मुंबई में बुधवार को विधायकों की अयोग्यता मुद्दे पर स्पीकर का फैसला आने के पश्चात खुशी में नारेबाजी करते शिवसेना (शिंदे गुट) के विधायक। -प्रेट्र
मुंबई, 10 जनवरी (एजेंसी)
महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने बुधवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बड़ी राहत दी। उन्होंने शिंदे समेत उनके गुट के विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी। साथ ही उन्होंने एकनाथ शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बताया। उधर, शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं ने कहा कि वे स्पीकर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
स्पीकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी समूहों का उदय हुआ तो शिवसेना का एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा ही ‘असली राजनीतिक दल’ (असली शिवसेना) था। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी धड़ों द्वारा एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अपना फैसला पढ़ते हुए नार्वेकर ने यह भी कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के सुनील प्रभु 21 जून, 2022 से सचेतक नहीं रहे। उन्होंने कहा कि शिंदे गुट के भरत गोगावाले अधिकृत सचेतक बन गए थे। जैसे ही फैसले का आशय स्पष्ट हुआ, मुख्यमंत्री शिंदे के गुट के समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।
नार्वेकर ने उद्धव गुट के 14 विधायकों की सदस्यता भी बरकरार रखी। उन्होंने कहा, ‘विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं। किसी भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया जा रहा है।’ उन्होंने यह भी कहा कि शिवसेना प्रमुख के पास किसी भी नेता को पार्टी से निकालने की शक्ति नहीं है। उन्होंने इस तर्क को भी स्वीकार नहीं किया कि पार्टी प्रमुख की इच्छा और पार्टी की इच्छा पर्यायवाची हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को सौंपा गया 1999 का पार्टी संविधान मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए वैध संविधान था और उद्धव ठाकरे समूह का यह तर्क कि 2018 के संशोधित संविधान पर भरोसा किया जाना चाहिए, स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि 1999 के संविधान ने ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’ को सर्वोच्च निकाय बनाया था। फैसले के बाद शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत और आदित्य ठाकरे ने कहा कि वे फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। संजय राउत ने कहा कि भाजपा की साजिश है। उसका यह सपना था कि एक दिन वह बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को खत्म कर देगी, लेकिन शिवसेना इस एक फैसले से काम खत्म नहीं करेगी। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
105 मिनट तक पढ़ा फैसला
नार्वेकर ने आदेश के मुख्य बिंदुओं को 105 मिनट तक पढ़ा। उन्होंने कहा कि वह याचिकाकर्ता (उद्धव गुट) के इस तर्क को स्वीकार नहीं कर सकते कि 2018 के पार्टी संविधान पर भरोसा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा प्रदत्त 1999 का शिवसेना संविधान ही असली संविधान है। उन्होंने कहा कि जून 2022 में जब प्रतिद्वंद्वी गुट उभरा तो शिंदे समूह के पास 54 में से 37 विधायकों का भारी बहुमत था।
लोकतंत्र में बहुमत महत्वपूर्ण हैं, जो हमारे पास है। निर्वाचन आयोग ने भी हमारी पार्टी को शिव सेना का नाम और चुनाव चिह्न आवंटित किया है।
– एकनाथ शिंदे, मुख्यमंत्री
मूल मामला दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता के बारे में था, लेकिन किसी भी पक्ष के एक भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया गया। यह लोकतंत्र की हत्या है और उच्चतम न्यायालय का अपमान है।
– उद्धव ठाकरे, नेता, शिवसेना (यूबीटी)
उद्धव ठाकरे को विधानसभा स्पीकर के विधायक दल को प्राथमिकता देने के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।