पुष्परंजन
चुनाव क्या था, बस एक औपचारिकता भर थी। शेख़ हसीना पांचवीं बार सत्ता में आ चुकी हैं। 7 जनवरी को मतदान का मुआयना करने विभिन्न देशों के जो 122 पर्यवेक्षक गये, उनकी भूमिका लगता है बस मूक दर्शक की रही है। सत्तारूढ़ अवामी लीग के खि़लाफ उन्हीं के 63 निर्दलीय सभासद जातीय संसद में प्रतिपक्ष की भूमिका में रहेंगे, या सरकार में सहयोग करेंगे, यह शेख़ हसीना को तय करना है। 11 सांसदों वाली जातीय पार्टी तीसरे नंबर पर है। तीन अन्य लोग नक्कारखाने में तूती की आवाज़ की तरह चुनकर संसद में आये हैं। लोकतंत्र के लिए इससे बढ़िया प्रहसन और क्या हो सकता है?
300 सीटों वाली जातीय संसद के लिए 298 चुनावी क्षेत्रों में मतदान हुए, जिसमें सत्तारूढ़ अवामी लीग को 223 सीटें आई हैं। नवगांव-दो निर्दलीय उम्मीदवार अमीनुल हक़ की मौत के बाद अंतिम चरण में मतदान स्थगित हो गया। बीएनपी चेयरपर्सन के कार्यालय गुलशन में स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य अब्दुल मोइन ख़ान ने कहा कि ‘गवर्नमेंट ऑफ द डमी, बाई द डमी, फॉर द डमी’ को तुरंत गद्दी छोड़ देनी चाहिए। बीएनपी के तेवर और देशव्यापी माहौल को देखकर शेख़ हसीना ने विजयोत्सव न मनाने का आदेश कार्यकर्ताओं को दिया है। अब 10 जनवरी को बंग बंधु शेख मुजीबुर्रहमान की वतन वापसी पर जो समारोह मनाया जाता है, उसे ही विजयोत्सव समझकर पार्टी कार्यकर्ता अपनी पीठ ठोकेंगे।
अवामी लीग के उम्मीदवारों ने जिस तरह अपमानजनक हार का सामना किया, वह कुछ समय बाद सर्वोच्च नेता शेख़ हसीना भूल जाएंगी। सत्तारूढ़ दल के कई दिग्गजों को पछाड़ते हुए निर्दलीय उम्मीदवारों ने 63 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की है, हारने वालों में कई मंत्री हैं। पराजित अवामी लीग के उम्मीदवारों में प्रचार सचिव अब्दुस शोभन गोलाप, तीन बार के सांसद धीरेंद्र देबनाथ शंभू, प्रेसीडियम सदस्य काजी जफर उल्लाह, केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के सचिव असीम कुमार उकिल और नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री महबूब अली शामिल हैं। इस बार, अवामी लीग ने अपने नेताओं को प्रतिशोध के डर के बिना स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने की अनुमति दी। विद्रोहियों ने इस अवसर का लाभ उठाया और उनमें से कई विजयी हुए। अब यही तथाकथित प्रतिपक्ष में दिखेंगे, और जातीय संसद में शेख हसीना के प्रस्ताव का समर्थन करेंगे। बांग्लादेश में ऐसा पहले हो चुका है। प्रसिद्ध बांग्लादेशी अधिकार कार्यकर्ता और फोटोग्राफर शाहिदुल आलम ने बताया कि यह एक विचित्र किस्म के चुनाव का विचित्र परिणाम है। ‘डमी चुनाव में डमी उम्मीदवार, अब एक डमी संसद का नेतृत्व करेंगे।’ इस चुनाव में जातीय पार्टी को केवल 11 सीटें मिली हैं, जो बीएनपी के बाद प्रमुख प्रतिपक्षी चेहरा है।
पूर्व चुनाव आयुक्त सखावत हुसैन ने कहा, ‘यह विश्वास करना कठिन है कि मतदान 40 प्रतिशत था।’ सखावत हुसैन ने उस ख़ास समय को रेखांकित किया, जब मुख्य चुनाव आयुक्त ने मीडिया को जानकारी देते समय पहले खुद 28 प्रतिशत टोटल वोटिंग कहा, और फिर अचानक इसे बदलकर 40 प्रतिशत कर दिया। मतदान का आंकड़ा चुनाव आयोग मुख्यालय में डैशबोर्ड पर दिखाया गया था, जो 28 प्रतिशत था। इसकी एक तस्वीर देश के सोशल मीडिया में व्यापक रूप से प्रसारित की गई, जिसके हवाले से चुनाव आयोग की हंसी उड़ाई गई।
2018 के चुनाव को विश्लेषक याद करते हैं, जिसे ‘रात के समय का चुनाव’ कहा गया था, तब 80 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े। फरवरी 1996 के विवादास्पद चुनावों में मतदान 26.5 प्रतिशत था, जो बांग्लादेश के इतिहास में सबसे कम था। अब यह दूसरा चुनाव है, जहां वास्तविक रूप से 28 प्रतिशत मत पड़े, जिस पर 40 फीसद का ठप्पा लगाया गया है। प्रतिष्ठित चुनाव पर्यवेक्षक संगठन ‘ब्रोटी‘ के प्रमुख शर्मिन मुर्शिद ने बताया कि एक घंटे के अंतराल में 28 से 40 तक की छलांग हास्यास्पद थी और इसने चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा को बुरी तरह ख़राब कर दिया।
मगर, बीएनपी नेताओं ने उस 28 प्रतिशत को भी बहुत अधिक बताया, और कहा कि देश भर में अधिकांश मतदान केंद्र दिन भर खाली रहे। बच्चे सड़क पर क्रिकेट खेल रहे थे, ऐसी तस्वीरें भी साझा की गईं। बीएनपी के एक वरिष्ठ नेता अब्दुल मोईन खान ने कहा, ‘मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर साझा की गई अधिकांश तस्वीरों और फुटेज में, आपको पुलिस और कुछ अवामी लीग कार्यकर्ताओं की धूप सेंकते हुए तस्वीरें मिलेंगी।’
अब सवाल यह है कि शेख हसीना अपना पांचवां टर्म क्या शांतिपूर्वक चला पाएंगी? शेख़ हसीना का पहला टर्म 1996 से 2001 तक रहा है। फिर 2008, 2014, 2018 तीन टर्म लगातार, यानी टोटल 20 साल 23 दिन सत्ता में रहीं शेख़ हसीना, और अब उनका पांचवां टर्म 2024 में। शेख़ हसीना पर अमेरिकी दूतावास का ज़बरदस्त दबाव रहा है। उसकी परोक्ष वजह चीन है, जिसकी परियोजनाएं बांग्लादेश में काफी कुछ चल रही हैं। अमेरिका ने चेतावनी दी कि वह उन लोगों को वीजा देने से इनकार कर देगा जिन्होंने बांग्लादेश में लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है। हसीना ने सभी दबावों से बचने के लिए नई दिल्ली से मदद की अपील की। शेख़ हसीना सरकार पर मोहम्मद यूनुस को सज़ा दिलाने के हवाले से पश्चिमी देशों का दबाव बना रहेगा।
शेख़ हसीना के चिर विरोधी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद यूनुस के खिलाफ लगभग 200 मामले हैं। उनके समर्थक बताते हैं कि शेख हसीना सरकार उन्हें कानूनी रूप से परेशान करने की ठान चुकी है। ‘बांग्लादेश श्रम अधिनियम 2006’ में कंपनी के मुनाफे का पांच प्रतिशत कर्मचारियों और विभिन्न श्रमिक निधियों के साथ साझा करने का प्रावधान किया गया था। सरकार का कहना है कि ग्रामीण टेलीकॉम के बोर्ड के अध्यक्ष यूनुस ने इस प्रावधान का पालन नहीं किया।
83 साल के मोहम्मद यूनुस को कोर्ट से छह माह की सजा हुई है। शेख़ हसीना के रहते वो जेल से मुक्ति पायेंगे? इसमें शक़ है। उनके वकील का कहना है कि जो कंपनी कोई लाभ नहीं कमाती वह कर्मचारियों के साथ मुनाफा कैसे साझा कर सकती है? ग्रामीणफोन में नॉर्वेजियन स्वामित्व वाली टेलीनॉर की हिस्सेदारी है, यह मामला जब उलझा ग्रामीणफोन को छह महीने के लिए सिम कार्ड बेचने से रोक दिया गया था। मोहम्मद यूनुस के पैरोकार कहते हैं कि इससे निवेशकों का भरोसा कम हुआ है।
बहरहाल, अवामी लीग की अध्यक्ष और प्रधान मंत्री शेख हसीना ने आज कहा कि कल के मतदान के माध्यम से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का अभूतपूर्व उदाहरण बांग्लादेश ने स्थापित किया है। 2024 में भारत-पाकिस्तान-अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों में चुनाव है। सवाल है कि क्या बांग्लादेश को चुनावी रोल मॉडल बनना चाहिए?
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।