सोनम लववंशी
बदलती जीवन शैली और खानपान के कारण हर व्यक्ति कभी न कभी बीमार जरूर होता है। खुद नहीं होता तो उनके परिवार में उसे इस स्थिति का सामना जरूर करना पड़ता है। डॉक्टर के पास बीमारी का इलाज कराने जाते हैं व उसकी सलाह से दवाई लेते हैं। पर खतरनाक बात यह कि आजकल लोग बीमारियों का इलाज डॉक्टर से करवाने के बजाय ये काम भी खुद ही करने लगे हैं। जरूरी नहीं कि इस तरह का इलाज हमेशा सही हो! लेकिन, ऐसे प्रयोग अपना दुष्प्रभाव दिखाते हैं, तो कई बार गम्भीर परिणाम होते हैं। सर्दी-खांसी या छोटे-मोटे दर्द तक तो ठीक है, पर लक्षणों को देख कर खुद का दवा-ज्ञान या मेडिकल स्टोर वाले से दवा लेना सेहत के लिए नई परेशानी खड़ी कर सकता है। परिवार व दोस्तों में बेवजह दवाई बताने वाले बहुत मिलते हैं। आज कल तो इंटरनेट पर भी लोग अपना इलाज खोजने में देर नहीं करते हैं। जबकि इसके परिणाम घातक होते हैं।
डॉक्टरी परामर्श ज़रूरी
डॉक्टरों को तो आए दिन इस तरह के मरीजों से दो-चार होना पड़ता है जो ख़ुद का इलाज करके अपनी बीमारी को ओर अधिक गम्भीर बना लेते हैं। डॉक्टर के पास आने वाला हर दूसरा मरीज अपनी बीमारी की कुछ न कुछ जानकारी लेकर जरूर आता है व उन दवाइयों के नाम तक बताना शुरू कर देता है, जो उसने मेडिकल स्टोर्स से लेकर खाई हैं। ऐसे मरीज़ डॉक्टर की सलाह को भी गम्भीरता से नहीं लेते हैं। कई बार तो इंटरनेट सर्च करके टेस्ट तक करवा लेते हैं और रिपोर्ट के आधार पर दवाइयां लेना शुरू कर देते हैं। जबकि, खुद डॉक्टर तक बिना जांच के इलाज शुरू नहीं करते।
इंटरनेट पर बीमारी का इलाज़ ढूंढना आसान
लोगों में बीमारी को लेकर सलाह देने का चलन नया नहीं है। लेकिन, इंटरनेट आने के बाद हर दूसरा आदमी डॉक्टर बना घूमता है। हर बीमारी का झटपट इलाज के दावों की इंटरनेट पर बाढ़ लगी हुई है। इंटरनेट पर बीमारी का इलाज ढूंढना बहुत आसान होता है। मरीज़ को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि जानकारी सही है या नहीं। लोग डॉक्टर के पास जाना भी उचित नहीं समझते। जबकि, डॉक्टर अपने अनुभव और मरीज की जांच के आधार पर ही इलाज करता है। गूगल पर जानकारी भले ही सही हो, पर जरूरी नहीं कि वो उस मरीज पर असर ही करें। क्योंकि डॉक्टर मरीज़ की उम्र से लेकर उसकी रिपार्ट तक देखने के बाद ही इलाज करता है। एलर्जी या साइड इफेक्ट न हो इस बात का भी ख्याल रखता है।
मेडिकल स्टोर संचालक भी डॉक्टर नहीं
खुद की समझ से दवा के सेवन यानी सेल्फ मेडिकेशन को एक गंभीर जन स्वास्थ्य समस्या कहा जाता है। कई लोग मेडिकल स्टोर से बिना डॉक्टर की पर्ची के दवा लेते हैं। लेकिन, वे भूल जाते हैं कि मेडिकल स्टोर वाला डॉक्टर नहीं है। उसे दवा की जानकारी हो सकती है, पर जरूरी नहीं कि उसे दवा का सही डोज, मरीज के लिए उसकी जरूरी मात्रा और दवा के दुष्प्रभाव के बारे में सही जानकारी हो। ऐसा अधूरा ज्ञान खतरनाक साबित होता है। इससे कई बार छोटी बीमारी भी बहुत गम्भीर हो जाती है। किडनी और लिवर जैसे अंग खराब होने का भी खतरा बना रहता है।
जागरूकता चाहिये
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भी इंटरनेट पर मौजूद दवा संबंधी जानकारी और ऑनलाइन कंसल्टेंसी को लेकर एक रिपोर्ट सरकार को दी है जिसमें कहा गया कि देश में टेली मेडिसिन, टेली कंसल्टेशन, इंटरनेट कंसल्टेशन पर कोई नीति बनाई जाना चाहिए। इंटरनेट की जानकारियों पर प्रतिबंध लगाना आसान नहीं है लेकिन चेतावनी जरूर डाली जा सकती है। देखा गया है कि लोग डॉक्टर की लिखी दवा के नाम भी इंटरनेट पर सर्च करते है। कई बार मरीज या मरीज का कोई परिजन खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है। ऐसा भी देखा गया कि मरीज डॉक्टर की पर्ची की मदद से इंटरनेट पर सर्च करके बीमारी ढूंढते हैं और उसकी तुलना अपनी बीमारी से करते हैं। डॉक्टर की सुझाई दवा उनकी बीमारी से मेल नहीं खाती, तो कई बार वे उसे खाना ही छोड़ देते हैं। नतीजा, दवा के अभाव में बीमारी बढ़ जाती है। ऐसी कई घटनाएं हमें अपने आसपास मिल जाएंगी। इस समस्या से निजात के लिए जागरूकता फैलानी होगी।