नरेश प्रेरणा
देश के चुनावी बॉन्ड पर बवाल मचा हुआ है। ये सब फालतू का तमाशा हो रहा है। ऐसे सब मसलों का समाधान पहले से मौजूद है। ईसाई धर्म में आप चुपके से जाकर कन्फेशन कर लेते हैं और पादरी हल निकाल लेते हैं। पर हिंदुओं में तो सार्वजनिक पाप निवारण की व्यवस्था है।
हमारे देश में लोग पवित्र नदियों में अपने पापों को भी गंगा में बहाकर मुक्ति पाने का वरदान पाते हैं। किसी ने कोई भी पाप किया हो तो इसकी पूरी व्यवस्था है जिससे पाप का निराकरण संभव है। गंगा मइया के घाटों पर बैठे पंडे पुजारी सारी व्यवस्थाओं की जानकारी देते हैं, अनुष्ठान करते हैं। अपनी फीस वसूलते हैं। पाप करने वाले को भी अपना घर पालना है और पाप के निराकरण के सारथी पंडे पुजारी को भी।
अब पंडे पुजारियों के रोजगार पर डाका पड़ने वाला है, बल्कि पड़ना चालू हो गया है। एकदम नये आधुनिक तरीके और नये नियम कानून बन गये हैं। पंडे पुजारियों की एक गुप्त बैठक में ये चिंता जाहिर की गई कि पापों के निराकरण का काम हमारा था अब ये काम किसी बॉन्ड को दे दिया गया है। ‘ये तो हमारा अपमान है। बेरोजगारी के इस समय में हमारे रोजगार पर लात मारी जा रही है।’ सारा काम पोथी पत्रों से करने के खिलाफ मुहिम चलाने वाले एक पढ़े-लिखे पंडे ने कहा कि हम कब से अपने काम को आधुनिक करने की अपील कर रहे हैं पर हमारी कोई सुनता ही नहीं है। इस मशीनीकरण ने ही हमारी जिंदगी मुश्किल कर रखी है। हमारी सदियों पुरानी परम्परा और तौर-तरीके ऐसे ही कंप्यूटर से बर्बाद हो रहे हैं।
एक पंडा बोला, ‘ये तो बताओ मामला क्या है?’ गुस्से में तमतमाये हुए एक पंडे ने कहा कि जो काम सदियों से, पीढ़ियों से हम करते आए हैं वो काम अब कोई बॉन्ड कर रहा है। लोगों के पापों का निराकरण अब बॉन्ड करेगा और हम देखते रहेंगे? ये कभी नहीं हो सकता। फिर भी दुस्साहस करके किसी ने पूछ लिया कि ये तो कोई विदेशी नाम मालूम पड़ता है तो कोई विदेशी कंपनी आ गयी है क्या? कितनी दक्षिणा मिली उसे? सवालों की बौछार-सी हो रही थी। जवाब कम पता थे पर बहुत जरूरी बात का पता लगा लिया गया था कि सोलह-सत्रह हजार करोड़ की दक्षिणा का मामला है।
बहुतों ने हैरानी और उत्साह में कहा कि इतनी बड़ी दक्षिणा तो कोई खास ही मामला होगा! कोई इतना बड़ा भी पाप हो सकता है जिसकी इतनी बड़ी दक्षिणा दे रहा है? जो इतनी बड़ी दक्षिणा दे रहा है उसने कितनी मोटी कमाई की होगी ये तो हम अपने अनुभवों से जानते ही हैं! सभी के मन में लड्डू फूटने लगे। तभी किसी होनहार पंडे ने सभी को फटकार लगाई कि अभी दावतों का नहीं बल्कि दक्षिणा की लूट का प्रश्न है। मामले का हर पहलू पता लगाने की जरूरत है।
खैर, मीटिंग खत्म हुई कि अभी हम कुछ नहीं बोलेंगे, समय आने पर बोलेंगे, तब तक बॉन्ड की जानकारियां जुटाने का काम उसी पढ़े-लिखे को दे दिया गया है। सभी घाट पर अपने-अपने जजमानों के पापों के निराकरण के लिए निकल गये।