आलोक पुराणिक
रेहड़ी पर ठुमरी प्रसाद मिले, आज कुल्फी की रेहड़ी थी। ठुमरी प्रसाद सर्दी में अंडा-आमलेट की रेहड़ी लगाते हैं।
मैंने पूछा- भाई आमलेट से कुल्फी पर आ लिये।
ठुमरी प्रसाद ने कहा- धंधा है जी मौसम के हिसाब से बदलना पड़ता है।
उधर कांग्रेस के जांबाज भाजपा के खिलाफ आग उगल प्रवक्ता भाजपा में आ गये, मैंने उनसे यह न पूछा कि यह क्या किया।
क्या पता उनका जवाब वही होता, जो ठुमरी प्रसाद का है- धंधा है मौसम के हिसाब से बदलना होता है।
मौसम न भी बदले, तो भी कई नेता धंधे बदल लेते हैं। क्योंकि कुछ को लगता है कि उनका सैकुलरिज्म का मौसम होता है, राष्ट्रवाद का मौसम होता है। मौसम के हिसाब से धंधा बदलने वाले चतुर होते हैं। चतुर ही कामयाब होते हैं। गंगा जब बह रही हो, तो हाथ न धोना बेवकूफी माना जायेगा। गंगा बह रही है, उधर वाले इधर आ लिये हैं।
पॉलिटिक्स बहुत टेढ़ा धंधा है। जिनको लोगों को पार्टनर मान कर चलो, ऐन टाइम पर रेहड़ी से भगा देते हैं। पश्चिम बंगाल में यही हुआ। ममता बनर्जी की पार्टी को कांग्रेस वाले अपना पार्टनर मान कर चल रहे थे, फिर कांग्रेस वालों को भगा दिया गया। सारी जगह ममता बनर्जी ने खुद घेर ली।
कांग्रेस पॉलिटिक्स के धंधे की पुरानी कारोबारी पार्टी है। पर साहबो, धंधे में क्या नया और क्या पुराना। जिसका जहां दांव लग जाये, वहीं वो अपनी मनमानी कर गुजरता है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पंजाब में कांग्रेस को टरका दिया एक भी सीट न दी, पर दिल्ली में कुछ सीटें कांग्रेस से झटक लीं। कांग्रेस की हालत उस पुराने बड़े कारोबारी जैसी हो गयी है, जिसके पुराने मुनीम, एम्पलाई ही उससे मोल-तोल कर रहे हैं। कांग्रेस होना बहुत मुश्किल है। राजनीति के धंधे के नये स्टार्टअप पुराने कारोबारियों को डरा रहे हैं। वही कारोबारी कामयाब रहेगा, जो मौसम के हिसाब से धंधा बदल सके।
चुनावी दिनों में तो हाल यह है कि बिना मौसम बदले ही कारोबारी आमलेट से कुल्फी पर आ जाते हैं।
ठुमरी प्रसाद कुल्फी की रेहड़ी को मंदिर के सामने लगाते हैं और मस्जिद के सामने भी लगाते हैं। सच्चे धर्मनिरपेक्ष तो ठुमरी प्रसाद हैं। जहां से धंधा मिले वहीं फंदा डाल दो। यह सिर्फ धंधे का नहीं, पॉलिटिक्स का भी फंडा है।
मैंने एक दल-बदलू पार्टी प्रवक्ता से पूछा कि भाई तुम्हें शर्म न आती कि कल कुछ और बात कर रहे थे, आज कुछ और। दल-बदलू पार्टी प्रवक्ता ने कहा-मुझे ठुमरी प्रसाद का शिष्य मानिये-कभी आमलेट तो कभी कुल्फी।
पार्टी प्रवक्ता को नहीं पता, ठुमरी प्रसाद खुद को नेताओं के लेवल पर उतार दिये जाने पर नाराज हो सकते हैं।