कीर्तिशेखर
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने अपने नये निर्देश के माध्यम से नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) स्कोर को पीएचडी प्रवेश के लिए अनुमति प्रदान कर दी है। यानी नेट में अर्जित स्कोर के आधार पर पीएचडी में एडमिशन लिया जा सकेगा। यह अनुमति सभी विश्वविद्यालयों के लिए है और अकेडमिक सत्र 2024-25 से ही यह निर्णय लागू हो जायेगा। यह निर्देश उन छात्रों के लिए बहुत लाभकारी होगा जिन्हें पीएचडी में प्रवेश लेने के लिए पहले विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित अनेक प्रवेश परीक्षाओं में बैठना पड़ता था। लेकिन अब नेट स्कोर्स से सिर्फ पीएचडी में प्रवेश ही नहीं और भी कई बातें होंगी। मसलन प्रार्थी की जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) की पात्रता और असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति भी।
अनेक परीक्षाएं देने से मुक्ति
यूजीसी के सचिव मनीष रत्नाकर जोशी का कहना है कि इस निर्देश से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत प्रवेश प्रक्रिया को स्ट्रीमलाइन करने में मदद मिलेगी। छात्रों पर से दबाव हटेगा और उन्हें अनेक परीक्षाओं में बैठने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। जोशी के अनुसार, ‘यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि छात्रों को मल्टीपल परीक्षाएं देने की परेशानी से बचाया जा सके। यह समर्थ करने वाला प्रावधान है यानी आवश्यक नियम नहीं है कि विश्वविद्यालय लाज़मी रूप से इसका पालन करें। अगर कोई विश्वविद्यालय प्रवेश प्रक्रिया के लिए नेट स्कोर्स को अपनाना चाहता हैं, तो उसे नेट नतीजों के अनुरूप मेरिट सूची बनानी होगी। बहरहाल, अगर कोई विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा आयोजित करना चाहता है, तो वह जारी रख सकता है और प्रवेश की मौजूदा प्रक्रिया में परिवर्तन की कोई उम्मीद नहीं की जायेगी।‘
साल में दो मौके, फीस की भी बचत
अनेक राज्यों के विश्वविद्यालय साल में एक बार प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं, जबकि नेट साल में दो बार आयोजित किया जाता है- जून व दिसम्बर में। नये निर्देश से छात्रों को अतिरिक्त अवसर मिल जायेगा। नया प्रावधान इसलिए लाया गया है ताकि पीएचडी प्रवेशों की मौजूदा व्यवस्था में जो कमियां हैं, उन्हें दूर किया जा सके। जोशी का कहना है कि इस प्रावधान से छात्र विभिन्न विश्वविद्यालयों में परीक्षा फीस देने से भी बच जायेंगे। आमतौर से विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा साल में एक बार ही आयोजित की जाती है । नेट परिणाम परसेंटाइल में घोषित किया जायेगा और साथ ही छात्र द्वारा अर्जित अंक भी होंगे ताकि विश्वविद्यालय पीएचडी कार्यक्रम के लिए अपने प्रवेश नियमों के अनुसार निर्णय ले सकें।
राहतकारी पहल
एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) के पूर्व महासचिव फुरकान कमर मानते हैं कि यह एक प्रगतिशील पहल है। उनके अनुसार, “यह प्रावधान बहुत बड़ी राहत है, विशेषकर अगर पुराने नोटिफिकेशन के मुकाबले में रखकर इसे देखें तो उसके तहत केवल 60 प्रतिशत पीएचडी एनरोलमेंट नेट स्कोर के आधार पर किया जाता था और शेष 40 प्रतिशत प्रवेश विश्वविद्यालय के एंट्रेंस टेस्ट पर आधारित थे। इस 60 : 40 के अनुपात को अकेडमिक क्षेत्र के लोग अपर्याप्त तरीका समझते थे।”
नेट स्कोर की तीन कैटेगरी के सवाल
जैसा कि आधिकारिक नोटिस में कहा गया है , नेट स्कोर के आधार पर छात्रों को कैटेगरी एक, कैटेगरी दो और केटेगरी तीन में विभाजित किया जायेगा । नेट प्रार्थियों को जिन तीन केटेगरी में योग्य घोषित किया जायेगा वे हैं- कैटेगरी 1- अवार्ड ऑफ़ जेआरएफ और असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति। कैटेगरी 2- असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर नियुक्ति और पीएचडी में प्रवेश। कैटेगरी 3- केवल पीएचडी में प्रवेश। इस बारे में फुरकान कमर का कहना है, “यूजीसी को कैटेगरी तीन, जिसके तहत केवल पीएचडी में प्रवेश का प्रावधान है, पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि जो प्रार्थी तीसरी कैटेगरी में आयेंगे वे नेट स्कोर की मेरिट में काफी नीचे होंगे और यह प्रावधान उन्हें दूसरी कैटेगरी के प्रार्थियों के बराबर खड़ा कर देगा जबकि वह मेरिट लिस्ट में उनसे ऊपर होंगे।”
प्रावधान की ऐच्छिक प्रकृति
हालांकि सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ केरल में स्कूल ऑफ़ एजुकेशन के प्रोफेसर व डीन अमृत जी कुमार का कहना है, “यह प्रावधान प्रवेशों में गति नहीं ला पायेगा क्योंकि अधिकतर विश्वविद्यालयों की अपनी प्रक्रियाएं हैं। यूजीसी नेट परीक्षा साल में दो बार आयोजित करती है, लेकिन विश्वविद्यालय प्रवेश के लिए साल में एक बार ही खुलते हैं। लेकिन छात्र अपना नेट स्कोर बेहतर करने के लिए परीक्षा दो बार दे सकते हैं। यह प्रावधान डिफ़ॉल्ट से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर लागू होगा। लेकिन यह विवेकाधीन प्रावधान है और यूजीसी ने इसे लाज़मी नहीं किया है। -इ.रि.सें.