता और प्रगति की अंधी दौड़ का पिच्छलग्गू बनते भारतीय समाज ने खानपान व जीवन व्यवहार की उस समृद्ध व अर्थपूर्ण विरासत को कब तिलांजलि दे दी, पता ही नहीं चला। हमारे व्यवहार की कृत्रिमता व दिखावे ने हमें तमाम मनोकायिक रोगों का शिकार बनाया। हमारे परिवेश व घर में सेहत के लिये जरूरी जड़ी-बूटी, पौधे, फल व खाद्यान्न आदि बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हमारे पुरखों ने सदियों से संजोये रखा। पर्वतों-कंदराओं में लंबी साधना के उपरांत भारतीय ऋषि-मुनियों ने योग के सिद्धांत बनाये। जो आज भी खरे हैं। फिर परतंत्रता व गरीबी के कालखंड में जब रोटी व आजादी प्राथमिकता बन गई तो सेहत के जादुई मंत्र योग व प्राकृतिक चिकित्सा को हमने कब तिलांजलि दे दी, हमें ध्यान नहीं है। समय के साथ-साथ हमारे पारिवारिक मित्र वैद्य और फैमिली डॉक्टरों की परंपरा भी धीरे-धीरे खत्म हो गई। जिनकी जगह पांच सितारा अस्पतालों व उल्टे उस्तरे से मूंडते चिकित्सकों ने ले ली।
पिछले ढाई दशक से सेहत के प्रति चेतना जगाने, आयुर्वेद की प्रतिष्ठा तथा योग को घर-घर पहुंचाने का काम योगगुरू रामदेव ने किया। आज उनके योग अभियान की धमक देश-विदेश तक है। उनके तथा कुछ अन्य चैनलों में रोज प्रसारित होने वाले योग व प्राकृतिक चिकित्सा कार्यक्रमों से लाखों-करोड़ों लोग जुड़ते हैं। उन्होंने योग व आयुर्वेद को प्रमाणिक बनाने के लिये शोध-अनुसंधान का सहारा भी लिया है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उन्होंने योग को आम आदमी तक पहुंचाने के साथ ही आयुर्वेद उपचार से उस नई पीढ़ी को अवगत कराया है जो इसे भूल चुकी थी।
योग गुरु बाबा रामदेव को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने पतंजलि संस्थानों के तहत स्वदेशी अभियान में उत्पादकता को बढ़ावा देकर लाखों लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराए हैं। उन्होंने स्वदेशी, हिंदी, गुरुकुल व योग की भारतीय परंपराओं को नई प्रतिष्ठा दी है। वे बेबाक बयानी के लिये जाने जाते हैं। वे कई आरोपों के केंद्र में भी दिखे। लेकिन वे कभी बचाव की मुद्रा में नहीं दिखे और आक्रामक होकर अपने पक्ष को रखते नजर आए।
हरियाणा के साधारण किसान परिवार में जन्मे बाबा रामदेव ने उत्तराखंड को अपनी कर्म स्थली और आध्यात्मिक साधना की भूमि बनाया। वे प्रत्यक्ष तौर पर एक लाख व परोक्ष रूप से पांच लाख लोगों को रोजगार दे रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव प्रयास से भारतीय प्राच्य विद्या, संस्कृत, संस्कृति व योग-आयुर्वेद के पाठ्यक्रम उनके शैक्षिक अभियान को विशिष्ट बनाते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वरीय शक्ति ने उन्हें उत्तराखंड में गुरुतर दायित्व सौंपा है। अपनी जन्मभूमि हरियाणा के लिये भी वे कुछ बड़ा करने का मन बना रहे हैं। हरिद्वार जनपद के सुदूर इलाके में स्थित योगग्राम में उनकी जीवन यात्रा,योग व प्राकृतिक चिकित्सा तथा कारोबारी जगत से जुड़े मुद्दों पर हुई बातचीत के अंश:-
आम धारणा रही है कि योगी पुरुष सांसारिक मोह-माया के प्रति निर्लेप भाव से आध्यात्मिक साधना में रत रहते हैं। आपके द्वारा ज्ञान व माया को एक साथ साधना कैसे संभव हुआ?
तत्वत: ज्ञान भक्ति का ही रूप है। उससे कर्म भिन्न नहीं है। हरेक की भाव चेतना की प्रधान्यता ज्यादा या कम होती है। किसी में भक्ति ज्यादा तो किसी में ज्ञान की अधिकता होती है। मूलत: ज्ञान व भक्ति की परिणति एकत्व में ही है। ये भिन्न नहीं हैं। मेरे जीवन में जन्म से ही कर्म व पुरुषार्थ का प्राधान्य रहा है। मैं गुरुकुल में पढ़ा। प्राच्य शास्त्रों का गुरु कृपा से अनुशीलन किया। यह तय है कि भक्ति के बिना कोई संन्यासी नहीं होता। इतना बड़ा काम मेरे लिये विधाता ने तय किया है, यह शरणागति के बिना संभव नहीं है। अकाम होकर मुक्त रूप से संन्यासी हुआ जा सकता है। अनासक्ति ही योगी का गुण है। इसके बिना न संन्यासी होगा व न योग। भगवत् गीता में बिना तृष्णा के कर्म करने वाले को ही योगी कहा गया।
आप जब भी किसी संगठन व दल के निशाने पर आए तो आपने शिद्दत से मुकाबला किया। कभी झुके नहीं। ये ताकत कहां से आती है?
बताइए विरोध किसका होता है? हम भी कहते हैं समाज में गलत बात का विरोध होना चाहिए। लेकिन हमारे व्यक्तित्व से,कृतित्व से, चरित्र से क्या अनुचित है। लेकिन जब मैं कोई सही बात कहता हूं तो दवा माफिया, नशा माफिया, ग्लैमर माफिया, जंक फूड माफिया,विलासिता माफिया, राजनीतिक माफिया, ड्रग माफिया उठ खड़ा होता है। जिनकी दुखती रग पर हाथ रखता हूं, वो बोलता है। एक बौद्धिक समूह है, जो बड़ा खतरनाक है। भारत का सनातन पर आधारित कोई काम इनको रास नहीं आता। जो दुष्प्रचार व षड्यंत्र से लोगों को फंसाते हैं। देश-दुनिया को सबसे बड़ा खतरा षड्यंत्र व भीड़तंत्र से है। दुष्प्रचारात्मक झुंड खड़े हो जाते हैं। लोगों का झुंड बना लेते हैं। लेकिन आप सच्चे हों तो न भीड़तंत्र और न ही दुष्प्रचार आपका कुछ बिगाड़ सकता है। सत्य सनातन है और भीड़ उसका कुछ नहीं कर सकती। हमने कुछ गलत किया नहीं, मंशा गलत रही नहीं। कोई मानवीय भूल होती है तो उसे स्वीकार कर लेते हैं। यह संभव है क्योंकि हम इतने तरह के प्रोजेक्ट कर लेते हैं। यदि कोई षड्यंत्र पूर्वक दबाना चाहे तो वो संभव नहीं होगा।
आपको इस बात का श्रेय जाता है कि आपने योग को खास लोगों से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया?
देखिये, योग हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टि से सम्मत ऐसा ज्ञान है जो मनुष्य के तन-मन के कल्याण के साथ ही आध्यात्मिक उत्थान में भी सहायक है। अंतिम लक्ष्य स्वस्थ, विवेकशील और सचेत नागरिक तैयार करना है। हरिद्वार में कनखल से शुरू हुई यात्रा आज पूरी दुनिया तक पहुंची है। इस यज्ञ ने विस्तार लिया तो भारतीयों की जरूरतों की चीजों, परंपरागत जड़ी-बूटियों व ऑर्गेनिक उत्पादों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का उपक्रम हुआ।
आपने लाखों लोगों को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से रोजगार भी उपलब्ध कराया?
हमें खुशी है कि पतंजलि के विभिन्न प्रकल्पों व प्रतिष्ठानों से एक लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है। करीब पांच लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार अर्जित कर रहे हैं। जड़ी-बूटी, ऑर्गेनिक उत्पादों, डेयरी उत्पादों, मिलेट्स, परंपरागत खाद्य पदार्थों व फल-फूल के कारोबार में लगे लोगों को आय बढ़ाने का मौका मिला है। अब हमारा ध्यान पाम की पैदावार को बढ़ावा देने पर है। सरकार के साथ ही हमारा लक्ष्य है कि अगले पांच सालों में हम खाद्य तेलों की उपलब्धता में आत्मनिर्भर बनें। हमारा प्रयास रहेगा कि हम अगले पांच साल में करीब पांच लाख लोगों को रोजगार दे सकें। इसके साथ ही भारतीय शिक्षा बोर्ड में भी नये रोजगार के अवसर सृजित होंगे। हमारी प्राथमिकता जैविक खेती को बढ़ावा देना भी है। आगे हमारी गाय पर एक बड़ा रिसर्च प्रोजेक्ट क्रियान्वित करने की तैयारी है। कोशिश है कि पच्चीस-तीस किलो दूध देने वाली गाय की प्रजाति तैयार हो। हमारा सदैव प्रयास रहा है कि लोगों के जीवन में संस्कार व श्रममूलक समृद्धि आए।
आप लगातार ड्रग माफिया और मेडिकल माफिया पर हमलावर रहते हैं। आप की संस्था भी आयुर्वेदिक दवाओं के व्यवसाय में है, कहीं नकली दवाएं पतंजलि के नाम पर बिकने लगी तो?
देखिए, एक बडी वैधानिक टीम इस काम की निगरानी के लिये काम करती है। कोशिश होती है कि नकली प्रॉडक्ट न बनें, नकली दवा न बने। हालांकि, दुनिया की नामी एमएनसी कंपनियों के नकली उत्पाद बाजार में बिकते हैं। सभी वैधानिक प्रक्रिया का आश्रय लेते हैं। ऐसी कोशिशों का पता चल जाता है।
आप बिना लाग-लपेट के बात कहने के लिये जाने जाते हैं। जिसके चलते अकसर विवाद भी सामने आते हैं। आप कॉपोरेट जगत में भी दखल रखते हैं। आप की बातों के दूसरे मायने लगाये जा सकते हैं?
देखिये, डिप्लोमटिक ढंग से कही बात समाज में दूर तक नहीं जाती। मैं ऐसी बात नहीं कर सकता। जैसा हूं वैसे ही रहना चाहता हूं। सीधा-सपाट कहने में दिक्कत क्या है? सीधे रहने में दिक्कत क्या है? जहां तक कॉरपोरेट जगत का सवाल है तो उनका एक ही काम होता है जनसमूह से पैंसा खींचो। अपनी वेल्थ बढ़ाओ। मुझे समूह व समाज ने मिलकर ताकत दी है। करोड़ों लोग मेरे लिये काम करते हैं। मेरा भी फर्ज बनता है कि जो किसी भी रूप में उनसे अर्जित किया है, उसे वापस उसी समाज के करोड़ों लोगों को लौटाऊं।
अभी ऐसा बाकी क्या है आपके मन में, जो आगे करना चाहते हैं?
अभी तो मेरे लक्ष्यों की फाउंडेशन ही तैयार हुई है। योग, आयुर्वेद, स्वदेशी, सनातन को विश्वव्यापी बनाना है। ये यात्रा सतत है। यह सच है कि तीस साल पहले नहीं पता था कि भगवान व नियति इतना बड़ा काम व इतनी बड़ी सेवा करवाएगी। लेकिन आज जब हो गया तो वैश्विक रूप में उपयोगिता नजर आ रही है।
आपके द्वारा स्थापित गुरुकुलों में हजारों छात्र-छात्राएं व योगी तैयार हो रहे हैं। ये प्राच्य ज्ञान, योग व संस्कारों में पली-बढ़ी पवित्र आत्माएं हैं। वे कैसे बाहर की अपसंस्कृति व भोगवादी समाज में साम्य रख पाएंगे?
दरअसल, समाज में ऐसे ही लोगों की तो जरूरत है। भारत को ऐसी पवित्र आत्माएं ही चाहिए। दुष्ट व उद्दंड लोगों की जरूरत नहीं। हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य ‘भारतीय शिक्षा बोर्ड’ ही है। भारतीय शिक्षा बोर्ड एक बड़ा प्रयोग है। उससे हजारों-लाखों विद्यालयों को जोड़ना है। नये-नये गुरुकुल खोलना है। पतंजलि विश्वविद्यालय को विश्वव्यापी विस्तार देना है। ये आने वाले पचास सालों का बड़ा लक्ष्य है।
अकसर कहा जाता है कि गुरुकुल से निकले छात्र आधुनिक शिक्षा से साम्य स्थापित नहीं कर पाते?
अब ये धारणा टूट रही है। हिंदी, संस्कृत, गुरुकुल में पढ़ा छात्र पिछड़ जाता है, बाहरी दुनिया में कुछ नहीं कर सकता, यह दो-तीन दशक पहले की धारणा है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदी बोलते हैं और उसमें काम करते हैं। अमित शाह व योगी आदित्यनाथ हिंदी में बोलते हैं। हम लोग भी गुरुकुल के पढ़े हैं। आज दुनिया में काम की पूजा है। कामयाबी की पूजा होती है। हिंदी पढ़े व गुरुकुल में पढ़े छात्र कामयाब होंगे तो लोग उसी तरह अनुसरण करते हैं।
आज ज्ञान व संस्कार मोबाइल दे रहे हैं। समाज में काम-वासनाओं का विस्फोट है। कैसे अंकुश लगेगा?
देखिये, ये ग्लैमर माफिया व विलासिता माफिया समाज में विलासिता फैला रहे हैं। चंद लोगों के पास अथाह संपत्ति है। करोड़ों लोग शोषण के शिकार हो रहे हैं। इनके जाल में फंस रहे। अमानवीय दुर्बलताओं पर फंस रहे। अमानवीय कृत्य का शिकार हो रहे हैं। कोई विचार आता है वैचारिक तौर पर और वह रसना व वासना में फंस जाता है। आग लगा जाता है। आदमी शिकार हो रहा है। जो डेटा कंज्यूम कर रहा है वह अश्लील सामग्री से, विलासिता से भर जाता है। तब व्यक्ति न रिश्तों की परवाह करता है। सगे रिश्तों में दुराचार हो रहा है। सड़कों पर खेल हो रहा। जोर-जबरदस्ती हो रही है। एडल्टों में रजामंदी के साथ दुराचार हो रहा है। बच्चों में नादानी से सरेआम और जोर जबदस्ती दुराचार हो रहा है। लेकिन दुराचार तो दुराचार ही है, रेगुलेशन लाना चाहिए। खासकर सोशल मीडिया पर उपलब्ध इस विलासिता को रोकने के लिये कानून लाना चाहिए।
यह विडंबना है कि आज समाज से ब्रह्मचर्य शब्द लापता है?
निस्संदेह, समाज में कामुकता बढ़ाने वाली चीज को वैधानिक रूप से रुकना चाहिए।
खानपान के संयमन से भी कामुकता को रोका जाना चाहिए?
दरअसल,खानपान व आहार अपेक्षाकृत कम प्रभाव डालते हैं। मगर विचार व दृश्य लाख गुना ज्यादा नकारात्मक असर डालते हैं। खाना तो फिर भी नियंत्रित हो जाता है।
आपने योग के साथ लौकी को भी दवा के रूप में खासा लोकप्रिय बनाया है। क्या सर्दियों के मौसम में इसका उपयोग संभव है?
निस्संदेह, लौकी की तासीर ठंडी होती है। लेकिन लौकी कड़वी नहीं होनी चाहिए। कड़वी लौकी से आदमी की मौत तक हो सकती है। यदि व्यक्ति की कफ प्रकृति है तो उसे हल्दी,तुलसी व अदरक के साथ दिया जा सकता है। कफ-कोल्ड ज्यादा हो तो वात रोग बढ़ता है। लोकी का सूप भी उतना ही लाभप्रद है।
आप अकसर कहते हैं जो आटा-चावल खाएगा, वो जल्दी ऊपर जाएगा। लेकिन गरीब आदमी आज के दौर में मिलेट्स कैसे खरीद पाएगा?
निस्संदेह, मोटे अनाज पहले सस्ते होते थे। अभी भी बाजार में रागी व कोदो आदि सस्ते हैं। भारत में विटामिन का बहुत बड़ा बाजार है। उसकी वजह से भी डेफिशिएंसी होती है।
कहा जाता है कि आज 90 फीसदी से अधिक लोगों में विटामिन डी की कमी होती है। लोग धूप में नहीं बैठते, कैसे पूर्ति होगी?
आम आदमी को विटामिन डी दूध-दही से मिलता है। एक घंटा या 45 मिनट धूप में बैठना चाहिए। बाकी सादा खाना लेना चाहिए।
इस मुकाम पर माता-पिता को किस रूप मे याद करते हैं?
मैं माता-पिता को कृतज्ञता के रूप में याद करता हूं। जो मुझ में संस्कार हैं वे मां गुलाब देवी जी से मिले हैं। जो कुछ भी पुरुषार्थ व सतत संघर्ष का जज्बा मिला वो पिताजी रामनिवास जी से मिला। मैं माता-पिता के प्रेम के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। उन्हें भगवान की मूर्ति के जीवंत विग्रह के रूप में देखता हूं। मैं जिन करोड़ों लोगों की सेवा करता हूं तो उनमें जो बुजुर्ग होते हैं, उनका आशीष मां-बाप के रूप में ग्रहण करता हूं। मात ऋण- पिता ऋण से मुक्त होने का प्रयास करता हूं।
आपको जन्मभूमि हरियाणा किस रूप में याद करेगी?
निस्संदेह, हरियाणा मेरी पैतृक भूमि है लेकिन मेरी आध्यात्मिक जन्मभूमि उत्तराखंड है। ये सब भगवान के विधान व ईश्वर की प्रेरणा से हुआ है। भगवान ने बड़ा काम दिया है। उसकी अनुकंपा विश्वव्यापी है। निश्चित रूप से भौतिक जन्मस्थली हरियाणा है। निकट भविष्य में वहां कोई बड़ा काम करेंगे।
देर-सवेर आपने अंग्रेजी भी सीख ली?
दरअसल, पहले सीखी गुरुकल में। लेकिन मैं अंग्रेजी को पसंद नहीं करता था। मलेच्छ भाषा मानता रहा हूं। देहरादून के साधना आश्रम के स्वामी जी के संपर्क में आया। दो महीने सत्संग किया हमने। वे यहां संस्कृत सीख रहे थे। उन्होंने अंग्रेजी सीखने में मदद की। बहुत आशीर्वाद दिया।
क्या कभी राजनीति में आने का मन होता है?
निस्संदेह, राजनीति सारी व्यवस्थाओं की नियंत्रक शक्ति है। लेकिन हम राजनीति के लिये पैदा नहीं हुए। हमारा मूल दायित्व धर्म का है। वैसे भारत में राजधर्म हमेशा आध्यात्मिक धर्म से प्रेरित रहा।