रमेश पठानिया
जयपुर को गुलाबी नगरी के नाम से भी जानते हैं। देश-विदेश के पर्यटकों का यहां तांता लगा रहता है। जयपुर अपने किलों, संग्रहालयों, गहनों, जयपुरी रजाइयों, राजस्थानी पकवानों, ब्लू पॉटरी और मेहमाननवाज़ी के लिए प्रसिद्ध है यहां इतने ऐतिहासिक पर्यटक स्थल हैं कि आप देखते-देखते थक जायेंगे। यहां पर वन्य प्राणियों, ख़ास कर अगर आप तेंदुआ देखने में रुचि रखते हैं तो शहर से कुछ दूरी पर झालाना तेंदुआ सफारी पार्क है। इस पार्क की रेलवे स्टेशन से दूरी 13.5 किलोमीटर है और एयरपोर्ट से मात्र 6 किलोमीटर है। यहां जीप सफारी से आप पार्क के अंदर जा सकते हैं और दो घंटे के लिए या पूरे दिन के लिए जिप्सी वाहन किराए पर ले सकते हैं। तेंदुआ और अन्य वन्य जीवों को करीब से देख सकते हैं। पार्क में जाने के लिए अक्तूबर से लेकर मार्च तक के महीने बहुत उपयुक्त हैं। तेंदुआ थोड़ा शर्मीला प्राणी है, बाघ की तरह निर्भीक नहीं होता। लेकिन अगर आप को एक बार दिख जाए तो मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। तेंदुए के शरीर पर बहुत सुन्दर चकत्ते होते हैं और एक तेंदुए के चकत्ते दूसरे तेंदुए से नहीं मिलते। झालाना में तेन्दुओं के चित्रों का एक संग्रहालय भी है।
1978 हेक्टेयर में फैला यह जंगल, जयपुर शहर के दक्षिण पूर्व में है। यहां की सैर करने में अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति होती है। कीकर और दूसरे हरे-भरे पेड़ों से भरा यह जंगल देखते ही बनता है। यहां वन्यजीवों को दर्शक अपने प्राकृतिक रूप में बहुत नज़दीक से विचरण करते हुए देख सकते हैं। इस वन क्षेत्र में 30 से 35 तेंदुए हैं। झालाना में तेन्दुओं की अच्छी-खासी आबादी है। इनमें राणा, करण, फ्लोरा पर्यटकों और वन्यजीवन छायाकारों में बहुत लोकप्रिय हैं।
अगर आप थोड़ा किस्मत के धनी हों तो आपको धारीदार लकड़बग्घा, लोमड़ी, सुनहरी गीदड़, चीतल, नील गाय, जंगली बिल्ली, लंगूर आसानी से दिख जायेंगे। जो लोग पक्षियों में रुचि रखते हैं उन्हें विविध प्रजाति के पक्षी भारतीय पित्ता, काला गिद्ध, उल्लू, छोटे उल्लू और बड़े गिद्ध, नाइट ज़ार, मोर, तीतर, बटेर भी देखे जा सकते हैं। दूर तक फैले इस वन्यजीव क्षेत्र में कुछ रोचक स्थल भी हैं जैसे सन् 1835 में महाराजा सवाई रामसिंह द्वारा बनवाई गई शिकार हौदी, जहां से जयपुर शहर का एक बड़ा हिस्सा भी दिखाई देता है। इस शिकार हौदी की छत पर बैठकर लोग जलपान भी करते हैं और दृश्य का आनंद भी लेते हैं। जंगल के अंदर तेंदुए के पग मार्क के आकार का एक वाटरिंग होल है, जो छोटे तेंदुए सिम्बा की याद में बनाया गया है। सड़क पर कई बार तेंदुए के पग मार्क भी मिल जाते हैं। जिप्सी सफारी सुबह-शाम होती है।
झालाना सफारी पार्क पर्यटकों के लिए सुबह 6 बजे से 8:45 तक और शाम 4 बजे से 7:15 बजे तक (ग्रीष्म काल) तक खुला रहता है। जबकि सर्दियों में सुबह 6:15 से 8:45 बजे तक और दोपहर 3:30 बजे से शाम 6:15 बजे तक उपलब्ध होती है। समय में बदलाव भी हो सकता है। सफारी के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर बुकिंग की जा सकती है अन्यथा बहुत सारे निजी ऑपरेटर भी सफारी की बुकिंग करते हैं। पूरी जिप्सी की फीस 4500 रुपये है जो अधिकतम 6 व्यक्तियों के लिए होती है और यदि आपको एक गाइड की भी आवश्यकता है तो उसके लिए आपको 5500 रुपये किराया देना होगा। आप अकेले हैं तो 800 से 1000 रुपये का टिकट है। आपकी व्यवस्था बाकी लोगों के साथ जिप्सी वाहन में करवा दी जाएगी, जिसमें आपकी तरह अकेले घूमने आये लोग होंगे।
यहां के सभी गाइड और ड्राइवर बहुत ही अनुभवी हैं और उन्हें तेंदुए की खबर रहती है कि वह किस तरफ दिखाई दे सकता है। यही नहीं बहुत से पक्षी भी अपनी बोली से तेंदुए की मौजूदगी की सूचना देते हैं। इनमें मोर और तीतर, बटेर सबसे महत्वपूर्ण सूचना देते हैं जो कभी गलत नहीं होती। वॉटरिंग होल के आसपास, वन्यप्राणी प्रेमी तेंदुए का इंतज़ार करते पाए जाते हैं क्योंकि वहां तेंदुए देखने की सम्भावना सबसे अधिक होती है। और तेंदुए काफी देर तक पानी पीते हैं। फोटोग्राफी के लिए यह सबसे अच्छा अवसर होता है।
अगर आप दिल्ली से जयपुर जा रहे हैं और आपके पास समय कम है तो सुबह अजमेर शताब्दी से जयपुर जा सकते हैं और शाम की सफारी का आनंद ले सकते हैं। एक रात जयपुर में ठहर कर अगले दिन सुबह की सफारी भी कर सकते हैं। पूरा दिन जयपुर घूमकर शाम को फिर अजमेर दिल्ली शताब्दी से वापस आ सकते हैं। सफारी के गेट के पास ही एक वन्य जीवन से जुड़े स्मारकों की छोटी-सी दुकान है जहां से आप अपने लिए या अपनों के लिए, टी-शर्ट, स्कार्फ, कैप, हैट इत्यादि ले सकते हैं।