क्षमा से प्रतिशोध
बालक अष्टावक्र आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ हेतु राजा जनक की नगरी पहुंचे। राजा जनक ने अष्टावक्र से कहा- आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ करना अत्यंत कठिन है। आचार्य की शर्त है कि शास्त्रार्थ में हारने वाले को जल समाधि लेनी पड़ेगी। अष्टावक्र आचार्य से शास्त्रार्थ करने के निर्णय पर अडिग रहे। अष्टावक्र का आचार्य बंदी से शास्त्रार्थ शुरू हुआ। बहुत देर तक चले शास्त्रार्थ में अष्टावक्र के एक प्रश्न पर आचार्य बंदी निरुत्तर हो गए। दंभी आचार्य का अभिमान चकनाचूर हो गया। आचार्य बंदी ने अपनी पराजय स्वीकारते हुए कहा- मैं जल समाधि लेने के लिए तैयार हूं। अष्टावक्र ने कहा-मैं आपको जल समाधि देने नहीं आया हूं । याद करो उन अाचार्य काहोड़ को जिनके हारने पर उन्हें तुम्हारी शर्त ने जल समाधि लेने पर मजबूर किया। मैं उन्हीं अाचार्य काहोड़ का पुत्र हूं। आपके अहंकार के कारण न जाने कितने निर्दोष विद्वानों ने जीवन खोया। परास्त करने पर मैं आपको जल समाधि दे सकता हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। मेरी क्षमा ही मेरा प्रतिशोध है। शास्त्र को शस्त्र न बनाओ आचार्य। शास्त्र जीवन का विकास करते हैं, शस्त्र जीवन का विनाश। मैं आपको क्षमा करता हूं आचार्य ।
प्रस्तुति: डॉ. मधुसूदन शर्मा