धारा नगरी के राजा भोज परम धार्मिक, दानी तथा उदार प्रवृत्ति के शासक थे। वह सन्त-महात्माओं के आश्रमों में स्वयं पहुंच कर उनका सत्संग कर प्रेरणा प्राप्त करते थे। राजा भोज का अंत समय निकट आया। उन्होंने अपने मंत्री को पास बुला कर कहा, ‘जब मेरा शव श्मशान ले जाओ, तो मेरा एक हाथ सफेद रंग से तथा दूसरा काले रंग से रंग देना। दोनों हाथ अर्थी से बाहर निकाल देना।’ मंत्री यह वसीयत सुनकर हैरान हो गया। उसने पूछा, ‘राजन! आप ऐसा विचित्र दृश्य उपस्थित करने के लिए किसलिए कह रहे हैं? मैं कुछ समझ नहीं पाया।’ राजा भोज ने कहा, ‘दीवान जी, मैं चाहता हूं कि मेरा मृत शरीर भी लोगों को अच्छी प्रेरणा दे। मेरे दोनों खाली हाथ प्रजा को प्रेरणा देंगे कि राजा हो या रंक, मरने के बाद सभी खाली हाथ परलोक जाते हैं। अपने साथ कोई कुछ नहीं ले जा सकता। सफेद और काला रंग यह प्रेरणा देंगे कि यदि मरने के बाद साथ कुछ जाता है,तो अच्छे और बुरे कर्म ही जाते हैं।’ मंत्री राजा भोज का मुख देखते रह गए।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा