सहीराम
जो काम चार महीने में होना था जी, वह देखो दो दिन में हो गया। फिर भी लोग खुश नहीं। कह रहे हैं कि काम तो यह चुटकियों का ही था। पर चलो संतोष भी है कि दो दिन में पूरा हो गया यह भी क्या कम है। वरना एक बार तो लोग हतप्रभ रह गए थे- हैं, चुटकियों के काम के लिए चार महीने। लेकिन स्टेट बैंक इंडिया के काम करने के इस तरीके को नया तरीका नहीं कहा जा सकता? यह कैसे? कहीं यह एकदम बैंकाना बहाना तो न था। वही टिपिकल- भैया कल आना। अरे भाई कंप्यूटर ही नहीं चल रहा। नेट डाउन है। सिस्टम बैठ गया है। देखिए, इतनी जल्दी तो काम नहीं हो सकता। इसमें तो टाइम लगेगा भाई साहब।
भाई साहब, हम क्या आप ही के लिए बैठे हैं। और भी बहुत से काम होते हैं। देखिए, अभी डिटेल्स तो देखनी पड़ेगी। इतनी जल्दी थोड़े ही संभव है। भाई साहब यह बैंक का काम है, जिम्मेदारी का काम है, सब सोच-समझकर करना पड़ता है। अब कोई यह न पूछे कि यह जो फ्रॉड कर गए, पैसा दबा गए, ऋण डकार गए तब भी क्या आप इतने ही सोच-समझकर काम कर रहे थे। खैर, इस तरह की बातचीत डिफाल्टरों से नहीं होती, आम ग्राहकों से ही होती है।
तो क्या स्टेट बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय को भी आम ग्राहक ही समझ लिया था कि देखिए चेक बुक अभी इश्यू नहीं हो सकती, उसमें तो टाइम लगेगा। नहीं एटीएम कार्ड बनने में तो समय लगेगा। कितना? कह नहीं सकते जी। आप महीने भर बाद में पता कर लेना। अच्छा आपके साथ फ्रॉड हो गया। फ्रॉड तो जी हमारे साथ भी हो रहा है, पर चलिए एक दरखास्त दे दीजिए, हम देखते हैं क्या हो सकता है। अच्छा आपके खाते से गलत पैसा कट गया। आप चिंता न करें हम छानबीन करेंगे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय तो आखिर न्यायालय ठहरा। जज साब के एक हथौड़ा मारने भर से अदालत का सारा शोरगुल थम जाता है। फिर इस बार तो उसके हाथ अवमानना का डंडा भी था। उसने यह डंडा दिखाकर कहा-देखो बहानेबाजी मत करो, ज्यादा चालाकी मत दिखाओ, वरना यह चल जाएगा।
बैंक ने बैंकाना तेवर त्यागे, बैंकाना नखरे छोड़े और फौरन काम में जुट गया। सिर पर तलवार लटकी हो तो इस तरह टूटकर काम करने का उसका रिकॉर्ड भी रहा है। नोटबंदी के वक्त नहीं किया था क्या। उसके लिए तो इतनी सराहना भी पाई थी और उस पर गर्व भी है। गर्व तो इस पर भी है कि उंगली के एक इशारे पर हमारा सारा डाटा रहता है। इधर एटीएम से निकाले पैसे आपके हाथ में आए भी नहीं होते कि उधर झट से मैसेज आ जाता है। फिर जी, इतने से काम के लिए चार महीने का वक्त क्यों चाहिए था। क्या निरा बैंकाना बहाना ही था। क्यों?