शिखर चंद जैन
बेंगलुरु में एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास अद्भुत मामला सामने आया। एक दंपति अपने बच्चे को दिखाने के लिए लाए थे। मात्र ढाई साल का बच्चा मोबाइल फोन का इतना अभ्यस्त हो गया था कि अगर उसे कोई गोद में लेता तो वह उस व्यक्ति के ललाट पर स्वाइप करने लगता, मानो वह कोई मोबाइल स्क्रीन हो। स्वाइप कर वह वैसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद भी करता जैसे मोबाइल में म्यूजिक, रील या फोटो आने लगते हैं। माता-पिता की किसी भी बात का जवाब भी वह तभी देता था जब वे टॉकिंग टॉम एप यानी बोलने वाली बिल्ली की आवाज में उससे बात करते। मामला वाकई परेशान करने वाला था। इससे पता चलता है कि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का दखल हमारी जिंदगी में कितने खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। विशेषज्ञ कहते हैं कि 5 साल तक के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम पूरी सख्ती के साथ जीरो होना चाहिए। दो साल तक के बच्चे को तो स्क्रीन दिखाना तक नहीं चाहिए। लेकिन आजकल ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के गैजेट और सोशल मीडिया प्रेम यानी डिजिटल एडिक्शन से परेशान हैं। ऐसे में डांटने-फटकारने की बजाय आप बच्चों को शुरू से ही कुदरत की खूबसूरती से रूबरू करवाएं। वे कुदरत के सान्निध्य में स्वस्थ रहेंगे और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से चिपके रहने की बैड हैबिट से दूर रहेंगे। करीब 20-30 साल पहले बच्चे बगीचों में खेलते थे, बारिश में भीगते थे, धूल-मिट्टी में लोटपोट होते थे, घरौंदे बनाते थे, तितलियां पकड़ते थे, छुप्प्म-छुपाई खेलते थे, पेड़ से तोड़कर फल या कच्ची सब्जियां खा लेते थे, तब उनका शारीरिक गठन और इम्यूनिटी आजकल के बच्चों से कहीं ज्यादा होती थी।
सुकून और एकाग्रता
मनोविज्ञानियों का मानना है कि कुदरत के करीब रहने वाले बच्चे न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का संतुलित और कम उपयोग करते हैं बल्कि अध्ययन में एकाग्रता और सीखने की क्षमता भी अधिक रहती है। इन बच्चों में अशांति कम पाई जाती है और स्वभाव से सृजनात्मक होते हैं।
सक्रियता, होशियारी
अध्ययनों में साबित हो चुका है कि प्राकृतिक वातावरण में अधिक रहने वाले बच्चों में शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक सक्रियता अधिक होती है। सहानुभूति और संवेदनशीलता भी होती है व स्ट्रेस से लड़ने में औरों से बेहतर स्थिति में रहते हैं। समस्याएं सुलझाने में भी ये ज्यादा कामयाब होते हैं।
ऐसे ले जाएं कुदरत के करीब
बच्चों में कुदरत के प्रति आकर्षण पैदा करने और उन्हें कुदरत के करीब ले जाने के लिए आपको कुछ कदम उठाने होंगे, जो उपलब्ध जगह, सुविधाओं और समय के हिसाब से तय किए जा सकते हैं –
पार्क में जाएं
बचपन से ही अपने छुटकू को साथ लेकर सुबह-शाम अपने घर के नजदीक स्थित किसी पार्क में जाएं। वहां उसे लेकर टहलें, उसके साथ भागदौड़ के, छिपने-ढ़ूंढ़ने के खेल खेलें। उसे तरह-तरह के पेड़-पौधों, फूलों और पशु-पक्षियों के बारे में बताएं। उनकी हरकतें देखने के लिए प्रेरित करें।
वीकेंड पर पिकनिक
रोज पार्क वगैरह में न जा पाएं, तो हफ्ते में एक दिन अपने परिवार के साथ किसी प्राकृतिक स्थान पर जाएं। वहीं खाना खाएं, खेलें, हंसी-मजाक करें। वहां मौजूद फलों-फूलों, पत्तियों, पेड़-पौधों के बारे में चर्चा करें। नदी-तालाब हो तो उसकी लहरें देखें। पक्षियों को दाना दें।
कुदरत के बीच कंपीटिशन
रिश्तेदारों या अपनी सोसायटी के दूसरे परिवारों के साथ मिलकर बच्चों को समय-समय पर प्राकृतिक स्थानों पर ले जाएं। इनमें सैंक्चुरी, वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, वाटर पार्क आदि अलग-अलग स्थान चुनें। यहां बच्चों में परस्पर पेंटिंग, ड्रॉइंग, कंपीटिशन करवाएं। विषय रखें आसपास मौजूद पेड़-पौधे या अन्य दृश्यों को कागज पर उतारना और पेंटिंग करना। जो बच्चे पेंटिंग में कच्चे हों उन्हें शब्द चित्र यानी लेखक के रूप में अपनी भावनाएं लिखने को कहें।
नेचर स्क्रैप बुक
कुदरत के प्रति बच्चों में आकर्षण पैदा करने के लिए आप जब भी उनके साथ उद्यान में जाएं, तो बच्चे के वहां से कुछ इकट्ठा करने की आदत डालें। जैसे किसी पेड़ की पत्ती, फूल, टहनियां, पंख, गोलमटोल पत्थर आदि। टहनियों या पत्थरों पर पेंट कर बच्चे को कुछ क्रिएटिव करने का आइडिया दें। पत्तियों और फूलों की स्क्रैप बुक बनाएं।
ऐसा भी करें
अगर आपके पास जगह है तो बच्चों को बागवानी के काम में लगाएं। फलदार और फूलों वाले पेड़ लगवाएं। पेड़ों पर कौन से फल पक गए या अभी कच्चे हैं, इनका कयास लगाने को कहें। उसकी बुक्स में दिए गए पेड़ अगर आपके बगीचे में हैं या बाहर कहीं दिखें, उसे बताएं। इंडोर गेम्स जैसे लूडो, हाऊजी, ताश आदि कुदरत के बीच जाकर खेलें।