चेतनादित्य आलोक
एकादशी का व्रत जितना कठिन, उतना ही अधिक फलदायक भी होता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसका पालन मोक्ष की प्राप्ति में मदद करता है। एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के भीतर संयम और संकल्प का विकास होता है। इसे करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और कष्टों का नाश भी होता है। इससे जीवन में सकारात्मकता का संचार होने के साथ-साथ अशुभता का नाश भी होता है। सामान्यतः एकादशी के सभी व्रतों में यह विशेषता होती है कि ये व्रत अपने नाम के अनुरूप ही साधकों को फल प्रदान करते हैं।
सनातन धर्म की शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से विजया एकादशी को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत के संबंध में ऐसी मान्यता है कि इसे करने वाले साधकों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ‘विजया एकादशी’ फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को कहा जाता है। देखा जाए तो ‘विजया एकादशी’ व्रत के नाम में ही इसका महात्म्य छुपा हुआ है। ऐसी मान्यताएं भी हैं कि नाम के अनुसार ही इस एकादशी के व्रत को करने वाला व्यक्ति सदा विजयी रहता है। विजया एकादशी व्रत का उल्लेख पुराणों में विशेष रूप से पद्मपुराण और स्कंदपुराण में मिलता है।
पुराणों के अनुसार विजया एकादशी व्रत का पुण्य प्रभाव ऐसा होता है कि इसे करने वाला व्यक्ति यदि चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ भी हो तब भी वह विजयी हो सकता है। तात्पर्य यह कि विकट से विकट परिस्थिति में फंस जाने पर भी विजया एकादशी व्रत के शुभ प्रभाव से जातक द्वारा जीत सुनिश्चित की जा सकती है।
इतना ही नहीं, विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण या पठन मात्र से ही व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है तथा जातक के आत्मबल में भी वृद्धि होती है। साथ ही वह भगवान श्रीहरि विष्णु का कृपा पात्र भी बन जाता है। सनातन धर्म के विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यों का अवलोकन करने से यह मालूम होता है कि इस व्रत के शुभ प्रभाव के कारण निश्चित पराजय को भी विजय में परिवर्तित किया जा सकता है।
बता दें कि प्राचीन काल में हमारे देश के अनेक राजा-महाराजाओं ने इस व्रत के पुण्य प्रभाव से अपनी निश्चित हार को भी जीत में बदलने का कार्य किया था। शास्त्रों में तो यह भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीराम ने रावण के संग युद्ध करने से पूर्व बकदाल्भ्य मुनि की आज्ञानुसार समुद्र के तट पर अपनी पूरी सेना के साथ संपूर्ण विधि-विधान से विजया एकादशी का व्रत किया था।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 6 मार्च को प्रारंभ होकर 7 मार्च को समाप्त होगी। जाहिर है कि उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 6 मार्च को रखा जाएगा तथा इसका पारण 7 मार्च यानी द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाएगा।