रश्मि खरबंदा
एक नारी का जीवन इंद्रधनुष जैसा होता है जिसमें कई अनूठे रंग, अहसास और अनुभव होते हैं। यह सामान्य है कि यह सारे रंग हर स्त्री ने देखे हैं, पर साथ ही यह अनुभव उस स्त्री के लिए अद्वितीय हैं जो इन्हें जी रही है। इस समानता-विशिष्टता का सान्निध्य सोनू सिंघल की पहली पुस्तक में मिलता है। इन कविताओं के पाठक, खासकर महिला पाठक, ऐसे सार्वभौमिक एवं साधारण भावनाओं को खुद के जीवन के विशेषानुभवों से जोड़ पाएंगी। बेटी, पत्नी, हमसफर, मां, गृहस्वामिनी- औरत की विभिन्न भूमिकाओं पर कवयित्री ने रचनाएं प्रस्तुत की हैं। कविता ‘स्त्री मन’ में लिखती हैं :-
‘कभी सहधर्मिणी बात तो कभी सहयात्री बन
अनवरत चलती रहेगी, स्त्री कभी नहीं रुकेगी।’
स्त्री-जीवन में पुरुषों के योगदान की सराहना करते हुए, कविता ‘संपूर्ण स्त्री’ की अंतिम पंक्ति :-
‘एक स्त्री पुरुष के इन विविध रंगों को पाकर ही बनती है एक सम्पूर्ण स्त्री।’
कविताएं रिश्तों के स्नेह से सराबोर हैं। माता-पिता, भाई, दोस्तों के प्यार को खूबसूरत शब्दों में पिरोया गया है। कविता ‘महक आंगन की’ में बेटी को इंद्रधनुष, होली के रंग और जगमग रोशनी बताकर कवयित्री ने इस अनमोल प्यार को भी उजागर किया है। कविता ‘बचपन का खज़ाना’ में छोटी उम्र की सुनहरी यादों का ज़िक्र है, वहीं ‘काला टीका’ में मां की चिंता। इसी तरह कविता ‘अंतर्मन’ में पिता की अहम भूमिका का भावुक चित्रण है। ‘पिताजी के जूते’ में भी पिता की ज़िम्मेवारी का वर्णन है।
इन सभी रिश्तों के बीच उस रिश्ते का खास स्थान है जो जीवन में प्रेम का रंग भर देता है। किताब की प्रथम कविता ‘तोहफ़ा’ की पंक्तियां कहती हैं :-
‘सोचती हूं, क्या तोहफ़ा दूं तुम्हें,
अपनी धड़कन दूं जो तुम्हीं में धड़कती है…’
कविता ‘अच्छा लगता है’ में कुछ ऐसे मोहक पलों को सहेजा है जो प्यार का अहसास कराते हैं। अनुराग रस की कई रचनाएं इस पुस्तक में सहेजी गई हैं।
इन्हीं स्वागत कविताओं के बीच ऐसी रचनाएं भी हैं जो वर्तमान परिवेश का आईना हैं। गांवों की लुप्त होती पहचान को उजागर किया गया है कविता ‘सिमटते गांव’ में। ‘किनारा’ की उत्तरगामी पंक्तियां दिल-पसीज देती हैं :-
‘आबाद हो जाते हैं वृद्धाश्रम और घरौंदे सूने हो जाते हैं,
जिनको बनाने में मां-बाप के सपने सिमट जाते हैं।’
पुस्तक : सिर्फ़ एहसास काफ़ी है लेखिका : सोनू सिंघल प्रकाशक : अभिनव प्रकाशन, अजमेर पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 150.